भारत का भौगलिक परिवेश और प्रगौतिहासिक सभ्यताएं
परिचय:
किसी भी देश के इतिहास को उस देश के भूगोल की जानकारी के बिना नही समझा जा सकता क्योंकि लोगो का इतिहास भूगोल और वातावरण से प्रभावित होता है जहाँ वे रहते है। इसलिए इन जगहों की जलवायु, मिटटी के प्रकार, जल-संसाधन आदि के बारे में जानना जरुरी हो जाता है।
प्राचीन काल में भारतीय उपमहाद्वीप में जिसमें आज के भारत,बांग्लादेश,नेपाल,भूटान और पाकिस्तान शामिल थे इन्हें भूगोलिक विविधताओ के आधार पर तीन भागो में बाटा गया है –
- हिमालय क्षेत्र
- उत्तर भारत का नदी तटीय मैदानी क्षेत्र
- प्रायद्वीपीय भारत
भूगोल के जानकारी के बिना इतिहास अधुरा है |
हिमालय क्षेत्र –
- हिमालय क्षेत्र विश्व की सबसे बड़ी और ऊँची पर्वत है।
- यह 2400 कि. मी. लम्बी है। हिमालय पर्वत के कारण उत्तर की ओर से आने वाली ठंडी हवाए रुक जाती है।
- समुन्द्र से उठने वाली मानसूनी हवा को यह पर्वत रोक देती है।
- जिससे उत्तरी मैदानी क्षेत्र में वर्षा होने लग जाती है।
- इस पर्वत की बजह से हमलावरों से सुरक्षा भी मिली है।
2. उत्तर भारत का नदी तटीय मैदानी क्षेत्र –
- हिमालय क्षेत्र में तीन नदिया सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र है।
- जिसके कारण यहाँ के क्षेत्र काफी उपजाऊ थे |
- यह क्षेत्र गेंहू की खेती के लिए बहुत ही महतवपूर्ण है |
- इस क्षेत्र के इन्ही खासियत के कारण हमलावर हमला किया करते थे।
- सिन्धु क्षेत्र में हड़प्पा स्कृति का विकास हुआ|
गंगा की घाटी:
- गंगा की घाटी में सिन्धु क्षेत्र की तुलना में ज्यादा वर्षा होती है।
- इसी कारण से यह क्षेत्र अधिक उपजाऊ है।
- गंगा के क्षेत्रो को तीन भागो में बटा गया है।
- ऊपरी: – इसमें उत्तरप्रदेश के पश्चमी और दक्षिणी क्षेत्र शामिल है। प्राचीन काल से इस क्षेत्र में सांस्कृतिक विकास हुए | उत्तर वैदिक युग में आर्यों ने यही निवास किया और खेती की।
- मध्य: – यह अधिक उपजाऊ है। इसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार शामिल है | छठी सदी ई.वी. पूर्व में कौशल ,काशी और मगध जैसे महाजनपद इसी क्षेत्र में आते थे | जैन और बौध धर्म का जन्म भी इन्ही क्षेत्र में हुआ।
- निम्न: – इसमें बंगाल का क्षेत्र शामिल है। इसके उत्तर में ब्रह्मपुत्र से सिंचाई होती है। भारी वर्षा से यहाँ घने जंगल और दलदल बन गये है जिसके कारण यहाँ आवास बनाने में परेशानियां आई।
पश्चिमी भारत का क्षेत्र:
- इस क्षेत्र में आधुनिक राजस्थान, गुजरात के प्रदेश शामिल है।
- यहाँ की काली मिटटी कपास की खेती के लिए बहुत उपयोगी है।
- राजस्थान का थार मरुस्थल गंगा की क्षेत्रो की तरह उपजाऊ नहीं था।
- इसलिए थार मरुस्थल को कृषि के लिए उपयोगी नही समझा गया। राजस्थान अनेक राजपूत वंशो का भी मूल निवास स्थान रहा है।
- गुजरात में साबरमती, माही, नर्मदा और ताप्ति इन नदियों के कारण यहाँ की भूमि उपजाऊ हुई और । आर्थिक विकास हुआ।
- गुजरात में अपने लम्बे बन्दरगाहो के जरिए विश्व के अन्य देशो के साथ सम्बन्ध स्थापित किए। गुजरात के महत्वपूर्ण बन्दरगाह भृगुकच्छ या भडूच (भरोच) |
3- प्रायद्वीपीय भारत
प्रायद्वीपीय भारत में दक्षिण का पठार और दक्षिण भारत के समुन्द्र तट के मैदानी क्षेत्र शामिल है।
इस क्षेत्र को तीन भागो में बाटा गया है –
- महारष्ट्र
- आंध्रप्रदेश
- कर्नाटक
- ताम्बे और पत्थर के औजारों का उपयोग करने वाले लोग ज्यदातर इन्ही तीन क्षेत्रो में मिले है।
- कर्नाटक में दक्षिण,पश्चिम, दक्कन के क्षेत्र शामिल है। यहाँ जल और अन्य संसाधन अधिक मात्रा में उपलब्ध है।
- दक्षिण भारत का रायचूर दोआब क्षेत्र चावल की खेती का केंद्र है।
- दोआब दो नदियों के बीच की जमीन को कहा जाता है।
- पश्चिमी घाटो के दक्षिणी किनारे पालघाट दर्रा है जो की पश्चिम समुंद्री को कावेरी घाटी से जोड़ता है।
- भारत – रोम के व्यपारिक सम्बन्ध प्राचीन काल से ही। इन्ही दक्षिण, पश्चिम के घाटो से हुआ है।
- तमिलनाडु में नदिया मौसमी होती है जिसके कारण प्राचीन काल से ही इस क्षेत्र के लोग तलाबो द्वारा सिंचाई पर निर्भर है
- कावेरी के डेल्टा क्षेत्र में चावल की खेती में मत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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