चालुक्य वंश
चालुक्य वंश
- चालुक्य वंश ने छठी शताब्दी के प्रारंभ से लेकर 200 वर्ष टक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई |
- इन्होंने पश्चिम दक्कन में अपन्ने साम्राज्य की स्थापना की |
- वातापी को अपनी को अपनी राजधानी बनाया |
- चालुक्य वंश महान शासक पुलकेशिन द्वितीय था |
- इसके शासन काल मे साम्राज्य शिखर पर पहुँच गया था |
- इसने अपनी स्थिति को महाराष्ट्र में मजबूत किया तथा दक्कन के बड़े भू-भाग पर विजय प्राप्त की |
- इसने सन 630 में हर्षवर्धन को पराजित करके देव की उपाधि धारण की |
- सन 642 में वह स्वयं पल्लव शासक नरसिम्हवर्मन के हाथों पराजित होकर मारा गया |
- चालुक्य तथा पल्लव के बीच लंबे राजनीतिक संघर्ष के युग को प्रारंभ किया |
- यह सौ वर्षों से अधिक उत्थान एंव पतन के साथ निरंतर चलता रहा |
- इस संघर्ष पर विराम सन 757 के निकट लगा |
- जब राष्ट्रकूट वंश ने उनका तख्ता पलट दिया |
पल्लव वंश
- पल्लव वंश ने आंध्र प्रदेश से लेकर उत्तरी तमिलनाडु तक स्थापित किया |
- इन्होनें काँची को अपनी राजधानी बनाया |
- काँची व्यापारिक तथा व्यावसायिक गतिविधियों का महत्त्वपूर्ण केंद्र था |
- काँची मंदिरों के लिए विख्यात नगर बन गया था |
- महेंद्रवर्मन तथा नरसिंहवर्मन के शासन काल में पल्लव वंश के साम्राज्य का विस्तार हुआ |
- अपने शासन काल दौरण चालुक्य वंश, चोल तथा पाण्ड्य वंशों के साथ निरंतर संघर्ष चलता रहा |
- चोल शासकों द्वारा दक्षिण भारत में उनके शासन का अंत हुआ |
- इन्हीं के शासनकाल में चेन्नई का दक्षिण क्षेत्र वास्तुकला के महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में प्रकट हुआ |
प्रशासनिक प्रणाली ( 300-750 ई. )
- मौर्ययुग में राजनीतिक शक्ति राजा के हाथों मे केंद्रित होती थी |
- लेकिन गुप्त प्रशासन स्वभावतया विकेंद्रित था |
- छोटे मुखिया उनके साम्राज्य के बड़े हिस्से पर शासन करते थे |
- गुप्त शासकों ने परमेश्वर जैसी उपाधियाँ धारण की |
- दुर्बल शासकों ने महाराज उपाधि धारण की |
- राजा का पद वंशानुगत था |
- राजा की सहायता के लिए मंत्री होते थे|
- राजकुमारों को भी क्षत्रों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता था |
- प्रांत विभिन्न जिलों मे विभक्त हुआ करते थे |
- इन्हें ‘प्रदेश अथवा विषय कहा जाता था |
- विषय का प्रधान ‘विषयपति’ के नाम से जाने जाते थे |
- विषय भी ग्रामों मे विभक्त हुआ करते थे |
- ग्राम का प्रमुख ‘ग्रामाध्यक्ष’ कहलाता था |
- वरिष्ठ नागरिकों की सहायता से ग्राम के विषयों की जिम्मेदारी निभाता था |
- मौर्यो की तुलना में गुप्त अधिकारी वर्ग कम बड़ा था |
- उच्च पदाधिकारियों को चयन शासक स्वयं करता था |
- गुप्त काल में भू-करों में व्यापक वृद्धि हुईं |
- कुल उत्पादन का ¼ से 1/6 हिस्से तक होता था |
- दो कृषि कर – उपरिकर तथा उदरंग
- कृषक वर्ग को सामंतों की आवश्यकताओं को भी पूर्ण करना होता था |
- कृषक वर्ग को ही शाही सैन्य बल को भोजन भी कराना होता था |
- जिस गाँव से शाही सेना गुजरती थी वहाँ के ग्रामवासियों से बेगार कार्य भी लेते थे |
- गुप्तकाल की न्यायिक व्यवस्था अत्यधिक उन्नत अवस्था में थी |
- राजा ने नियमों को मजबूत बनाया ओर ब्रह्यमणो की सहायता से विषयों का निराकरण किया |
- हर्षवर्धन ने इसी पद्धति पर अपने साम्राज्य का संचालन किया |
- परंतु ईसंके शासन काल में विकेंद्रीकारण की गति में प्रगति हुई |
- इसके शासन काल में अधिकारी को भूमि के रूप में भुगतान किया जाता था |
- इसने सामंती प्रथा को प्रोत्साहन दिया |
- यह प्रथा हर्षोत्तर काल में असाधारण रूप से विकसित हुईं |
- हर्षवर्धन के शासन काल में न्याय व्यवस्था उतनी प्रभावी नहीं थी |
समाज –
- गुप्तकाल में समाज एक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा था |
- ब्राह्मणों की सर्वोच्चता में वृद्धि हो रही थी |
- ब्राह्मणों को शासक और साधारण जनता से भी दान के रूप में भूखंडों की प्राप्ति हो रही थी |
- ब्राह्मणों को शासक का समर्थन मिलने के कारण उन्होंने किसानों का शोषण करना शुरू कर दिया था |
- इसी युग में जातियों की भी वृद्धि हुई |
- विभिन्न क्षत्रों में ब्राह्मणवादी सभ्यता का विस्तार हुआ |
- ब्राह्मण के विस्तार के कारण विदेशी आक्रमणकारीयों ने भी – हूण वंश ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था में सम्मिलित हो गए |
- विदेशी जनजाति के मुखिया क्षेत्रिय कहलाए |
- साधारण जनजातियों को शूद्रों की स्थिति प्राप्त हुई |
- शूद्रों को पूरण तथा महाकाव्य सुनने की अनुमति नहीं थी |
- सातवीं शताब्दी में शूद्रों तथा अस्पृश्यों के मध्य अंतर किया गया |
- अस्पृश्यों को चाण्डाल कहा जाता था |
- इनका निवास गांव से बाहर होता था |
- यह नाली साफ़ करना अथवा कसाईगीरी जैसे कार्य करते थे |
चीनी यात्री फाहयान के अनुसार
- जब यह व्यापारिक केन्द्रों में प्रवेश करते थे तब अपने आने की घोषणा लकड़ी के टुकड़े को बजाकर करते थे |
- ऐसे इसलिए करते थे क्योंकि उनसे अन्य लोग छुलकर भ्रष्ट न हों जाएं |
- दासों का सन्दर्भ भी समकालीन धर्मशास्त्रों में मिलता है |
- नारद के अनुसार 15 प्रकार के दास हुआ करते थे |
- दास का कार्य – घर की सफाई करना झाड़ू लगाना, आदि
- युद्ध के कैदी, कर्जदार, दासी की कोख से जन्म लेने वाला शिशु भी दास समझा जाता है |
- गुप्तकाल में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति ठीक नहीं थी |
- पैतृक सम्पत्ति पर महिलाओं का कोई अधिकार नहीं था |
- स्त्रियों का अधिकार सिर्फ विवाह के समय में मिले उपहारों पर ही होता था |
- सती प्रथा का प्रचलन था |
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