CBSE Class 12th Hindi Most Important Questions & Answers
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महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
CBSE
प्रश्न – निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए
संवाद में दोनों पक्ष बोलें यह आवश्यक नहीं। प्रायः एक व्यक्ति की संवाद में मौन भागीदारी अधिक लाभकर होती है। यह स्थिति संवादहीनता से भिन्न है। मन से हारे दुखी व्यक्ति के लिए दूसरा पक्ष अच्छे वक्ता के रूप में नहीं अच्छे श्रोता के रूप में अधिक लाभकर होता है। बोलने वाले के हावभाव और उसका सलीका, उसकी प्रकृति और सांस्कृतिक-सामाजिक पृष्ठभूमि को पल भर में बता देते हैं। संवाद से संबंध बेहतर भी होते हैं और अशिष्ट संवाद संबंध बिगाड़ने का कारण भी बनता है। बात करने से बड़े-बड़े मसले, अंतर्राष्ट्रीय समस्याएँ तक हल हो जाती हैं।
पर संवाद की सबसे बड़ी शर्त है एक-दूसरे की बातें पूरे मनोयोग से, संपूर्ण धैर्य से सुनी जाएँ। श्रोता उन्हें कान से सुनें और मन से अनुभव करें तभी उनका लाभ है, तभी समस्याएँ सुलझने की संभावना बढ़ती है और कम-से-कम यह समझ में आता है कि अगले के मन की परतों के भीतर है क्या? सच तो यह है कि सुनना एक कौशल है जिसमें हम प्रायः अकुशल होते हैं। दूसरे की बात काटने के लिए, उसे समाधान सुझाने के लिए हम उतावले होते हैं और यह उतावलापन संवाद की आत्मा तक हमें पहुँचने नहीं देता।
हम तो बस अपना झंडा गाड़ना चाहते हैं। तब दूसरे पक्ष को झुंझलाहट होती है। वह सोचता है व्यर्थ ही इसके सामने मुँह खोला। रहीम ने ठीक ही कहा था-“सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।” ध्यान और धैर्य से सुनना पवित्र आध्यात्मिक कार्य है और संवाद की सफलता का मूल मंत्र है। लोग तो पेड़-पौधों से, नदी-पर्वतों से, पशु-पक्षियों तक से संवाद करते हैं। राम ने इन सबसे पूछा था क्या आपने सीता को देखा?’ और उन्हें एक पक्षी ने ही पहली सूचना दी थी। इसलिए संवाद की अनंत संभावनाओं को समझा जाना चाहिए।
प्रश्न – उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर- शीर्षक-संवाद : एक कौशल।
प्रश्न – ‘संवादहीनता’ से क्या तात्पर्य है ? यह स्थिति मौन भागीदारी से कैसे भिन्न है?
उत्तर – संवादहीनता से तात्पर्य है-बातचीत न होना। यह स्थिति मौन भागीदारी से बिलकुल अलग है। मौन भागीदारी में एक बोलने वाला होता है। संवादहीनता में कोई भी पक्ष अपनी बात नहीं कहता।
प्रश्न – दुखी व्यक्ति से संवाद में दूसरा पक्ष कब अधिक लाभकर होता है? क्यों?
उत्तरः -दुखी व्यक्ति से संवाद में दूसरा पक्ष तब अधिक लाभकर होता है जब वह अच्छा श्रोता बने। दुखी व्यक्ति अपने मन की बात कहकर अपने दुख को कम करना चाहता है। वह दूसरे की नहीं सुनना चाहता।
प्रश्न – हम संवाद की आत्मा तक प्रायः क्यों नहीं पहुँच पाते?
उत्तर – हम संवाद की आत्मा तक प्रायः इसलिए पहुँच नहीं पाते क्योंकि हम अपने समाधान देने के लिए उतावले होते हैं। इससे हम दूसरे की बात को समझ नहीं पाते।
प्रश्न – काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती ढुलकाती सुख मेरे
मदिर ऊँघते रहते सब-जगकर रजनी भर तारा।
उत्तर – भाव सौन्दर्य – उषा का मानवीकरण कर उसे पानी भरने वाली स्त्री के रूप में चित्रित किया गया था इन पक्तियों में भोर का सोंदर्य सवर्त दिखाई देता था तारे ऊघने लगते थे भाव यह था कि चारो तरफ भोर हो चुका था और सूर्य की सुनहरी किरणे लोगो को उठा रही थी
शिल्प सौन्दर्य –
- उषा तथा तारे का मानवीकरण करने के कारण मानवीय अलकार था
- काव्याश में गेयता का गुण विधमान था
- जब जगकर में अनुप्रास अलकार था
- हेम कुभ में रूपक अलकार था
अभिव्यक्ति माध्यम
प्रश्न – भारत का पहला छापाखाना कब और कहाँ खुला था ?
उत्तर – भारत का पहला छापाखाना 1556 में खुला |
प्रश्न – मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता क्या मानी जाती है ?
उत्तर – मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता या शक्ति यह है कि छपे हुए शब्दों में स्थायित्व होता है। उसे आप आराम से और धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं। पढ़ते हुए उस पर सोच सकते हैं। अगर कोई बात समझ में नहीं आई तो उसे दोबारा या जितनी बार इच्छा करे, उतनी बार पढ़ सकते हैं।
प्रश्न – उल्टा पिरामिड शैली का तात्पर्य समझाइए ।
उत्तर – उल्टा पिरामिड शैली से हमारा तात्पर्य समाचार लेखन से है। समाचार को पढ़ते समय आपने महसूस किया होगा समाचार के आरंभ में ही उस विषय की पूरी जानकारी दे दी जाती है। इसमें घटना, विचार, समस्या के सबसे अहम तथ्यों या पहलुओं के सबसे पहले बताया जाता है और उसके बाद घटते हुये महत्व क्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है। यह समाचार का सबसे महत्वपूर्ण भाग है , जिसके अंतर्गत समाचार का संपूर्ण सार नहीं होता है।
प्रश्न – स्तंभ-लेखन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – विचार लेखन का एक रूप है। लेखकों कि प्रसिद्धी के अनुसार समाचार पत्र उनको स्तंभ लेखन कि जिम्मेदारी देता है। यह लेख वैचारिक रूप से बहुत जनाकरिपूर्ण होता है। स्तंभ लेखन अनेक विषयों पर लिखा जाता है। प्रमुख विषय राजनैतिक रणनीतीयां या अर्थशास्त्र पर आधारित होता है।
प्रश्न – समाचार लेखन के छह ‘ककार’ कौन-कौन से हैं?
उत्तर – समाचार लेखन के छह ‘ककार’ – क्या, किसके (या कौन), कहाँ, कब, क्यों और कैसे – हैं |
प्रश्न – “समाचार’ शब्द को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर – समाचार किसी भी ऐसी घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट होता है, जिसमें अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका अधिकाधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो।
प्रश्न – पत्रकारीय लेखन किसे कहते हैं ?
उत्तर – पत्रकारीय लेखन में अलंकारिक – संस्कृतनिष्ठ भाषा-शैली के बजाय आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल किया जाता है। पाठकों को ध्यान में रखकर ही अखबारों में सीधी, सरल, साफ़-सुथरी लेकिन प्रभावी भाषा के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जाता है ।
प्रश्न – मीडिया को लोकतंत्र का चौथा खंभा क्यों कहा जाता है ?
उत्तर – प्रेस यानी कि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है क्योंकि इसके द्वारा ही विभिन्न विषयों पर सरकारी नीतियों के अतिरिक्त शिक्षा, स्वास्थ्य, जन कल्याण एवं विकास की सरकारी योजनाओं की जानकारी आम जनता तक तथा जनता की आवश्यकताएं, समस्याएं और अपेक्षाएं सरकार तक पहुँचती हैं । मीडिया एक सजग प्रहरी की भाँति प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए योजनाओं के क्रियान्वयन में विसंगतियाँ व घोटाले उजागर कर कर्मचारियों में ईमानदारी, सेवा, त्याग व कर्तव्यपरायणता को प्रोत्साहित करती है ।
प्रश्न – इंटरनेट पत्रकारिता आजकल बहुत लोकप्रिय क्यों हैं?
उत्तर –
- इससे दृश्य एवं प्रिंट दोनों माध्यमों का लाभ मिलता है।
- इससे खबरें बहुत तीव्र गति से पहुँचाई जाती हैं।
- इससे खबरों की पुष्टि तत्काल होती है।
- इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन ही होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है।
प्रश्न – संपादक के दो मुख्य कार्यों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – संपादक के कार्य –
- संपादक समाचारों के संबंध में उसकी प्रमाणिकता और निष्पक्षता की जांच करता है। यह संपादक का पूर्ण रूप से उत्तर दायित्व है कि वह खबरों की प्रमाणिकता और निष्पक्षता के बारे में पूर्ण जांच कर संतुष्ट होकर ही खबरों को छपने के लिये स्वीकृत करे।
- संपादक का उत्तर दायित्व है कि वह समय की प्रासंगिकता के अनुसार तथा संतुलन व महत्व के अनुसार समाचार पत्र में उन खबरों को स्थान दे जिन का महत्व उस समय सबसे ज्यादा है, जो खबरें तात्कालीन समय के अनुसार ज्यादा प्रासंगिक हैं, तथा जो उस समय अधिक महत्वपूर्ण हों।
प्रश्न – टेलीविजन को जनसंचार का सबसे लोकप्रिय माध्यम क्यों कहा गया है ?
उत्तर – टेलीविज़न जनसंचार का सर्वाधिक ताकतवर व लोकप्रिय माध्यम है। इसमें शब्द, ध्वनि व दृश्य का मेल होता है जिसके कारण इसकी विश्वसनीयता कई गुना बढ़ जाती है।
प्रश्न – फीचर किसे कहते हैं ?
उत्तर – पत्रकारिता के क्षेत्र में फीचर किसी विषय पर आधारित सृजनात्मक एवं व्यवस्थित लेखन होता है, जिसका उद्देश्य पाठकों के मनोरंजन करने के साथ-साथ उन्हें जागरूक करके उन्हें शिक्षित करना होता है।
प्रश्न – फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ क्या है ?
उत्तर – फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ – सबसे पहले कोई बड़ी खबर फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जाती है। इसमें कम-से-कम शब्दों में महज़ सूचना दी जाती है।
प्रश्न 1- “मैंने भ्रमवश जीवन संचित मधुकरियों की भीख लुटाई” काव्य पंक्ति में देवसेना क्या कहना चाह रही है और क्यों?
उत्तर – देवसेना निराश और दुखी होकर जीवन के उस समय को याद करती है जब उसने स्कन्दगुप्त से प्रेम किया था। उन्हीं क्षणों को याद करते हुए वह कहती है कि मैंने स्कन्दगुप्त से प्रेम किया और उन्हें पाने की चाह मन में पाली, किन्तु यह मेरा भ्रम ही था। मैंने आज जीवन की आकांक्षारूपी पूँजी को भीख की तरह लुटा दिया है। मैं इच्छा रखते हुए भी स्कन्दगुप्त का प्रेम नहीं पा सकी। आज मुझे अपनी इस भूल पर पश्चात्ताप होता है।
प्रश्न 2- तुलसीदास के पदों के आधार पर राम के वन गमन के बाद कौशल्या की मनोदशा का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – राम के वन-गमन जाने के बाद माँ उनकी वस्तुएँ देखकर भाव-विभोर हो जाती हैं। उनका स्नेह आँसुओं के रूप में आँखों से छलक पड़ता है। उन्हें राजभवन में तथा राम के भवन में राम ही दिखाई देते हैं। उनकी आँखें हर स्थान पर राम को देखती हैं और जब उन्हें इस बात का स्मरण आता है कि राम उनके पास नहीं हैं, वह चौदह वर्षों के लिए उनसे दूर चले गए है, तो वे चित्र के समान चकित और स्तब्ध रह जाती हैं। राम से जूड़ी वस्तु को नेत्रों से लगा लेती हैं। वह इतनी व्याकुल हो जाती हैं कि उन्हें स्वयं की भी सुध नहीं रहती हैं। पुत्र के कष्टों का भान करते हुए वे और भी दुखी हो जाती हैं।
प्रश्न 3 – ‘दीप अकेला’ के प्रतीकार्थ को स्पष्ट करते हुए बताइए कि कवि ने उसे स्नेहभरा, गर्वभरा और मदमाता क्यों कहा है?
उत्तर – इस कविता में दीप को अकेला बताया गया है। हर मनुष्य भी संसार में अकेला आता है। पंक्ति का अर्थ समाज से लिया गया है। पंक्ति में दीप को लाकर रख देना का तात्पर्य है कि उसे समाज का एक भाग बना देना। कविता में दीप एक ऐसे व्यक्ति का प्रतीक है, जो स्नेह, गर्व तथा अहंकार से युक्त है। दीप तेल के कारण जलता है, वैसे ही मनुष्य भी स्नेह के कारण जीवित रहता है। दीप संसार को प्रकाशित करता है। उसकी लौ झुकती नहीं है, जो उसके गर्व का सूचक है। मनुष्य में अपने कार्यों के कारण गर्व विद्यमान होता है, वह कहीं झुकता नहीं है। जलते हुए दीप की लौ इधर-उधर हिलती रहती है। कवि ने इसे ही मदमाती कहा है। मनुष्य भी मस्ती में इधर-उधर मदमाता रहता है। यही कारण है कि कवि ने उसे स्नेह भरा, गर्व भरा एव मदमाता कहा है।
प्रश्न 4 – राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं ? ‘भरत-राम का प्रेम’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -भरत अपने बड़े भाई राम से बहुत स्नेह करते हैं। वे स्वयं को अपने बड़े भाई राम का अनुचर मानते हैं और उन्हें भगवान की तरह पूजा करते हैं। वन में जब वे भाई से मिलने जाते हैं, तो उनके सामने खड़े होकर वे प्रसन्नता से फूले नहीं समाते। अपने भाई से मिलन होने पर उनकी आँखों में आँसुओं की जलधारा प्रवाहित होने लगती हैं। अपने भाई को अपना स्वामी कहकर, वह अपनी इच्छा प्रकट करते हैं। भाई की विशेषताओं का बखान करके वे अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं और आशा करते हैं कि भाई के दर्शन प्राप्त होने के बाद सब अच्छा ही होगा। अपने वनवासी भाई की दशा देखकर वह दुखी हो उठते हैं और स्वयं को इसका कारण मानते हैं। उनकी यही अधीरता अपने बड़े भाई के प्रति अपार श्रद्धा का परिचायक है।
प्रश्न 5 – संवदिया की क्या विशेषताएँ हैं और गाँव वालों के मन में उसके प्रति क्या अवधारणा है ?
उत्तर – संवदिया कि विशेषताएँ इस प्रकार हैं
- दिए गए संवाद को जैसे है, वैसा ही बोलना पड़ता है।
- संवाद के साथ भावों को भी वैसे का वैसा बताना पड़ता है।
- संवाद को समय पर पहुँचाना एक संवदिया की विशेषता होती है।
- संवदिया को भावनाओं में नहीं बहना चाहिए। उसे संवाद को भावनाओं से अलग रखना चाहिए।
- उसे मार्ग का ज्ञान होना चाहिए।
- संवाद को पहुँचाने में गोपनियता बहुत आवश्यक है।
गाँव वालों के मन में संवदिया के प्रति अवधारणा – गाँववालों के मन में अवधारणा है कि संवदिया एक कामचोर, निठल्ला तथा पेटू आदमी होता है, जिसके पास कोई काम नहीं होता, वह संवदिया बन जाता है।
प्रश्न 6 – उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ की पहली झलक रामचन्द्र शुक्ल ने किस प्रकार देखी ?
उत्तर – लेखक के पिता की बदली, मिर्जापुर के बाहर नगर में हुई थी। वहाँ रहते हुए उन्हें एक दिन पता चला कि भारतेन्दु हरिश्चंद्र के मित्र जिनका नाम उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी है और जो ‘प्रेमघन’ उपनाम से लिखते हैं, वे यहाँ रहते हैं। लेखक उन्हें मिलने को आतुर हो उठा और अपने मित्रों की मंडली के साथ योजना अनुसार एक-डेढ़ मिल चलकर उनके घर के नीचे जा खड़ा हुआ। इसके लिए उन्होंने ऐसे बालकों को भी खोज लिया, जो उनके घर से तथा प्रेमघनजी से भली-भांति परिचित थे। उनके घर की ऊपरी बालकनी लताओं से सुज्जित थी। लेखक ऊपर की और लगातार देखता रहा कुछ देर में उसे प्रेमघन की झलक दिखाई पड़ी। उनके बाल कंधों तक लटक रहे थे। लेखक जब तक कुछ समझ पाता वे अंदर चले गए।
प्रश्न 7 – नास्सेर अराफ़ात के आतिथ्य प्रेम की दो घटनाओं का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए ।
उत्तर – अराफात के आतिथ्य प्रेम अपने आप में एक मिसाल है जिसके दो घटना इस प्रकार है
- यह बड़े प्रेम का शहद का शरबत पीने का आग्रह करते थे |
- इतना प्रेम था इसके आतिथ्य में वही का अनूठा फल खाने कह रहे थे बिच बिच में सहेद की चटनी के बारे में बताते जा रहे थे |
प्रश्न 8 – बड़ी बहुरिया का संवाद हरगोबिन क्यों नहीं सुना पाया ? उसकी विवशता पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर – बड़ी बहुरिया उस गाँव की लक्ष्मी थी। अपने गाँव की लक्ष्मी की दशा दूसरे गाँव में जाकर सुनाना उसे अपमान लगा। उसे यह सोचकर बहुत शर्म आई की उसके गाँव की लक्ष्मी इतने कष्ट झेल रही है और गाँव अब तक कुछ नहीं कर पाया। उनके रहते हुए उनके गाँव की लक्ष्मी किसी और गाँव से सहायता माँगे, यह तो गाँववालों के लिए डूब मरने वाली बात है। अतः वह बड़ी बहुरिया का संवाद सुना नहीं सका।
प्रश्न 9 – फाल्गुन मास में जायसी की विरहिणी नायिका की वेदना-अनुभूति का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – फागुन मास के समय वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों से ढाँखें गिरते हैं। विरहिणी के लिए यह माह बहुत ही दुख देने वाला है। चारों ओर गिरती पत्तियाँ उसे अपनी टूटती आशा के समान प्रतीत हो रही हैं। हर एक गिरता पत्ता उसके मन में विद्यमान आशा को धूमिल कर रहा है कि उसके प्रियतम शीघ्र ही आएँगे। पत्तों का पीला रंग उसके शरीर की स्थिति को दर्शा रहा है। जैसे अपने कार्यकाल समाप्त हो जाने पर पत्ते पीले रंग के हो जाते हैं, वैसे ही प्रियतम के विरह में जल रही नायिका का रंग पीला पड़ रहा है। अतः फागुन मास उसे दुख को शांत करने के स्थान पर बड़ा ही रहा है। फागुन के समाप्त होते-होते वृक्षों में नई कोपलों तथा फूल आकर उसमें पुनः जान डालेंगे। परन्तु नागमती के जीवन में सुख का पुनः आगमन कब होगा यह कहना संभव नहीं है।
उसके मन में न तो उल्लास है और न आशा। वह पूरी तरह हताश है और सोचती है कि अब प्रिय (रत्नसेन) वापस ही नहीं आएगा। इसलिए जहाँ. और सब लोग होली एवं वसन्त के उल्लास में भरे हुए हैं वहाँ विरहिणी नागमती का हृदय विरह की आग में जल रहा है।
प्रश्न 10 – “मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ’ में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – राम के स्वभाव की विशेषता –
- राम दयालु और स्नेही व्यक्ति हैं। उन्होंने बाल्यकाल से ही भरत पर स्नेह और दया की वर्षा की है।
- भरत, राम के प्रिय अनुज थे। उन्होंने सदैव भरत के हित के लिए कार्य किया है।
- वे खेल में भी कभी अपने अनुज भरत के प्रति अप्रसन्नता नहीं दिखाते थे। वे सदैव उसे प्रसन्न रखने का प्रयास करते थे।
- वे अपराधी पर क्रोध नहीं करते थे।
प्रश्न 11 – जलालगढ़ लौटने के बाद बड़ी बहुरिया के सामने हरगोबिन ने क्या संकल्प किया और क्यों ?
उत्तर – बड़ी बहू के मायके से जब हरगोबिन संवदिया अपने गाँव जलालगढ़ लौटा तो भूखा-प्यासा, थका-हारा हरगोबिन 20 कोस की लम्बी यात्रा पैदल तय करके जब जलालगढ़ पहुँचा तो थकान और भूख के कारण बेहोश हो गया। जब होश में आया तो बड़ी बहुरिया के पैर पकड़कर उसने माफी माँगी और उन्हें बताया कि वह उनका संवाद उनके मायके में नहीं सुना सका।
वह नहीं चाहता कि गाँव की लक्ष्मी गाँव से जाए। हरगोबिन ने बड़ी बहुरिया से संकल्प व्यक्त किया कि आज से मैं आपका बेटा हूँ और आप मेरी ही नहीं सारे गाँव की माँ हैं। आप गाँव छोड़कर नहीं जाएँगी। अब मैं आपको कोई कष्ट नहीं होने दूंगा। आपकी देखभाल मैं बेटा बनकर करूँगा और निठल्ला न रहकर काम-काज करूँगा। आपका सारा काम भी मैं ही करूँगा बस आप गाँव छोड़कर न जाएँ। वह चाहता था कि बड़ी बहू गाँव में रहकर गाँव की प्रतिष्ठा की रक्षा करें।
प्रश्न 12 – “धर्म का रहस्य जानना सिर्फ धर्माचार्यों का काम नहीं । कोई भी व्यक्ति अपने स्तर पर उस रहस्य को जानने का हक़दार है, अपनी राय दे सकता है ।” टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर – ‘धर्म का रहस्य जानना सिर्फ़ धर्माचार्यों का काम नहीं, कोई भी व्यक्ति अपने स्तर पर उस रहस्य को जानने की कोशिश कर सकता है, अपनी राय दे सकता है।’- यह कथन बिलकुल सही है। धर्म इतना रहस्यमय नहीं है कि इसे साधारण जन समझने में असमर्थ हो। धर्म की बहुत सीधी सी परिभाषा है। इसे । धर्माचार्यों ने जटिल बना दिया है। इसकी कहानियों को गलत अर्थ देकर वे लोगों को भ्रमित करते हैं। इस तरह साधारण जन समझ लेते हैं कि धर्म उनके समझने के लिए नहीं बना है।
अतः धर्म को समझने के लिए वे धर्माचार्यों या धर्मगुरूओं का सहारा लेते हैं। इसके विपरीत धर्म बहुत ही सरल है। मानवता धर्म की सही परिभाषा है। मनुष्य का कार्य है कि वह प्रत्येक जीव-जन्तु, सभी प्राणियों के लिए दया भाव रखे, किसी को अपने स्वार्थ के लिए दुखी न करे, यही धर्म है। महाभारत में इसकी बहुत ही सरल व्याख्या मिलती है। कृष्ण ने दुर्योधन को अधर्मी कहा है और पांडवों को धर्म का रक्षक कहा है। यदि हम दुर्योधन के कार्यों पर दृष्टि डालें तो उसने जितने भी कार्य किए वे मानवता के नाम पर कलंक थे। अतः यह कहानी हमें धर्म की सरल परिभाषा प्रदान करती है। फिर हम क्यों धर्म को समझने के लिए किसी का सहारा लेते हैं। हमें स्वयं इसे समझना चाहिए। हमें स्वयं इसे जानना चाहिए। उसके बाद जो सत्य सामने आएगा, वह हमारे लिए महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 13 – रामचंद्र शुक्ल ने चौधरी प्रेमघन के व्यक्तित्व के किन पहलुओं को उजागर किया है? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर –
- उनका व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि सब उन्हें कुतूहल की दृष्टि से देखा करते थे। उन्हें जानने के प्रयास में सबके अंदर जिज्ञासा विद्यमान रहती थी।
- उनकी हर एक अदा से रियासत और तबीयतदारी टपकती थी- चौधरी साहब रईस परिवार से संबंधित थे। उनके स्वभाव में रईसी रच-बच गई थी। उनकी रईसी उनके हर हाव-भाव से दिखाई देती थी। उन्हें अनज़ान व्यक्ति भी बता सकता था कि ये धनी परिवार के हैं।
- जो बातें उनके मुँह से निकलती थीं, उनमें एक विलक्षण वक्रता रहती थी।– अर्थात चौधरी साहब कुछ भी बोलते थे, उसमें कुटिलता का समावेश विद्यमान रहता था। वह सीधी बात बोलना नहीं जानते थे।
- चौधरी साहब के बाल कंधे तक लटके रहते थे। उस समय इस प्रकार की केशसज्जा पुरुषों की नहीं हुआ करती थी। वामनाचार्यगिरी ने उन पर व्यंग्य करते हुए कहा था कि खंभे पर टेक लगाकर चौधरी ऐसे खड़े हैं मानो कोई मुस्लिम स्त्री खड़ी हो।
प्रश्न 14 – ‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के आधार पर उस स्मृति पर प्रकाश डालिए जिसके साथ लेखक को मृत्यु का बोध अजीब तौर से जुड़ा मिलता है।
उत्तर – लेखक ने उस सुन्दर औरत को तब देखा था, जब वह दस साल का था। वह उससे दस साल बड़ी थी। उसके मन में उसके प्रति गहरा आकर्षण था। उसकी यह आसक्ति कभी नहीं मिटी, जीवन भर बनी रही। शर्म और संकोच के कारण वह उससे कुछ न कह सका। लेखक उस औरत को प्रकृति के साथ तदाकार करके देखता था। ऐसा लगता था जैसे प्रकृति उसके रूप में सजीव हो उठी हो।
चाँदनी रात में जूही के सफेद फूलों के समान सुन्दरता तथा गंध लेखक को आकर्षित करती थी। वह उसको सफेद फूलों और चाँदनी के समान सफेद साड़ी पहने, काले बादलों जैसे घने काले केशों को सँवारे दिखाई देती थी। उसकी आँखों में विचित्र-सी आर्द्र-व्यथा थी। वह सिर्फ इंतजार करती थी। वह संगीत, नृत्य, मूर्ति, कविता, स्थापत्य यानी कि कला के हर रूप के आस्वाद में उपस्थित रहती थी। उस औरत के प्रति यह गहरी आसक्ति लेखक में सदैव बनी रही। यह स्मृति उसे बराबर रही और इसी के साथ मृत्यु का एक अजीब प्रकार का बोध भी जुड़ा रहा।
प्रश्न 15 – “बिस्कोहर की माटी’ पाठ में गाँव के बारे में आपको क्या-क्या जानकारियाँ मिलीं ? कम-से-कम पाँच जानकारियों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – गांव में अजीबो-गरीब मान्यताएं भी लोगों के बीच व्याप्त है। जैसे फूलों को देवी-देवता तथा भूत-पिशाच , चुड़ैल आदि से जोड़ना। ग्रामीण लोग दवाई खाने के बजाय प्राकृतिक रूप से अपना इलाज स्वयं करते हैं। फूल-पत्तियों का प्रयोग करके अपने रोगों को दूर करते हैं। बिस्कोहर लेखक का गांव है , अपने गांव को लेखक ने पाठ के माध्यम से अमर बनाने का प्रयास किया है। कुल मिलाकर लेखक ने ग्रामीण परिवेश में प्राकृतिक संसाधनों और उसके अनुपम सौंदर्य का कथानक तैयार किया है।
गाँव के बारे में जानकारियाँ –
- गाँव के परिवेश के बारे में पता चला।
- गाँव में उगने वाले फूल, फल, पेड़-पौधे तथा साँपों के बारे में पता चला।
- ऋतुओं में गाँवों में होने वाले बदलावों तथा उससे संबंधित बीमारियों के बारे में पता चला।
- गाँवों में प्रयुक्त किए जाने वाले शब्दों का पता चला।
- गाँव में व्याप्त प्राकृतिक सौंदर्य का पता चला।
प्रश्न 16 – ‘बिसनाथ मान ही नहीं सकते कि बिस्कोहर से अच्छा कोई गाँव हो सकता हैं’- लेखक की इस धारणा के पीछे निहित कारणों की चर्चा लगभग 150 शब्दों में कीजिए।
उत्तर – बिस्कोहर बिसनाथ (लेखक) का गाँव है। वह बिस्कोहर में ही पैदा हुआ तथा पला-बढ़ा है। इस पाठ में लेखक ने अपने गाँव का वर्णन अत्यन्त तन्मयतापूर्वक किया है। इससे अपने गाँव के प्रति उनके गहरे प्रेम का पता चलता है। उनको अपने गाँव की मिट्टी, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु आदि सब अच्छे लगते हैं। उनको अपने गाँव का प्राकृतिक सौन्दर्य आकर्षक लगता है। अपने से दस वर्ष बड़ी औरत का रूप उन्हें प्रकृति, संगीत, कविता सब में दृष्टिगत होता है। उन्हें अपने गाँव से ज्यादा सुन्दर कोई दूसरा गाँव नहीं लगता, बिस्कोहर की औरतों से सुन्दर किसी अन्य स्थान की औरत भी सुन्दर नहीं लगती। बिसनाथ मान ही नहीं सकते कि बिस्कोहर से अच्छा कोई गाँव हो सकता है और बिस्कोहर से ज्यादा सुन्दर कहीं की औरत हो सकती है।
प्रश्न 17 – “बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं, माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन चरित होता है।” “बिस्कोहर की माटी” पाठ के आधार पर पुष्टि कीजिए ।
उत्तर – माँ अपने बच्चे को आँचल में छिपाकर दूध पिलाती है। बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं, माँ से बच्चे. के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है।’ बच्चा सुबकता है और रोता है। वह माँ को मारता है। माँ भी कभी-कभी बच्चे को मारती है फिर भी बच्चा माँ से चिपटा रहता है।
माँ भी उसे अलग नहीं करती, चिपटाए रहती है। बच्चा माँ के पेट का स्पर्श करता है। वह उसके शरीर की गंध सूंघता है। इस स्पर्श से बच्चा जैसे माँ के पेट में अपना स्थान तलाशता है। चाँदनी रात में खटिया पर लेटकर बच्चे को दूध पिलाते समय माँ दूध ही नहीं, उसे चाँदनी भी पिलाती है। चाँदनी भी माँ के समान ही बच्चे को ममता, पुलक और स्नेह देती है। माँ की गोद में लेटकर माँ का दूध पीना मानव जीवन की सार्थकता है।
माँ का दूध पीने के साथ ही बच्चे का माँ के साथ जीवनभर का अटूट बंधन जुड़ जाता है। बच्चा माँ की ममता पाना चाहता है, उसके लिए तरसता है। माँ में बच्चे के प्रति ममता का गुण प्रकृति प्रदत्त होता है। बच्चे के प्रति ममता और स्नेह उसके मन में सदा बने रहते हैं। माँ का दूध पीने से बालक तथा माँ में जो सम्बन्ध जुड़ता है, वह जीवन भर कभी नहीं टूटता।
प्रश्न 18 – ‘दीप ‘अकेला’ का प्रतीकार्थ समझाते हुए लिखिए कि व्यष्टि का समष्टि में विलय क्यों और कैसे संभव हैं ?
उत्तर – कविता में दीप को अकेला बताया गया है। हर मनुष्य भी संसार में अकेला आता है। पंक्ति का अर्थ समाज से लिया गया है। दीप को पंक्ति में रखने का तात्पर्य समाज के साथ जोड़ना है। इसे ही व्यष्टि का समिष्ट में विलय कहा गया है। ऐसा होना आवश्यक है। समाज में रहकर ही मनुष्य अपना तथा समाज का कल्याण करता है। इस तरह ही समाज और मनुष्य का कल्याण होता है। जिस तरह दीप पंक्ति में स्थान पाकर अधिक बल से संसार को प्रकाशित करता है, वैसे ही मनुष्य समाज में एकीकार होकर समाज का विकास करता है। दोनों का विलय होना आवश्यक है। उनकी शक्ति का विस्तार है। अकेला व्यक्ति और दीप कुछ नहीं कर सकते हैं। जब वह पंक्ति तथा समाज में विलय होते हैं, तो उनकी शक्ति का विस्तार होता है। अन्य के साथ मिलकर वह अधिक शक्तिवान हो जाते हैं।
प्रश्न 19 – “वह ‘लड्डू’ की पुकार जीवित वृक्ष के हरे पत्तों का मधुर मर्मर था, भरे काठ की अलमारी की सिर दुखाने वाली खड़खड़ाहट नहीं” – लेखक के इस कथन का आशय स्पष्ट करते हुए ‘बालक बच गया’ लघु निबन्ध के संदेश पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – बालक की स्वाभाविक प्रवृत्ति खेलने-कूदने एवं खाने-पीने की होती है न कि गंभीर विषयों के अध्ययन की। अभिभावकों एवं अध्यापकों ने उसे गंभीर विषयों के उत्तर रटाकर और स्वाभाविक प्रवृत्तियों से विरत कर ठीक नहीं किया था। यही कारण था कि पीले चेहरे वाला और निस्तेज आँखों वाला वह बालक स्वस्थ नहीं कहा जा सकता।एक आठ वर्षीय बालक किसी चमकती वस्तु की ओर आकर्षित होता है, उसके अंदर अच्छे से अच्छा खाने का मोह होता है , उसके अंदर अपने उम्र से उच्च की चीजों का मनन करने की क्षमता कम होती है।
ये नए – नए चमकदार रंगों के प्रति आकर्षित होते है एवं सुंदर दिखने वाले कपड़ों को पहनने की ख़्वाहिश रखते है और उसके अंदर तरह – तरह की इच्छाओं का ज्वार उठता है। साथ ही जब उससे मन मुताबिक इनाम माँगने को कहा गया तो उसने लड्डू माँगा। उसके द्वारा लड्डू की माँग करना हरे पत्तों की मर्मर ध्वनि जैसी थी जो मधुर थी, स्वाभाविक एवं जीवंत थी, जबकि रटे हुए उत्तर देकर प्रतिभा प्रदर्शन की क्रिया सूखे पेड़ से बनी काठ की अलमारी की खड़खड़ाहट थी, जिसे सुनकर आनंद नहीं मिलता, सिर दुखता था।
बालक से उसके अभिभावक और शिक्षक जो कहलवा रहे थे वह अस्वाभाविक था, जबकि खेल-कूद एवं खाने-पीने की इच्छा बालक की स्वाभाविक प्रवृत्ति थी। लड्डू माँगना इसी स्वाभाविक प्रवृत्ति का बोध कराता है।
प्रश्न 20 – “तो हम भी सौ लाख बार बनाएँगे ।” इस कथन के आलोक में सूरदास के जीवन से प्राप्त होने वाले मूल्यों की चर्चा लगभग 150 शब्दों में कीजिए ।
उत्तर – सूरदास की झोंपड़ी’ का नायक एवं प्रमुख पात्र सूरदास ही है। उसकी झोंपड़ी जला दी जाती है और जीवन-भर की संचित कमाई चोरी हो जाती है। वह निराश, उदास और दुःखी है। मिठुआ के पूछने पर वह अपनी झोंपड़ी को बार-बार बनाने का निश्चय प्रकट करता है और कहता है “तो हम सौ लाख बार बनाएँगे।” इस कथन के सन्दर्भ में सूरदास के चरित्र की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- दृढ़- निश्चयी-सूरदास भिखारी होते हुए भी दृढ़-निश्चयी है। उसकी झोंपड़ी को द्वेषवश भैरों जला देता है और रुपये चुरा लेता है। सूरदास बहुत दुःखी है, किन्तु उसमें निश्चय की कमी नहीं है।
- बालोचित सरलता- सूरदास में बालोचित सरलता है। झोंपड़ी के जलने पर और रुपयों के न मिलने पर वह दुःखी होकर रोने लगता है। परन्तु घीसू को मिठुआ से यह कहते सुनकर”खेल में रोते हो” वह एकदम बदल जाता है, उसका पराजयभाव समाप्त हो जाता है।
- कर्मठ और उदार सूरदास कर्मठ है। वह भीख माँगता है, परन्तु अपने कामों में लगा रहता है। द्वेषवश भैरों उसकी झोंपड़ी जला देता है तथा रुपये चुरा लेता है तब भी वह उसके प्रति उदार बना रहता है।
- परम्परा का प्रेमी सरदास धार्मिक परम्परा को मानता है। वह अपने पुरखों का पिंडदान कर है। दूसरों के हित में कुँआ बनवाना चाहता है। वह मिठुआ की शादी करने का अपना कर्तव्य भी निभाना चाहता है। वह भैरों की पत्नी सुभागी को पिटने से बचाता है। वह अपने रुपयों की चोरी को पूर्व जन्म के पाप का परिणाम मानता है।
- सहनशील- सूरदास सहनशील व्यक्ति है। झोंपड़ी जलने से उसकी सभी आशाएँ और योजनाएँ जल जाती हैं, पर वह सब कुछ चुपचाप सह लेता है।
प्रश्न 21 – ‘सूरदास की झोंपड़ी’ पाठ के आधार पर सूरदास के व्यक्तित्व की किन्हीं तीन विशेषताओं पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
उत्तर – सूरदास के व्यक्तित्व की विशेषताएँ –
- दयालु और सहानुभूतिपूर्ण-सूरदास दयालु और सीधा-सच्चा मनुष्य है। सुभागी को पिटता देख वह उससे सहानुभूति रखता है और उसे भैरों की पिटाई से बचाता है। वह गाँव के अन्य जनों की सहायता के लिए भी तत्पर रहता है।
- संहनशील- सूरदास अत्यन्त सहनशील है। यह जानकर भी कि भैरों ने उसकी झोंपड़ी जलाई है तथा रुपये चुराये हैं, बह कुछ नहीं कहता। अपने ऊपर लगाए गए लांछन को भी वह शांत मन से सहन करता है।
- आत्म-विश्वास – सूरदास आत्म-विश्वास की भावना से भरा हुआ है। रुपये चोरी हो जाने पर वह अपनी योजनाओं के अपूर्ण रह जाने से चिन्तित तो है, परन्तु फिर से रुपया कमाकर उन्हें पूरा करने का विश्वास भी उसको हैं।
प्रश्न 22- ‘बिस्कोहर की माटी’ में लेखक ने किन कारणों से अपनी माँ की तुलना बत्तख से की है ? उन पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – बत्तख सुरक्षित स्थान पर अंडे देती है तथा उनको सेती है। वह पंख फुलाकर उन्हें सबकी दृष्टि से बचाती है। वह कौए इत्यादि से अपने अंडों को बचाती है। बिसनाथ की माँ ने भी अपने बच्चे (बिसनाथ) को जन्म दिया है, दूध पिलाया है तथा उसको पाला-पोसा है। वह अपने अंडों तथा बच्चों की सुरक्षा के लिए बहुत सतर्कता के साथ-साथ कोमलता से काम लेती है। एक तरफ जहाँ वह सतर्क होती है, वहीं दूसरी ओर वह प्रयास करती है कि उसके अंडों तथा उनसे निकलने वाले बच्चों को कोई नुकसान न हो। ऐसे ही बिसनाथ की माँ भी करती है।
बत्तख अपने अंडों को दूसरों से बचाती है। बिसनाथ की माँ भी उसकी सुरक्षा का ध्यान रखती है। वह अपने बच्चे की बहुत अच्छे से देखभाल करती है। बिसनाथ की माँ अपने पुत्र के प्रति गहरा ममता-भाव रखती है। बत्तख को भी अपने अंडों से बेहद ममता है। दोनों में ममता का यह भाव स्वाभाविक तथा प्रकृति-प्रदत्त गुण है। बत्तख अपनी सख्त चोंच का प्रयोग अंडों के ऊपर करने में बहुत सावधान रहती है। बिसनाथ की माँ भी अपने बेटे के साथ कोमलता तथा ममता का व्यवहार करती है। वह उसे दूध पिलाती है। अपने साथ सुलाती है। उसका हर कार्य करती है। इसी कारण लेखक बिसनाथ ने अपनी माँ की तुलना बत्तख से की है।
प्रश्न 23- सूरदास की झोंपड़ी में आग किसने और क्यों लगाई ? झोंपड़ी जलने के बाद सूरदास की मनोदशा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – भैरों ने सूरदास की झोपड़ी में आग लगाई थी जब भैरों तथा उसकी पत्नी के बीच में लड़ाई हुई, तो नाराज़ सुभागी सूरदास के घर रहने चली गई। भैरों के लिए यह बात असहनीय थी। भैरों को सूरदास का यह करना अपना अपमान लगा। जिस घर के दम पर उसने सुभागी को साथ रखा था, उसने उसी को जला दिया। इस तरह उसने सूरदास की झोपड़ी में आग लगा दी और अपने अपमान का बदला ले लिया।
सूरदास अपने रुपए की चोरी की बात से दुखी हो चूका था। उसे लगा की उसके जीवन में अब कुछ शेष नहीं बचा है। अचानक घीसू द्वारा मिठुआ को यह कहते हुए सुना कि खेल में रोते हो। इन कथनों की सूरदास की मनोदशा पर चमत्कारी परिवर्तन कर दिया। दुखी और निराश सूरदास जैसे जी उठा। उसे अहसास हुआ कि जीवन संघर्षों का नाम है।
इसमें हार-जीत लगी रहती है। इंसान को चोट तथा धक्कों से डरना नहीं चाहिए। बल्कि जीवन संघर्षों का डटकर सामना करना चाहिए। जो मनुष्य जीवन रूपी खेल में हार मान लेता है, उसे दुख और निराशा के अलावा कुछ नहीं मिलता है। अपने दुख पर प्राप्त विजय-गर्व की तरंग ने जैसे उसमें प्राण डाल दिए और वह राख के ढेर को प्रसन्नता से दोनों हाथों से उड़ाने लगा। यह ऐसे मनुष्य की मनोदशा है, जिसने हार का मुँह तो देखा परन्तु जो हारा नहीं बल्कि अपनी हार को भी जीत में बदल दिया।
प्रश्न 24 – “बिसनाथ मान ही नहीं सकते कि बिस्कोहर से ज्यादा सुंदर कोई औरत हो सकती है।’ उम्र में स्वयं से लगभग दस बरस बड़ी उस औरत के सौंदर्य को बिसनाथ ने प्रकृति के माध्यम से कैसे चित्रित किया है ?
उत्तर – बिसनाथ जब दस बरस का था तब उसने उस औरत को पहली बार बढ़नी में एक रिश्तेदार के यहाँ देखा था। उसे देखकर ऐसा लगा जैसे बरसात की चाँदनी रात में जूही की खुशबू आ रही है। उन दिनों बिसनाथ बिस्कोहर में संतोषी भइया के घर बहुत जाया करते थे। उनके आँगन में जूही लगी थी। उसकी खुशबू बिसनाथ के प्राणों में बसी थी। चाँदनी में जूही के सफेद फूल ऐसे लगते थे जैसे कि चाँदनी ही फूल बनकर डालों पर लगी हो।
चाँदनी, फूल और खुशबू सभी प्रकृति के ही रूप हैं। वह औरत भी बिसनाथ को जूही की लता बनी हई चाँदनी के रूप में दिखाई दी जिसके फलों से सुगंध आ रही थी। बिसनाथ ने उसे औरत्ते के रूप में नहीं देखा था। उसमें बिसनाथ ने प्रकृति के ही सजीव रूप को देखा था। ऐसा लगता था जैसे प्रकृति ने ही सजीव स्त्री का रूप धारण किया है।
कवि और लेखकों का जीवन परिचय
प्रश्न 1 – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला’ का जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – सूर्यकांत त्रिपाठी का जीवन परिचय –
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन् 1897 ई० (सं०1953 वि०) में बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। ‘निराला’ जी के पिता रामसहाय त्रिपाठी महिषादल स्टेट में नौकर होकर वहीं जा बसे थे। तीन वर्ष की अवस्था में ही इनकी माता का स्वर्गवास हो गया। इनकी पढ़ाई-लिखाई राज्य की ओर से हुई थी। ‘निराला’ जी को बचपन से ही संगीत में गहरी रुचि थी अत: इन्हें बंगला और संस्कृत की शिक्षा दी गयी। पन्द्रह वर्ष की अवस्था में ही ‘निराला’ जी का विवाह हो गया था। हिन्दी का ज्ञान आपने अपनी धर्मपत्नी से ही प्राप्त किया था। एक पुत्र तथा एक कन्या को जन्म देकर इनकी पत्नी संसार से विदा हो गयी। पिता और चाचा का भी स्वर्गवास हो गया।
छोटी अवस्था में परिवार का सारा बोझ इनके कन्धों पर आ पड़ा। ‘निराला’ जी का सारा जीवन संघर्षों में ही बीता | परिवार में एकमात्र पुत्री बची थी लेकिन बीस वर्ष की आयु में वह भी चल बसी। पुस्तक प्रकाशकों और अखबार के मालिकों ने भी इनका खूब शोषण किया। जीवन के अन्तिम दिनों में ‘निराला’ जी विक्षिप्त अवस्था में इलाहाबाद (दारागंज) में एक कोठरी में रहते और रात दिन के सृजन तथा चिन्तन में ही लीन रहते थे। यहीं पर (1961 ई०) में इनका स्वर्गवास हो गया।
साहित्यिक कृतियाँ– गीतिका, अनामिका, अलका, लिली, सखी, चतुरी चमार आदि।
निराला की काव्यगत विशेषताएँ – श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ युगान्तकारी कवि थे। उन्होंने भाव, भाषा, छन्द, अलंकार आदि सभी में प्राचीन एवं परम्पराओं का विरोध किया तथा उन्हें नवीन दिशा दी। उनके काव्य में सर्वत्र नवीनता है।
(क) भाव-पक्ष- हिंदी साहित्य में निराला मुक्त वृत्त परंपरा के प्रवर्तक माने जाते हैं। इनके काव्य में भाषा, भाव और छन्द तीनों समन्वित हैं। ये स्वामी विवेकानन्द और स्वामी रामकृष्ण परमहंस की दार्शनिक विचारधारा से बहुत प्रभावित थे। निराला के काव्य में बुद्धिवाद और हृदय का सुन्दर समन्वय है। छायावाद, रहस्यवाद और प्रगतिवाद तीनों क्षेत्रों में निराला का अपना विशिष्ट महत्वपूर्ण स्थान है।
(ख) कला-पक्ष- भाषा-शैली- निराला जी की भाषा संस्कृतगर्भित खड़ीबाली है। इनकी रचनाओं में उर्दू और फारसी के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं। इनके काव्य में जहाँ हृदयगत भावों की प्रधानता है वहाँ भाषा सरल, मुहावरेदार और प्रवाहपूर्ण है।
(ग) रस-छन्द- अलंकार- निराला के काव्य में श्रृंगार, वीर, रौद्र और हास्य रस का सुन्दर और स्वाभाविक ढंग से परिपाक हुआ है। निराला जी परम्परागत काव्य छन्दों से सर्वथा भिन्न छन्दों के प्रवर्तक माने जाते हैं। इनके मुक्तछन्द दो प्रकार के हैं। (1) तुकान्त (2) अतुकान्त । दोनों प्रकार के छन्दों में लय और धवनि का विशेष ध्यान रखा गया है।
प्रश्न 2 – मलिक मुहम्मद जायसी अथवा जयशंकर प्रसाद के जीवन और रचनाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी दो प्रमुख काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन परिचय –
जीवन परिचय – मलिक मोहम्मद जायसी की जन्म तिथि और इस स्थान को लेकर आज ही मतभेद हैं. इनका जन्म वर्ष 1500 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के जायस नामक कस्बे पर हुआ था | मलिक मोहम्मद के नाम के पीछे जायसी शब्द उपनाम की तरह उपयोग किया जाता है| इनके पिताजी का नाम मलिक राजे अशरफ था | वे एक मामूली जमींदार और किसान पृष्ठभूमि से थे |
मलिक मोहम्मद ने बहुत कम उम्र में अपने पिता को खो दिया था और उसके कुछ सालों बाद अपनी माँ के मातृत्व से भी वंचित होना पड़ा | बचपन में एक हादसे के कारण मलिक मोहम्मद एक आँख से अंधे हो गए थे और चेचक की बीमारी के कारण चेहरा भी खराब हो गया था| मलिक मोहम्मद जायसी के सात पुत्र थे और दुर्घटना में उनके सातों पुत्रों की मृत्यु हो गई थी | जिसकी बाद ही इन्होनें अपना गृहस्थ जीवन त्याग दिया और सूफी संत बन गए |
क़ाज़ी सैयद हुसेन की अपनी नोटबुक के अनुसार वर्ष 1542 में मलिक मुहम्मद जायसी की मृत्यु हुई थी | कहा जाता है कि इनका देहांत अमेठी के आसपास के जंगलो में हुआ था | अमेठी के राजा ने इनकी समाधी बनवा दी, जो अभी भी मौजूद हैं |
मलिक मोहम्मद जायसी और उनकी रचनाएँ
इतिहासकारों के अनुसार जायसी के ग्रंथो की संख्या 20 बताई जाती है परन्तु इनमें से “पद्मावत” “अखरावट” “आखिरी कलाम” “कहरनामा” और “चित्ररेखा” पांच ही उपलब्ध हैं | इनमे से पद्मावत सबसे प्रसिद्ध महाकाव्य हैं | जायसी ने बाबर के शासनकाल में ही आखिरी कलाम (1529-30) और पद्मावत (1540-41) की रचना की थी |
भाषा-शैली की दो प्रमुख विशेषताएँ
- अलंकार निरूपण- जायसी ने पद्मावत में सादृश्य-मूलक अलंकारों का प्रयोग अधिक किया है। सादृश्यमूलक अलंकारों में से भी उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपकातिश्योक्ति तथा सांगरूपकों का प्रयोग अधिक मात्रा में हुआ है |
- छन्द योजना-जायसी ने मुख्य रूप से अपने इस महाकाव्य में चौपाई तथा दोहा छन्द का ही प्रयोग किया है। डॉ. शम्भूनाथ सिंह ने जायसी की इस छन्द पद्धति को ‘कुडवकवद्ध पद्धति’ कहा है। पद्मावत एक चरित काव्य है। चरित-काव्य के लिये दोहा चौपाई, छन्द अधिक उपयुक्त होता है। कदाचित जायसी ने भी इसीलिये इस छन्द-पद्धति को अपनाया।
जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय
प्रसाद जी का जन्म 30जनवरी 1889ई० को काशी के सरायगोवर्धन में हुआ। इनके पितामह बाबू शिवरतन साहू दान देने में प्रसिद्ध थे और एक विशेष प्रकार की सुरती (तम्बाकू) बनाने के कारण ‘सुँघनी साहु’ के नाम से विख्यात थे। इनके पिता बाबू देवीप्रसाद जी कलाकारों का आदर करने के लिये विख्यात थे। किशोरावस्था के पूर्व ही माता और बड़े भाई का देहावसान हो जाने के कारण 17 वर्ष की उम्र में ही प्रसाद जी पर आपदाओं का पहाड़ ही टूट पड़ा। कच्ची गृहस्थी, घर में सहारे के रूप में केवल विधवा भाभी, कुटुबिंयों, परिवार से संबद्ध अन्य लोगों का संपत्ति हड़पने का षड्यंत्र, इन सबका सामना उन्होंने धीरता और गंभीरता के साथ किया।
प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कालेज में हुई, किंतु बाद में घर पर इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ संस्कृत, हिंदी, उर्दू, तथा फारसी का अध्ययन इन्होंने किया। घर के वातावरण के कारण साहित्य और कला के प्रति उनमें प्रारंभ से ही रुचि थी और कहा जाता है कि नौ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने ‘कलाधर’ के नाम से व्रजभाषा में एक सवैया लिखकर ‘रसमय सिद्ध’ को दिखाया था। उन्होंने वेद, इतिहास, पुराण तथा साहित्य शास्त्र का अत्यंत गंभीर अध्ययन किया था। वे बाग-बगीचे तथा भोजन बनाने के शौकीन थे और शतरंज के खिलाड़ी भी थे। वे नियमित व्यायाम करनेवाले, सात्विक खान पान एवं गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे। वे नागरीप्रचारिणी सभा के उपाध्यक्ष भी थे।
रचनाएँ – आकाशदीप, गुंडा, सालवती, स्वर्ग के खंडहर में आँधी, इंद्रजाल, छोटा जादूगर, बिसाती, मधुआ, विरामचिह्न, घीसू आदि |
भाषा-शैली की दो प्रमुख विशेषताएँ
- प्रसाद जी की शौली काव्यात्मक चमत्कारों से परिपूर्ण है।
- भाषा परिष्कृत व परिमार्जित साहित्यिक तथा संस्कृतनिष्ट खड़ीबोली है।
प्रश्न 3 – चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का जीवन और रचनाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी भाषा-शैली की दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का जीवन परिचय –
चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ का जन्म 7 जुलाई, 1883 गुलेर गाँव, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित शिवराम शास्त्री और उनकी माता का नाम लक्ष्मीदेवी था। लक्ष्मीदेवी, पंडित शिवराम शास्त्री की तीसरी पत्नी थी। प्रतिभा के धनी चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने अपने अभ्यास से संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेज़ी, पालि, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं पर असाधारण अधिकार हासिल किया। उन्हें मराठी, बंगला, लैटिन, फ़्रैंच, जर्मन आदि भाषाओं की भी अच्छी जानकारी थी। उनके अध्ययन का क्षेत्र बहुत विस्तृत था। चन्द्रधर ने अपनी सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी से पास की।
चन्द्रधर ने बी.ए. की परीक्षा में भी प्रथम श्रेणी में रहे। उन्होंने अंग्रेज़ी शिक्षा भी प्राप्त की और प्रथम श्रेणी में पास होते रहे। वे अपनी रचनाओं में स्थल-स्थल पर वेद, उपनिषद, सूत्र, पुराण, रामायण, महाभारत के संदर्भों का संकेत दिया करते थे। इसीलिए इन ग्रन्थों से परिचित पाठक ही उनकी रचनाओं को अच्छी तरह समझ सकता था। ग्रन्थ रचना की अपेक्षा स्फुट के रूप में ही उन्होंने अधिक साहित्य सृजन किया। चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की मृत्यु पीलिया के बाद तेज़ बुख़ार से मात्र 39 वर्ष की आयु में 12 सितम्बर 1922 ई. में काशी में हुई।
रचनाएँ – उसने कहा था, सुखमय जीवन, बुद्धु का काँटा आदि
भाषा-शैली की दो प्रमुख विशेषताएं –
- भाषा अत्यन्त समृद्ध और. सम्पन्न है। आप वर्णित विषय के अनुरूप शब्द-चयन में निपुण हैं।
- संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ ही लोक प्रचलित शब्दों और मुहावरों को आपकी भाषा में स्थान प्राप्त है।
प्रश्न 4 – रामचंद्र शुक्ल अथवा भीष्म साहनी का जीवन परिचय देते हुए उनकी भाषागत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर –
जन्म – भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त 1915 को भारत के रावलपिण्डीमें हुआ था। उनके पिता का नाम हरबंस लाल साहनी तथा उनकी माता लक्ष्मी देवी थीं। उनके पिता अपने समय के प्रसिद्ध समाजसेवी थे। हिन्दी फ़िल्मों के ख्यातिप्राप्त अभिनेता बलराज साहनी, भीष्म साहनी के बड़े भाई थे। पिता के समाजसेवी व्यक्तित्व का इन पर काफ़ी प्रभाव था। भीष्म साहनी का विवाह शीला जी के साथ हुआ था।
शिक्षा – भीष्म साहनी की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हिन्दी व संस्कृत में हुई। उन्होंने स्कूल में उर्दू व अंग्रेज़ी की शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1937 में ‘गवर्नमेंट कॉलेज’, लाहौर से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया | इसके बाद उन्होने 1958 में पंजाब विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वर्तमान समय में प्रगतिशील कथाकारों में साहनी जी का प्रमुख स्थान है। भीष्म साहनी हिन्दी और अंग्रेज़ी के अलावा उर्दू, संस्कृत, रूसी और पंजाबी भाषाओं के अच्छे जानकार थे।
करियर – साहनी जी फ़िल्म जगत् में भाग्य आजमाने के लिए बम्बई आ गये, जहाँ काम न मिलने के कारण उनको बेकारी का जीवन व्यतीत करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने वापस आकर दोबारा अम्बाला के एक कॉलेज में अध्यापन के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में स्थायी रूप से कार्य किया। इस बीच उन्होंने लगभग 1957 से 1963 तक विदेशी भाषा प्रकाशन गृह मास्को में अनुवादक के रूप में बिताये। यहाँ भीष्म साहनी ने दो दर्जन के क़रीब रशियन भाषायी किताबों, टालस्टॉय, ऑस्ट्रोव्स्की, औतमाटोव की किताबों का हिन्दी में रूपांतर किया।
भीष्म साहनी ने 1965 से 1967 तक “नई कहानियाँ” का सम्पादन किया। साथ ही वे प्रगतिशील लेखक संघ तथा अफ़्रो एशियाई लेखक संघ से सम्बद्ध रहे। वे 1993 से 1997 तक ‘साहित्य अकादमी एक्जिक्यूटिव कमेटी’ के सदस्य भी रहे।
मृत्यु – भीष्म साहनी की मृत्यु 11 जुलाई 2003 को दिल्ली में हुई थी।
रचनाएँ – चीफ़ की दावत, भटकती राख, झरोखे, कड़ियाँ, कबिरा खड़ा बाज़ार में
पुरस्कार
- भीष्म साहनी को उनकी “तमस” नामक कृति पर ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ (1975) से सम्मानित किया गया था।
- उन्हें ‘शिरोमणि लेखक सम्मान’ (पंजाब सरकार) (1975)
- 1998 में भारत सरकार ने उन्हे पद्म भूषण से नवाजा।
- सर्वोत्तम हिंदी उपन्यासकार के लिए सर सैयद नेशनल अवार्ड, 2002
भीष्म साहनी की भाषागत विशेषताएं –
भीष्म जी की भाषा प्रायः आम बोलचाल की खड़ी बोली हिंदी रही है। किंतु रचना की विषयवस्तु के अनुरूप संस्कृत की तत्सम शब्दावली के साथ-साथ उर्दू और अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों के प्रयोग द्वारा भाषा को लोकप्रिय और समर्थ बनाया गया है। उनकी शैली में विवेचना, विवरण, व्यंग्य और आक्रोश प्रायः देखा जा सकता है। इससे विषयवस्तु की भीतरी वास्तविकता को समझने में देर नहीं लगती।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जीवन परिचय –
जीवन परिचय – हिन्दी के इस प्रतिभासम्पन्न साहित्यकार का जन्म सन् 1884 ई० में बस्ती जिले के अगोना नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० चन्द्रबली शुक्ल था। बालक रामचन्द्र शुक्ल ने एण्ट्रेन्स (हाईस्कूल) की परीक्षा मिर्जापुर जिले के मिशन स्कूल से उत्तीर्ण की। गणित में कमजोर होने के कारण इनकी शिक्षा आगे नहीं बढ़ सकी। इण्टर की परीक्षा के लिए कायस्थ पाठशाला, इलाहाबाद में प्रवेश लिया, किन्तु अन्तिम वर्ष की परीक्षा से पूर्व ही विद्यालय छूट गया।
इन्होंने मिर्जापुर के न्यायालय में नौकरी कर ली, किन्त स्वभावानुकूल न होने के कारण छोड़ दी और मिर्जापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला के अध्यापक हो गये। इसी बीच स्वाध्याय से इन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, बंगला आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया और पत्र-पत्रिकाओं में लिखना आरम्भ कर दिया। बाबू श्यामसुन्दर दास के अवकाश प्राप्त करने के बाद शुक्लजी ने हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद को भी सुशोभित किया। इसी पद पर कार्य करते हए सन 1941 ई० में आप स्वर्ग सिधार गये।
रचनाएँ या कृतियाँ – ‘आदर्श जीवन’, ‘कल्याण का आनन्द’, ‘विश्व प्रबन्ध’, ‘बुद्धचरित’ (काव्य) आदि
भाषा-शैली की दो प्रमुख विशेषताएँ
- शुक्लजी ने महावरे और लोकोक्तियों का प्रयोग करके भाषा को अधिक व्यञ्जनापूर्ण, प्रभावपूर्ण एवं व्यावहारिक बनाने का भरसक प्रयास किया है।
- शुक्ल जी की भाषा-शैली गठी हई है, उसमें व्यर्थ का एक भी शब्द नहीं आने पाता। कम-से-कम शब्दों में अधिक विचार व्यक्त कर देना इनकी विशेषता है।
पत्र लेखन
अनौपचारिक पत्र
- 503, द्वारका में रहने वाले मुकेश ने आपका परिचय-पत्र डाक से लौटाया है। उसका आभार व्यक्त करते हुए पत्र लिखिए
अभिन्न
कृष्ण गली
राम नगर।
दिनांक – 4-3-2009
श्री मुकेश जी
सादर नमस्कार!
आपका कृपा-पत्र मिला। उसमें मेरा खोया हुआ परिचय-पत्र भी था। अचानक डाक से यह पत्र पाकर मुझे खुशी और हैरानी हुई। मैं इसे पाने की आशा खो चुका था। परंतु आज की दुनिया में आप जैसे संवेदनशील और भले इनसान भी हैं, यह देखकर मेरा मन प्रसन्न हो उठा। मैं आपके प्रति कृतज्ञ हूँ। यद्यपि मेरा-आपका कोई संबंध नहीं है, फिर भी मैं आपको अपने प्रिय मित्र जैसा अनुभव कर रहा हूँ। ईश्वर करे, आपकी यह उदारता बनी रहे। मेरे प्रति इसी प्रकार स्नेह बनाए रखें।
भवदीय
अभिन्न
प्रति
मुकेश
503, द्वारका
- अपने बड़े भाई के विवाह में अपने मित्र को आमंत्रित करते हुए पत्र लिखिए।
623 , सुभाष चंद्र बोस मार्ग ,
नई दिल्ली -1110036
दिनांक : XX मई XX19
प्रिय दोस्त अर्णव ,
मधुर स्नेह।
आशा है तुम स्वस्थ एवं प्रसन्न होंगे और अपने स्कूल की पढ़ाई में व्यस्त होंगे। दोस्त अर्णव मैं आज तुम्हें एक विशेष प्रयोजन से यह पत्र लिख रहा हूं। दरअसल मेरे बड़े भाई की शादी 15 मई 2019 को होनी निश्चित हुई है। शादी का कार्यक्रम दो दिवसीय है। अतः आप सपरिवार मेरे बड़े भाई की शादी में आमंत्रित हैं।
मैं आशा करता हूं कि तुम अपने परिवार के साथ मेरे बड़े भाई की शादी में सम्मिलित होने अवश्य आओगे। हम अपने अन्य दोस्तों के साथ मिलकर खूब मौज मस्ती करेंगे।इसीलिए तुम शादी में अवश्य आना। मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा।
तुम्हारा दोस्त
क.ख.ग
औपचारिक-पत्र
- आपके महल्ले में अक्सर बिजली का संकट रहता है। बिजली-अधिकारी को इस समस्या के समाधान के लिए पत्र लिखिए।
सेवा में
उपमंडल अधिकारी
देहरादून शहरी विकास प्राधिकरण
देहरादून
विषय : सैक्टर-8 में बिजली का संकट
महोदय
मैं सैक्टर-8 का एक निवासी आपका ध्यान बिजली-संकट की ओर खींचना चाहता हूँ। आजकल हमारे सैक्टर की बिजली हवा के झोंकों के समान आती-जाती रहती है। कई बार एक घंटे में दस बार बिजली आती-जाती है। मैं इस तमाशे को समझ नहीं पा रहा।
बिजली न होने के कारण पानी की आपूर्ति रुक जाती है। सुबह-सुबह कर्मचारी अपने कार्यालय में नहीं पहुँच पाते। छात्र विद्यालय नहीं जा पाते। अनेक बार बिजली इतनी मद्धिम होती है कि बल्ब दीए से जलते हैं। ऐसे में फ्रिज, टी.वी. तथा अन्य मशीनी उपकरणों के जलने का खतरा बना रहता है। आजकल कोई काम बिजली के बिना संभव नहीं है। इसलिए सारी दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो जाती है।
महोदय, कृपया आप बिजली की आपूर्ति को ठीक कराने का कष्ट करें। सैक्टर के सभी निवासी परेशान हैं।
धन्यवाद !
प्रार्थी :
मनोहरलाल
- विद्यालय में नए खेल सामग्री मंगवाने के लिए प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए।
सेवा में,
प्रधानाचार्य,
केंद्र विद्यालय
जमालपुर, बिहार
विषय: खेल सामग्री मंगवाने के लिए।
श्रीमान,
सविनय निवेदन यह है कि मैं कुणाल कपूर आपके विद्यालय के कक्षा दसवीं का का छात्र हूं। हर साल की भांति इस साल भी हमारा विद्यालय क्रिकेट खेल के लिए स्टेट लेवल पर चयनित हुआ है। किंतु खेल कूद संबंधी सुविधाओं की कमी की वजह से छात्र के प्रति स्पर्धाओं में रुचि नहीं ले रहे हैं। खेलकूद के लिए हमारे विद्यालय में जो समाज उपलब्ध हैं, वह पुराने हो चुके हैं या टूट-फूट चुके हैं, जिनसे अभ्यास करना मुश्किल हो रहा है।
अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि खेलकूद संबंधी नए सामान विद्यालय में उपलब्ध कराएं ताकि विद्यालय के सभी होनहार छात्र पदक जीतकर विद्यालय का नाम रोशन करें। इसके लिए मैं आपका सदा आभारी रहूंगा।
धन्यवाद
आपका विश्वासी छात्र
नाम- कुणाल कपूर
कक्षा- बाहरवीं
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