Nios Class 12th Sociology Important Questions with Answers in Hindi Medium
प्रश्न 1. अपराध से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- अपराध किसी भी समाज में होने वाली वह गतिविधि या क्रिया है जिसके अंतर्गत कानूनी नियमों का उल्लंघन किया जाता है। साधारण भाषा में कहा जाए तो अपराध वह नकारात्मक प्रक्रिया है जिसके कारण सामाजिक तत्वों का विनाश होता है। अपराध एक बेहद गंभीर समस्या है जिसे कानूनी एवं सामाजिक दृष्टिकोण से गलत कार्य माना जाता है।
प्रश्न 2. सती प्रथा का निषेध किस वर्ष हुआ ?
उत्तर- 1829
प्रश्न 3. सेवारत जाति को किस नाम से पुकारते हैं ?
उत्तर- वर्ण
प्रश्न 4. दहेज निषेध अधिनियम किस वर्ष लागू हुआ ?
उत्तर- 1961
प्रश्न 5. मंडल कमीशन की स्थापना कब हुई ?
उत्तर- 1 जनवरी, 1979
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प्रश्न 6. भूमि अलगाव के मुख्य कारण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- भूमि अलगाव के मुख्य कारण है:
- आदिवासियों की खराब आर्थिक स्थिति।
- ऋणग्रस्त होने की स्थिति में आदिवासी कर्ज नहीं चुका पाते है।
प्रश्न 7. महाराष्ट्र में दलित लड़कियों के लिए पहला स्कूल किसने शुरू किया ?
उत्तर- सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले।
प्रश्न 8. परम्परागत प्राधिकार और करिश्मायुक्त प्राधिकार में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
परम्परागत प्राधिकार | करिश्मायुक्त प्राधिकार |
यह परंपरा या इतिहास पर आधारित है। | यह किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत गुणों और चमत्कारों पर आधारित है |
यह विश्वास पर आधारित है। | यह प्रदर्शन और गतिशील गुणों पर आधारित है। |
इसका तर्क या बुद्धि से कोई सरोकार नहीं है। | इसका संबंध बुद्धि से है। |
यह पीढ़ी पर आधारित है। | यह पीढ़ी पर आधारित नहीं है। |
प्रश्न 9. प्रेक्षण के दो मुख्य प्रकार लिखिए।
उत्तर – प्रेक्षण के दो मुख्य प्रकार
प्रतिभागी अवलोकन तब होता है जब पर्यवेक्षक उस समूह का हिस्सा बन जाता है जिसका अध्ययन किया जा रहा है। इस प्रकार का अवलोकन प्रेक्षक को समूह और उनके व्यवहार को करीब से देखने की अनुमति देता है।
गैर-प्रतिभागी अवलोकन तब होता है जब पर्यवेक्षक (किसी कार्य को समुचित तरीके से निगरानी या देखरेख करने वाला) समूह के बाहर रहता है और केवल उनके व्यवहार को देखता है। इस प्रकार का अवलोकन समूह के व्यापक दृष्टिकोण की अनुमति देता है।
प्रश्न 10. समाजशास्त्र में एमाइल दुर्खीम के योगदान पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर- सामाजिक विचारकों की श्रेणी में दुर्खीम का नाम काफी लोकप्रिय है। फ्रांसीसी समाजशास्त्री इमाइल दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य, आत्महत्या, धर्म व श्रम विभाजन आदि के विषय में उल्लेखनीय योगदान दिया हैं। दुर्खीम समाजशास्त्र के प्रत्यक्षवादी, विकासवादी तथा प्रकार्यवादी (धर्म) समाजशास्त्री थे। दुर्खीम समाजशास्त्र को एक पृथक विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित किया है। दुर्खीम को समाजशास्त्र में कॉम्ट का उत्तराधिकारी माना जाता है।
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प्रश्न 11. प्रगति और विकास के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – प्रगति और विकास एक विशेष क्षेत्र में आगे बढ़ने और सुधार करने का उल्लेख करते हैं। हालाँकि, ‘विकास’ आमतौर पर कई क्षेत्रों में सुधार के बारे में होता है और इसकी व्यापक परिभाषा होती है, जबकि ‘प्रगति’ ‘विकास’ का हिस्सा है और एक विशिष्ट उद्देश्य की ओर आगे बढ़ने को संदर्भित करता है।
प्रश्न 12. प्रायोगिक समाजशास्त्र की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- प्रायोगिक समाजशास्त्र: प्रायोगिक समाजशास्त्र रोजमर्रा की समस्याओं या स्थितियों को संबोधित करने के लिए समाजशास्त्रीय विचारों, अवधारणाओं, सिद्धांतों और मॉडलों का अनुप्रयोग है। ये कार्यस्थल में, घरों में, समुदायों में या संगठनों में उत्पन्न हो सकते हैं। अनुप्रयुक्त समाजशास्त्र “मानव सामाजिक जीवन को समझने, हस्तक्षेप करने या बढ़ाने” के लिए समाजशास्त्रीय उपकरणों का उपयोग कर रहा है।
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प्रश्न 13. ‘अर्धांश’ पद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – ‘अर्धांश’ पद जिसे दोहरी संगठन भी कहा जाता है, सामाजिक संगठन का रूप समाज के विभाजन को दो पूरक भागों में विभाजित करता है जिसे अर्धांश’कहा जाता है।
प्रश्न 14. जनसंख्या विस्फोट से आप क्या समझते है ?
उत्तर- यह एक निश्चित समय में एक विशिष्ट क्षेत्र में व्यक्तियों की संख्या में अचानक वृद्धि है। जनसंख्या विस्फोट हम सभी के लिए गंभीर चिंता का कारण है। जनसंख्या में अचानक वृद्धि के कारण कई क्षेत्रों में इसका प्रभाव पहले से ही दिखने लगा है।
प्रश्न 15. जैन धर्म के दो भागों के नाम लिखिए।
उत्तर- जैन धर्म के दो भाग है:
- दिगम्बर
- श्वेतांबर
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प्रश्न 16. विवाह को किन दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं, जीवनसाथी की संख्या के आधार पर।
उत्तर– जीवनसाथी की संख्या के आधार पर विवाह को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं:
- एकविवाह (मोनोगैमी)
मोनोगैमी एक समय में एक महिला के साथ एक पुरुष के विवाह को संदर्भित करता है। इस प्रकार का विवाह आमतौर पर प्रकृति में अटूट होता है। यह मृत्यु तक जारी रहता है। आज पूरे विश्व में मोनोगैमी यानी एक पति और एक पत्नी के सिद्धांत का पालन किया जाता है और इस पर जोर दिया जाता है।
- बहुविवाह(पोलीगैमी)
यह एक पुरुष को एक से अधिक महिलाओं से या एक महिला को एक समय में एक से अधिक पुरुषों से विवाह करने की अनुमति देता है। बहुविवाह दो प्रकार का होता है:
- बहुपति विवाह
- बहुपत्नी विवाह
प्रश्न 17. ऑगस्ट कॉम्टे को समाजशास्त्र का पिता क्यों कहा जाता है ?
उत्तर- ऑगस्ट कॉम्टे को समाजशास्त्र का पिता कहा जाता है क्योंकि आगस्त काम्टे ने ही सर्वप्रथम सामाजिक विज्ञान की आवश्यकता का अनुभव किया और उस विज्ञान का नामकरण पहले ‘सामाजिक भौतिक शास्त्र’ और बाद में सन् 1838 मे ‘समाजशास्त्र’ रखा। इसलिए आगस्त काम्टे को “समाजशास्त्र का पिता अथवा जनक” कहा जाता है।
ऑगस्ट कॉम्टे ने यह बतलाया कि इसकी प्रगति एवं विकास मार्ग में जो कठिनाईयाँ इस समय विद्यमान है, वे भविष्य मे नही रहेंगी। उन्होंने इस और भी ध्यान आकर्षित किया कि समाजशास्त्र ही एक ऐसा विज्ञान होगा जो सामाजिक उन्नति एवं विकास से संबंधित अपने सामान्य सिद्धांतों एवं निर्णयों की स्थापना करेगा और विशिष्ट प्रकार के अनुसंधान कार्यों में सार्वभौमिक नियमों का प्रतिपादन कर सकेगा। इस प्रकार आगस्त काम्टे ने समाजशास्त्र को आधारभूत स्वरूप प्रदान किया और समाजशास्त्र के जनक कहलाये।
प्रश्न 18. बहिर्विवाह तथा अंतर्विवाह में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – बहिर्विवाह तथा अंतर्विवाह में अंतर:
बहिर्विवाह | अंतर्विवाह |
1. यह विवाह का एक नियम है जिसमें व्यक्ति अपने समूह के बाहर जीवनसाथी चुन सकता है। | 1. यह विवाह का एक नियम है जिसमें जीवनसाथी को समूह के भीतर से ही चुनना होता है। |
2. इस नियम के अनुसार रक्त संबंधी वैवाहिक या यौन संबंध नहीं बना सकते। बहिर्विवाह इन पर आधारित हो सकता है: · गोत्र · गाँव · प्रवर · पिंडा | 2. अंतर्विवाह इन पर आधारित हो सकता है: · जाति · कक्षा · जाति · जनजाति |
प्रश्न 19. आनुभविक अनुसंधान (विधि) क्या है ?
उत्तर – आनुभविक अनुसंधान (विधि): यह अध्ययन का वह दृष्टिकोण है जिसके अनुसार यह माना जाता है कि मानवीय ज्ञान की सम्पूर्ण शाखायें प्रत्यक्ष अनुभव से ही विकसित हुई हैं अर्थात् जिस ज्ञान को आनुभाविक पद्धति द्वारा प्राप्त किया जाता है, वही अनुभववाद है। इसका अभिप्राय यह है कि आनुभाविक पद्धति अध्ययन की वह पद्धति है जो सामाजिक घटनाओं के अध्ययन के लिए दूसरे व्यक्तियों द्वारा किये गये अनुभव अथवा उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों को स्वीकार नहीं करती अपितु व्यक्ति द्वारा स्वयं के अनुभवों को महत्व देती है। एक अध्ययनकर्त्ता जब अध्ययन विषय से सम्बन्धित तथ्यों का स्वयं अवलोकन करता है या अध्ययन विषय से सम्बद्ध तथ्यों को स्वयं एकत्रित करके उनके आधार पर सामान्य निष्कर्ष प्राप्त करता है तो उसे आनुभविक अनुसन्धान कहते हैं।
प्रश्न 20. प्राथमिक तथा द्वितीयक सहयोग में अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – प्राथमिक तथा द्वितीयक सहयोग में अंतर:
प्राथमिक समूह
| द्वितीयक समूह
|
प्राथमिक समूहों में आमने-सामने तथा शारीरिक समीपता के संबंध पाए जाते हैं। | द्वितीयक समूहों में आमने-सामने तथा शारीरिक समीपता के संबंध नहीं पाए जाते हैं। |
प्राथमिक समूहों में सदस्यों की संख्या कम होने के कारण इनका आकार लघु होता है। | द्वितीयक समूहों के कारण इनका आकार बड़ा होता है। |
प्राथमिक समूह साधारणतया स्थानीय होते हैं।
| द्वितीयक समूहों का विस्तार बड़े क्षेत्र में होता हैं। |
प्राथमिक समूह सरल समाजों में पाए जाते हैं।
| द्वितीयक समूहों का विस्तार बड़े क्षेत्र में होता हैं। |
प्राथमिक समूह ग्रामीण जीवन में पाए जाते है। | द्वितीय समूह नगरीय जीवन में पाए जाते हैं। |
प्रश्न 21. सामाजिक संरचना की विभिन्न इकाइयों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर – सामाजिक संरचना की प्रमुख इकाइयाँ हैं:
- क़ानून
- सामाजिक नेटवर्क
- समूह और संगठन
- सामाजिक संस्थाएँ
- समाज
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प्रश्न 22. कौन-सा कानून महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश प्रदान करता है?
उत्तर – मातृत्व लाभ (संशोधन) बिल, 2016
एक्ट सभी महिलाओं के लिए 12 हफ्ते तक के मातृत्व अवकाश का प्रावधान करता है। बिल में इस अवधि को बढ़ाकर 26 हफ्ते किया गया है। लेकिन दो या दो से अधिक बच्चों वाली महिलाएं 12 हफ्ते के मातृत्व अवकाश के लिए ही अधिकृत हैं।
प्रश्न 23. सामाजिक व्यवस्था को कायम रखने में प्रतिमान किस तरीके से सहायता करते हैं ?
उत्तर- सामाजिक व्यवस्था: सामाजिक व्यवस्था यह है कि कैसे संस्थाएं, समूह और मूल्य समाज को स्थिर और क्रम में रखने के लिए सहयोगात्मक रूप से काम करते हैं। यह शब्द इस बात को संदर्भित करता है कि कैसे सभी सामाजिक घटक अलग होने के बजाय आगे बढ़ने के लिए मिलकर काम करते हैं। सामाजिक व्यवस्था की परिभाषा स्थिरता का एक पहलू है जो समाज को अराजकता और व्यवधानों से विचलित करने के लिए मौजूद है।
सामाजिक मानदंडों का महत्व:
सामाजिक मानदंड सामाजिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण घटक निभाते हैं क्योंकि वे व्यक्तियों की भूमिकाओं को परिभाषित करते हैं, इस प्रकार एक पारस्परिक संबंध में कोड के रूप में संदर्भित होते हैं। समान व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक मानदंड न्याय, संचार, समझौतों या यहां तक कि संपत्ति के अधिकारों पर भी लागू हो सकते हैं।
इस प्रकार मानदंड सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में मदद करते हैं:
व्यापकता सिद्धांत से तात्पर्य है कि जनसंख्या विशिष्ट मूल्यों के लिए कैसे प्रतिबद्ध है और उनके महत्व पर सहमत है।
- एक समुदाय को जीवित रहने के लिए, उसे सामाजिक मानदंडों की आवश्यकता होगी।
- सामाजिक मानदंड सामाजिक व्यवस्था और नियंत्रण को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
- सामाजिक सामंजस्य, लोग मूल्यों की स्थापना करते हैं जिनका प्रत्येक व्यक्ति पालन करेगा।
- यह समाज समूह के अस्तित्व में सामाजिक नियंत्रण और हितों को प्राप्त करता है।
- यह सामाजिक एकीकरण में सुधार करके सामाजिक सद्भाव बनाने में मदद करता है।
प्रश्न 24. प्रस्थिति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- प्रस्थिति की विशेषताएँ निम्न्लिखित है:
- प्रस्थिति समाज की आवश्यकताओं और रुचियों का परिणाम होती है।
- प्रस्थिति अन्यों के ऊपर एक खास प्रकार का अथवा खास सीमा में प्राधिकार रखती है।
- प्रस्थिति सापेक्षिक होती है।
- प्रस्थिति सामाजिक स्तरीकरण की दिशा-निर्देश कर सकती है।
- प्रस्थिति के पास कुछ विशेषाधिकार और प्रतिरक्षाएँ (उन्मुक्तियाँ) होती हैं, जैसे किसी स्थान के प्रयोग का अधिकार, सचिव की सेवाओं का अधिकार आदि ।
- प्रस्थिति में प्रतिष्ठा का कुछ अंश सम्मिलित होता है।
- प्रस्थिति के अनुरूप पारिश्रमिक प्राप्ति का अधिकार भी हो सकता है।
- प्रस्थिति को भूमिका से अलग नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 25. समाज और संघ के बीच क्या अंतर है ?
उत्तर- समाज और संघ के बीच अंतर निम्न है:
समाज | संघ |
समाज सामाजिक संबंधों की एक व्यवस्था है। | संघ लोगों का एक समूह है। |
समाज अमूर्त है। इसे देखा या छुआ नहीं जा सकता। | एसोसिएशन ठोस है। |
समाज प्राकृतिक है, लेकिन संघ कृत्रिम हैं। | यह लोगों द्वारा कुछ निश्चित हितों की उपलब्धियों के लिए बनाई गई है। |
समाज संगठित या असंगठित हो सकता है। | संघ संगठित होना चाहिए। |
समाज की सदस्यता अनिवार्य है। मनुष्य समाज के बिना नहीं रह सकता। समाज सहयोग और संघर्ष दोनों से पहचाना जाता है। | एक संघ की सदस्यता स्वैच्छिक है। बहुत से मनुष्य किसी भी संघ के सदस्य बने बिना जीते हैं। संघ अकेले सहयोग पर आधारित होता है। |
समाज सभी चेतन और अचेतन संबंधों को समझता है। | संघ का आधार सचेतन भावना और विचार समाज का उद्देश्य सामान्य है। यह व्यक्तियों की सामान्य भलाई के लिए अस्तित्व में आता है। |
समाज संघ से पुराना है। यह तब से अस्तित्व में आता है जब मनुष्य पृथ्वी पर प्रकट हुए। | संघ लोगों ने विशेष उद्देश्य की खोज के लिए खुद संगठित किए है। |
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प्रश्न 26. भाषावाद किस तरह से राष्ट्रीय एकीकरण के लिए खतरा है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- भाषावाद राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा है। भाषाई वफादारी एक राष्ट्र के लोगों के बीच एकता की भावना के खिलाफ है। भाषावाद में लोग अपनी राष्ट्रीय पहचान को भूल जाते हैं और अपनी भाषाई पहचान को अधिक से अधिक महत्व देते हैं। अलग-अलग भाषाओं की सापेक्ष स्थिति के लिए, वे संघर्ष में आते हैं और दुश्मन की तरह व्यवहार करते हैं। वे अन्य भाषाओं को बोलने वाले लोगों के प्रति ईर्ष्या और घृणा विकसित करते हैं। वे अन्य भाषाई समूहों के जीवन और संपत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं। वे ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वे भारतीय नहीं हैं। दक्षिण भारतीय राज्यों के लोग हिन्दी भाषा के स्थान पर अंग्रेजी को तरजीह देते हैं। इसीलिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों को राजभाषा घोषित किया गया है।
उदाहरण
- आर्य-संस्कृतिक उत्तर (हृदय भूमि) और द्रविड़ दक्षिण के बीच भाषाई सांस्कृतिक विभाजन ने भारत के कड़ी मेहनत से प्राप्त एकीकरण का परीक्षण किया है। ‘आधिकारिक भाषा’ पर विवाद ने दक्षिणी क्षेत्रों में कानून और व्यवस्था की गंभीर समस्याओं को जन्म दिया था। तमिल लोग अपने राज्यों में ‘हिंदी’ को आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार करने के लिए काफी अनिच्छुक हैं।
- उनका नारा है ‘अंग्रेज़ी हमेशा और हिंदी कभी नहीं‘ और वे कहते हैं कि वे भारतीय हैं लेकिन हिंदीवासी नहीं। यहां तक कि दूसरे राज्य भी भाषाई वैमनस्य से अछूते नहीं हैं. भाषाई मतभेदों ने सामाजिक तनाव पैदा किया है और लोगों की सामाजिक एकजुटता को प्रभावित किया है। यह स्थिति राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए गंभीर खतरा है।
प्रश्न 27. कौटिल्य के अर्थशास्त्र की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- प्राचीन भारत के राजशास्त्रियों में कौटिल्य का स्थान सबसे ऊँचा है ‘और उसे शासन, कला तथा कूटनीति का सबसे महान् प्रतिपादक माना जाता है। कौटिल्य का ‘अर्थशास्त्र एक ऐसा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है जिसका मुख्य विषय राजनीति है। कौटिल्य का ‘अर्थशास्त्र’ मूल रूप से राजनीति का ग्रन्थ है।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र की मुख्य विशेषताएँ:
- शासन – नैतिकता की भूमिका
कौटिल्य ने व्यक्तिगत और सामाजिक आचरण में ‘धर्म’ (जिसका सामान्य अर्थ ‘कर्तव्य’ है) और धार्मिकता शब्द का प्रयोग किया है। उन्होंने बुनियादी नैतिक (धार्मिक) मूल्यों का वर्णन किया, “सभी के लिए सामान्य कर्तव्य – अहिंसा (सभी जीवित प्राणियों को चोट से बचना), सत्यम (सच्चाई), स्वच्छता, द्वेष से मुक्ति, करुणा और सहिष्णुता।”
- ब्याज
कौटिल्य ने ब्याज के पांच विभिन्न प्रकार बताए हैं: चक्रवृद्धि ब्याज, आवधिक ब्याज, निर्धारित ब्याज, दैनिक ब्याज और गिरवी रखी वस्तु का उपयोग। वास्तव में, प्रतिशत के रूप में रुचि व्यक्त करने का विचार भारत में उत्पन्न हुआ।
- मजदूरी
उन्होंने सिफारिश की कि राज्य का कुल वेतन बिल उसके राजस्व के एक चौथाई से अधिक नहीं होना चाहिए।
- अनुचित व्यापार व्यवहारों की रोकथाम
कौटिल्य की नीतियां, जब समग्रता में देखी जाती हैं, एक बहुत ही व्यापारी और कारीगर के रुख का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिसमें राज्य व्यावसायिक हितों के सूत्रधार और रक्षक की भूमिका निभाता है।
प्रश्न 28. भारत की स्वतंत्रता के बाद समाजशास्त्रियों के मुख्य योगदान को सुस्पष्ट कीजिए ।
उत्तर– स्वतंत्रता के बाद समाजशास्त्रियों के प्रमुख योगदान हैं:
- भारत की स्वतंत्रता के बाद, भारतीय समाजशास्त्रियों ने अमेरिकी समाजशास्त्रियों के साथ अधिक बातचीत की जिससे उनके विषय ज्ञान में सुधार हुआ और विषय के प्रति उनके दृष्टिकोण का विस्तार हुआ। स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र की योजना और विकास प्रक्रिया में शामिल समाजशास्त्रियों को देखा गया। समाजशास्त्र को एक विषय के रूप में रखने वाले विभागों और विश्वविद्यालयों की संख्या में भी वृद्धि हुई। विषय की प्रगति का दूसरा कारण नियोजित विकास था जो राष्ट्र में अधिक प्रासंगिकता प्राप्त कर रहा था जहाँ समाजशास्त्री को सामाजिक समस्याओं की पहचान करनी थी और समस्याओं के समाधान का सुझाव देना था।
- दूसरे चरण में शुरू किए गए संगठनों और समाजशास्त्रीय समाजों ने इस विषय के विकास में योगदान देना जारी रखा। इसके अलावा, 1969 में इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च (ICSSR) का गठन किया गया था। 1951 में स्थापित इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी और 1955 में N. सक्सेना द्वारा शुरू किया गया अखिल भारतीय समाजशास्त्रीय सम्मेलन 1967 में एक संस्थान में विलय हो गया।
- गाँव इस चरण के समाजशास्त्रियों के रोचक विषय थे। इस चरण के दौरान भारतीय और विदेशी दोनों समाजशास्त्रियों द्वारा गांवों पर कई मोनोग्राफ प्रकाशित किए गए थे। और इन मूल स्तर के ग्रामीण अध्ययनों के माध्यम से भारतीय समाजों के बारे में कई अवधारणाएँ सामने आईं। श्रीनिवास, एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री ने ‘प्रभुत्व जाति’ की अवधारणा विकसित की। अवधारणा एक प्रमुख जाति के बारे में थी जो एक क्षेत्र की आर्थिक और अन्य महत्वपूर्ण गतिविधियों को नियंत्रित करती है। इस अवधारणा को कर्नाटक के गांवों पर उनके अध्ययन के दौरान विकसित किया गया था।
- इस तीसरे चरण में भारत के समाजशास्त्री अनुशासन के दृष्टिकोण के प्रति अधिक परिपक्व हो गए। वे अपने अनुभवजन्य कार्यों से सैद्धांतिक अंतर्दृष्टि पर निष्कर्ष पर पहुंचने लगे। ड्यूमॉन्ट इस चरण के प्रतिपादक थे जिनका कार्य “होमो पदानुक्रम” था उन्होंने एक पत्रिका भी शुरू की जैसे; भारतीय समाजशास्त्र में योगदान”। अध्ययनों ने जातीयता, लिंग, हिंसा, विकास और स्तरीकरण के मुद्दों के लिए अपनी चिंता के क्षेत्र को चौड़ा करना शुरू कर दिया। इससे भारतीय समाजशास्त्र और समाजशास्त्री दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गए।
प्रश्न 29. बालिका भ्रूण हत्या और बालिका शिशु हत्या में क्या अन्तर है?
उत्तर – बालिका भ्रूण हत्या और बालिका शिशु हत्या में अन्तर:
कन्या भ्रूण हत्या | बालिका शिशु हत्या |
गर्भ से लिंग परीक्षण जाँच के बाद बालिका शिशु को हटाना कन्या भ्रूण हत्या है। | जन्म के तुरंत बाद बच्चियों को खत्म करने की प्रक्रिया बालिका शिशु हत्या कहलाती है। |
ऐसी मान्यता है कि लड़कियां हमेशा उपभोक्ता होती हैं और लड़के ही निर्माता होते हैं। इस प्रकार, माता-पिता समझते हैं कि बेटा जीवन भर पैसा कमाएगा और अपने माता-पिता की देखभाल करेगा लेकिन लड़कियों की शादी एक दिन होगी। | “एक वर्ष से कम उम्र के एक पूरी तरह से आश्रित बच्चे की हत्या” जिसे माता, माता-पिता या अन्य जिनकी देखभाल में बच्चे को सौंपा गया है, द्वारा मार दिया जाता है”। |
समाज में अशिक्षा, असुरक्षा और लोगों की गरीबी भी लड़कियों के बोझ का प्रमुख कारण है।
| ये घटनाएँ पितृसत्तात्मक समाजों में सबसे अधिक प्रचलित हैं जिनमें महिलाओं की स्थिति निम्न है और सांस्कृतिक विचारधारा में बेटों के लिए वरीयता अंतर्निहित है।
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प्रश्न 30. शक्ति तथा प्राधिकार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – शक्ति एक इकाई या व्यक्ति की दूसरों को नियंत्रित या निर्देशित करने की क्षमता है, जबकि अधिकार प्रभाव है जो कथित वैधता पर आधारित है।
शक्ति
सामान्य उपयोग में, ‘शक्ति’ शब्द का अर्थ शक्ति या नियंत्रण करने की क्षमता है। समाजशास्त्री इसे किसी व्यक्ति या समूह की अपनी इच्छाओं को पूरा करने और अपने निर्णयों और विचारों को लागू करने की क्षमता के रूप में वर्णित करते हैं। इसमें दूसरों की इच्छा के विरुद्ध भी उनके व्यवहार को प्रभावित करने और/या नियंत्रित करने की क्षमता शामिल है।
मैक्स वेबर के लिए शक्ति सामाजिक संबंधों का एक पहलू है। यह किसी अन्य व्यक्ति के व्यवहार पर अपनी इच्छा थोपने की संभावना को संदर्भित करता है। शक्ति सामाजिक संपर्क में मौजूद है और असमानता की स्थिति पैदा करती है क्योंकि जिसके पास शक्ति है वह इसे दूसरों पर थोपता है।
वेबर शक्ति के दो विपरीत स्रोतों की चर्चा करता है। ये इस प्रकार हैं:
शक्ति जो औपचारिक रूप से मुक्त बाजार में विकसित होने वाले हितों के समूह से प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए, चीनी के उत्पादकों का एक समूह अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए बाजार में अपने उत्पादन की आपूर्ति को नियंत्रित करता है।
प्राधिकरण की एक स्थापित प्रणाली जो आदेश देने का अधिकार और पालन करने का कर्तव्य आवंटित करती है। उदाहरण के लिए सेना में एक जवान को अपने अधिकारी की आज्ञा का पालन करना होता है। अधिकारी प्राधिकरण की एक स्थापित प्रणाली के माध्यम से अपनी शक्ति प्राप्त करता है।
प्राधिकार
वेबर द्वारा प्रयोग किए गए जर्मन शब्द “हेर्सचैफ्ट” का विभिन्न प्रकार से अनुवाद किया गया है। कुछ समाजशास्त्री इसे ‘प्राधिकार’ कहते हैं, अन्य ‘प्रभुत्व’ या ‘आदेश’। हेरशाफ्ट एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक ‘हेर’ या मास्टर दूसरों पर हावी होता है या उन्हें आदेश देता है। रेमंड एरोन ने हेर्सचैफ्ट को उन लोगों की आज्ञाकारिता प्राप्त करने की मास्टर की क्षमता के रूप में परिभाषित किया है जो सैद्धांतिक रूप से उसके प्रति ऋणी हैं। इस इकाई में, वेबर की हर्शाफ्ट की अवधारणा “प्राधिकरण” शब्द को निरूपित करती है।
प्राधिकरण वैध शक्ति को संदर्भित करता है। इसका अर्थ है कि स्वामी को आज्ञा देने का अधिकार है और वह आज्ञा मानने की अपेक्षा कर सकता है।
निम्नलिखित तत्वों के अस्तित्व के लिए प्राधिकरण की प्रणाली हैं:
- एक व्यक्तिगत शासक / स्वामी या शासकों / स्वामी का एक समूह।
- एक व्यक्ति / समूह जिस पर शासन किया जाता है।
- शासितों के आचरण को प्रभावित करने की शासक की इच्छा जिसे आदेशों के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है।
- शासकों द्वारा दिखाए गए अनुपालन या आज्ञाकारिता के संदर्भ में शासकों के प्रभाव का प्रमाण।
- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष साक्ष्य जो दर्शाता है कि शासितों ने इस तथ्य को आत्मसात कर लिया है और स्वीकार कर लिया है कि शासक के आदेशों का पालन किया जाना चाहिए।
प्रश्न 31. मेल्टिंग पॉट की अवधारणा की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – मेल्टिंग पॉट की अवधारणा
- मेल्टिंग पॉट अवधारणा का उपयोग आमतौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका में आप्रवासियों के आत्मसातीकरण का वर्णन करने के लिए किया जाता है, हालांकि इसका उपयोग किसी भी संदर्भ में किया जा सकता है जहां एक नई संस्कृति दूसरे के साथ सह-अस्तित्व में आती है। हाल के दिनों में, मध्य पूर्व के शरणार्थियों ने पूरे यूरोप और अमेरिका में पिघलने वाले बर्तन बनाए हैं।
- हालांकि, इस शब्द को अक्सर उन लोगों द्वारा चुनौती दी जाती है जो दावा करते हैं कि समाज के भीतर सांस्कृतिक मतभेद मूल्यवान हैं
- ‘‘मेल्टिंग पॉट’ में विभिन्न संस्कृतियाँ/राष्ट्रीयताएँ अमेरिकी मूल्यों में आत्मसात् हो जाती है ।
- मेल्टिंग पॉट का एक उदाहरण एक ऐसा स्थान है जहां दुनिया भर से शरणार्थी और लोग घूमने, काम करने और अपने विचारों और विचारों का आदान-प्रदान करने आते हैं, जिसके परिणामस्वरूप एक नया समुदाय बनता है।
प्रश्न 32. बौद्ध धर्म के पाँच सिद्धांतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – बौद्ध धर्म के पांच सिद्धांत:
- मत मारो- इसे कभी-कभी “नुकसान नहीं पहुंचाना” या हिंसा की अनुपस्थिति के रूप में अनुवादित किया जाता है।
- चोरी न करना- आमतौर पर इसकी व्याख्या धोखाधड़ी और आर्थिक शोषण से बचने के रूप में की जाती है।
- झूठ मत बोलो – इसे कभी-कभी नाम-पुकार, गपशप आदि के रूप में व्याख्या किया जाता है।
- सेक्स का गलत इस्तेमाल न करें – भिक्षुओं और ननों के लिए, इसका अर्थ पूर्ण ब्रह्मचर्य से प्रस्थान है। लोकधर्मियों के लिए व्यभिचार के साथ-साथ किसी भी तरह का यौन उत्पीड़न या शोषण, जिसमें विवाह भी शामिल है, की मनाही है। बुद्ध ने एक प्रतिबद्ध रिश्ते के भीतर सहमति से पूर्व यौन संबंध पर चर्चा नहीं की; इस प्रकार, बौद्ध परंपराएँ इस पर भिन्न हैं। अधिकांश बौद्ध, संभवतः उनकी स्थानीय संस्कृतियों से प्रभावित हैं, शामिल लोगों के बीच संबंधों की प्रकृति की परवाह किए बिना समलैंगिक यौन गतिविधि की निंदा करते हैं।
- शराब या अन्य नशीले पदार्थों का सेवन न करें – यहां मुख्य चिंता यह है कि नशा दिमाग पर छा जाता है। कुछ ने खुद को वास्तविकता से अलग करने के लिए एक दवा के रूप में अन्य तरीकों को शामिल किया है, उदाहरण के लिए, फिल्में, टेलीविजन और इंटरनेट।
प्रश्न 33. बलात्कार कानून के मुख्य अभिलक्षण क्या है ?
उत्तर – बलात्कार: बलात्कार सबसे जघन्य अपराधों में से एक है जो एक व्यक्ति कर सकता है। यह न सिर्फ एक जघन्य अपराध है बल्कि एक प्रजाति के रूप में मानव जाति के लिए बहुत बड़ा अपमान है। यह एक यौन हमला है जिसमें आमतौर पर किसी व्यक्ति के साथ उसकी सहमति के बिना यौन संबंध बनाना शामिल होता है।
बलात्कार कानून के मुख्य अभिलक्षण
- रेप के लिए आईपीसी की धारा 376 के तहत सजा का प्रावधान है। इस धारा के अनुसार, बलात्कार की सजा कम से कम 7 वर्ष की अवधि के कारावास की होगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है – यह मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
- अधिक गंभीर स्थितियों में, सजा कम से कम 10 साल के कठोर कारावास की होगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। दोषी को कारावास के साथ-साथ जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।
- निर्भया रेप केस जैसी स्थितियों में, जिसमें बलात्कार के बाद हत्या की जाती है, और उदाहरण इतना क्रूर होता है कि यह ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर‘ की श्रेणी में आता है, मौत की सजा दी जाती है।
निष्कर्ष
बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के लिए सजा बहुत कम है, भारत में बलात्कार के मामले हर दिन बढ़ रहे हैं, हमारे देश के मौजूदा बलात्कार कानूनों में बड़े पैमाने पर बदलाव और परिवर्तन की आवश्यकता है।
प्रश्न 34. मुस्लिम विवाह के चार स्वरूपों के बारे में लिखिए ।
उत्तर – परिचय
मुस्लिम विवाह को ‘निकाह’ कहा जाता है। अवधारणा के स्तर पर मुस्लिम विवाह एक सामाजिक समझौता या नागरिक समझौता है। परंन्तु व्यावहारिक स्तर पर भारत में मुस्लिम विवाह भी धार्मिक है। भारतीय मुसलमानों में अन्य समुदायों की तुलना में तलाक की दर अधिक है। पति-पत्नी के बीच वैवाहिक संबंध की तुलनात्मक स्थिरता भारतीय संस्कृति की साझी विरासत है। भारत में मुस्लिम विवाह अरब दुनिया तथा अन्य स्थानों की तुलना में ज्यादा स्थायी पाया गया है।
मुस्लिम विवाह के चार स्वरूप
- सही निकाह (वैध विवाह): ‘सही’ शब्द का अर्थ सही या मान्य है। सहीह विवाह वह है जिसमें मुस्लिम विवाह की सभी आवश्यक शर्तें होती हैं
- बातिल निकाह (शून्य विवाह): एक शून्य विवाह वह विवाह है जो एक वैध विवाह की आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करता है। बतिल विवाह में कोई कानूनी अधिकार और दायित्वों का पालन नहीं किया जाता है।
- फसीद विवाह (अनियमित विवाह): अनियमित विवाह एक अमान्य विवाह है जो वैध विवाह की आंशिक शर्तों को पूरा नहीं करता है। हालाँकि, एक बार अनियमितताएँ दूर हो जाने के बाद यह एक वैध विवाह में परिवर्तित हो जाता है। अनियमित विवाह की अवधारणा को सुन्नी कानून के तहत ही मान्यता प्राप्त है।
- मुता विवाह: ‘मुता’ शब्द का अर्थ आनंद है। इस प्रकार, मुता विवाह की एक निश्चित अवधि होती है और यौन सुख के उद्देश्य से प्रवेश किया जाता है। इस तरह के विवाह को केवल मुसलमानों के शिया संप्रदाय द्वारा मान्यता प्राप्त है।
निष्कर्ष
विभिन्न मुस्लिम संप्रदाय हैं जो मुस्लिम विवाह के अपने स्वयं के संशोधित संस्करणों का पालन करते हैं। उदाहरण के लिए, सुन्नी कानून के तहत वैध विवाह के लिए गवाहों को आवश्यक माना जाता है, लेकिन शिया कानून के तहत नहीं। हालांकि, व्यापक रूप से वर्गीकृत चार प्रकार के मुस्लिम विवाह हैं: वैध विवाह, शून्य विवाह, अनियमित विवाह और मुता विवाह।
प्रश्न 35. सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख सिद्धांतों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – सामाजिक परिवर्तन: समाजशास्त्री सामाजिक परिवर्तन को संस्कृतियों, संस्थानों और कार्यों के परिवर्तन के रूप में परिभाषित करते हैं। अधिकांश परिवर्तन तात्कालिक नहीं होते हैं। समाज में, परिवर्तन अक्सर बहुत धीमा होता है।
सामाजिक परिवर्तन के तीन मुख्य सिद्धांत हैं:
- विकासवादी
19वीं शताब्दी में सामाजिक परिवर्तन के विकासवादी सिद्धांत को प्रमुखता मिली। समाजशास्त्रियों ने डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को समाज में लागू करते हुए उसे पकड़ लिया। अगस्टे कॉम्टे, जिन्हें “समाजशास्त्र के पिता” के रूप में जाना जाता है, विकासवादी मॉडल में विश्वास करते थे।
- प्रकार्यवादी सिद्धांत
सामाजिक परिवर्तन का कार्यात्मक सिद्धांत सिखाता है कि समाज एक मानव शरीर की तरह है। प्रत्येक अंग एक अंग की तरह है। अलग-अलग हिस्से अपने दम पर जीवित नहीं रह सकते।
- संघर्ष सिद्धांत
संघर्ष सिद्धांत कहता है कि समाज स्वभाव से असमान और प्रतिस्पर्धी है। इस सिद्धांत का प्रतिपादन कार्ल मार्क्स ने किया था। जबकि वह विकासवादी मॉडल में एक बिंदु पर विश्वास करता था, मार्क्स ने यह नहीं सोचा था कि प्रत्येक चरण का परिणाम पहले से कुछ बेहतर होता है।
प्रश्न 36. प्रवास में खींचे जाने तथा धकेलने वाले कारक क्या होते हैं ?
उत्तर – प्रवास में खींचे जाने तथा धकेलने वाले कारक:
खींचे जाने के (अपकर्ष) कारक
अपकर्ष कारक गंतव्य देश में वह कारक हैं जो व्यक्ति या समूह को अपना घर छोड़ने के लिए आकर्षित करते हैं। बेहतर आर्थिक अवसर, अधिक नौकरियां और बेहतर जीवन का वादा अक्सर व्यक्तियों को नए स्थानों पर ले जाता है।
इसके अंतर्गत उन सभी कारणों को शामिल किया जाता है। जो लोगो को अपनी ओर खींचता या आकर्षित करता है। उस जगह पर ऐसी सुविधाएँ विकसित हो जाती है कि, लोग अपने आप उस स्थान की ओर खींचे चले आते है। जैसे चुंबक लोहे के बुरादे को अपनी ओर खींचता है। इन सुविधाओं में रोजगार के अवसर उपलब्ध होना, रहन सहन की अच्छी दशाएँ, जीवन सम्पति की सुरक्षा, अनुकूल जलवायु, मनोरंजन, शिक्षा, स्वस्थ्य, परिवहन एवं संचार इत्यादि की सुविधाएँ।
धकेलने वाले (प्रतिकर्ष) कारक
प्रतिकर्ष कारक के अंतर्गत उन सभी कारणों को शामिल किया जाता है। जो लोगो को अपने निवास स्थल को छोड़ने के लिए विवस करता है। लोगो को न चाहते हुए भी अपने निवास स्थान को छोड़ना पड़ता है। जैसे :- बेरोजगारी की समस्या, शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का आभाव, महामारी, रहन-सहन का निम्न स्तर, प्रतिकूल जलवायु , जीवन और सम्पति के सुरक्षा का आभाव, परिवहन और संचार की सुविधाओं का आभाव, क्षेत्र में सालो-साल से युद्ध का प्रभाव इत्यादि।
प्रश्न 37. कार्य-स्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न से संबन्धित चार प्रकार के व्यवहारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – अवांछित रूप से शारीरिक छूअन, अश्लील टिप्पणियां,अश्लील इशारे करना, अश्लील बातें व एस. एम. एस करना, अश्लील फिल्में दिखाना, अवांछित फोन करना, काम में बाधा उत्पन्न करनें की धमकी देना, काम में वरीयता देना का प्रलोभन देना, काम की उपलब्धियों को प्रभवित करने की धमकी देना, कार्यस्थल को दखलंदाजी युक्त एवं डरावना बनाना, उपभोक्ताओं से गलत व्यवहार करना यौन उत्पीड़न के दायरे में आता हैं ।
कार्य-स्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न
- अनचाहे यौन बयान
- गंदे चुटकले
- शारीरिक विशेषताओ पर टिप्पणी
- यौन गतिविधियो के बारे मे अफवाहें फैलाना
- दुसरो के सामने यौन गतिविधियो के बारे मे बाते करना
- अप्रिय यौन बयान लिखित व चित्र सामग्री दुसरो के सामने प्रस्तुत करना
- अवांछित व अप्रिय ढंग से छुना
- अवांछित व अप्रिय ढंग से गले लगाना
- अवांछित व अप्रिय ढंग से चुंबन
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प्रश्न 38. मूल्य की परिभाषा दीजिए। तीन सामान्य प्रकार के मूल्य कौन से हैं?
उत्तर – मूल्य: मूल्य व्यक्तिगत विश्वास हैं जो लोगों को एक या दूसरे तरीके से कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं। वे मानव व्यवहार के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं।
मूल्य के तीन प्रकार
- चरित्र मूल्य
चारित्रिक मूल्य सार्वभौमिक मूल्य हैं जिनकी आपको एक अच्छे इंसान के रूप में अस्तित्व में रहने के लिए आवश्यकता है। वे मुख्य विशेषताएं भी हैं जो नियोक्ता भर्ती करते समय देखते हैं। चरित्र मूल्यों के उदाहरणों में शामिल हैं: प्रतिबद्धता, निष्ठा, सकारात्मक दृष्टिकोण और सम्मान।
- कार्य मूल्य
कार्य मूल्य वे मूल्य हैं जो आपको नौकरी में जो चाहते हैं उसे खोजने में मदद करते हैं और आपको नौकरी से संतुष्टि देते हैं। पेशेवर रूप से फलने-फूलने के लिए यह समझना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि आपके कार्य मूल्य क्या हैं। कार्य मूल्यों के उदाहरण हैं: व्यावहारिक, सार्वजनिक संपर्क, प्रतिष्ठा और स्थिरता।
- व्यक्तिगत मूल्य
व्यक्तिगत मूल्य वे मूल्य हैं जो आपको यह परिभाषित करने में मदद करते हैं कि आप जीवन से क्या चाहते हैं और आपको खुश और पूर्ण होने में सहायता करेंगे। वे आपके जीवन के मार्गदर्शक सिद्धांत हैं। व्यक्तिगत मूल्यों के उदाहरण हैं: पारिवारिक जीवन, लोकप्रियता, स्वास्थ्य और दिखावट।
प्रश्न 39. आँकड़े (डेटा) इकट्ठा करने की विभिन्न विधियां क्या हैं ?
उत्तर – आँकड़े इकट्ठा करने की विधियां:
- प्राथमिक डेटा संग्रह
साक्षात्कार
शोधकर्ता लोगों के एक बड़े नमूने के प्रश्न पूछता है, या तो सीधे साक्षात्कार या जन संचार के माध्यम जैसे फोन या मेल द्वारा।
प्रोजेक्टिव डेटा गैदरिंग
अनुमानित डेटा संग्रह एक अप्रत्यक्ष साक्षात्कार है, जिसका उपयोग तब किया जाता है जब संभावित उत्तरदाता जानते हैं कि उनसे प्रश्न क्यों पूछे जा रहे हैं और उत्तर देने में संकोच करते हैं।
डेलफी तकनीक
ग्रीक पौराणिक कथाओं के अनुसार, डेल्फ़ी का दैवज्ञ, अपोलो के मंदिर का महायाजक था, जो सलाह, भविष्यवाणियाँ और सलाह देता था। डेटा संग्रह के दायरे में, शोधकर्ता विशेषज्ञों के एक पैनल से जानकारी एकत्र करके डेल्फ़ी तकनीक का उपयोग करते हैं।
संकेन्द्रित समूह
फोकस समूह, जैसे साक्षात्कार, आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक है। इस समूह में एक मॉडरेटर के नेतृत्व में आधा दर्जन से लेकर एक दर्जन लोग शामिल हैं, जो इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए एक साथ लाए गए हैं।
प्रश्नावली
प्रश्नावली एक सरल, सीधी डेटा संग्रह विधि है। उत्तरदाताओं को सवालों की एक श्रृंखला मिलती है, या तो ओपन या क्लोज-एंडेड, मामले से संबंधित।
- माध्यमिक डेटा संग्रह
प्राथमिक डेटा संग्रह के विपरीत, कोई विशिष्ट संग्रह विधियाँ नहीं हैं। इसके बजाय, चूंकि जानकारी पहले ही एकत्र की जा चुकी है, शोधकर्ता विभिन्न डेटा स्रोतों का परामर्श करता है, जैसे:
- वित्तीय विवरण
- बिक्री रिपोर्ट
- रिटेलर/डिस्ट्रीब्यूटर/डील फीडबैक
- ग्राहक की व्यक्तिगत जानकारी (जैसे, नाम, पता, आयु, संपर्क जानकारी)
- बिजनेस जर्नल्स
प्रश्न 40. भ्रष्टाचार के कारणों की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – भ्रष्टाचार: भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है वह आचरण जो किसी भी प्रकार से अनैतिक और अनुचित हो, इसके अलावा, भ्रष्टाचार में मुख्य रूप से रिश्वतखोरी या गबन जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
भ्रष्टाचार के कारण:
- स्वार्थ और असमानता
असमानता, आर्थिक, सामाजिक या सम्मान पद-प्रतिष्ठा के कारण भी व्यक्ति अपने आपको भ्रष्ट बना लेता है । हीनता और ईर्ष्या की भावना से शिकार हुआ व्यक्ति भ्रष्टाचार को अपने के लिए विवश हो जाता है।साथ ही रिश्वतखोरी, भाई- भतीजावाद आदि भी भ्रष्टाचार को जन्म देते है।
- सामाजिक कारण
सबसे चिंताजनक बात यह है कि आज भ्रष्टाचार को लोगों ने सामाजिक मान्यता प्रदान कर दी है।भ्रष्टाचार के बलबूते पर धन अर्जित करके लोग सम्मान प्राप्त कर रहे है और समाज यह जानते हुए भी की धन बेईमानी से अर्जित किया गया है, उसका तिरस्कार नही करता है। परिणामतः भ्रष्टाचार पनपने में सहायता
मिलती है कहा जाता है की आज इमानदार वही है जिसे बेईमानी का मौका नहीं मिल पता है। ईमानदार आदमी को लोग मूर्ख, पागल, गांधीवाद कहकर खिल्ली उड़ाते हैं और बेईमान को इज्जत देते है ।
- राजनीति में भ्रष्टाचार
राजनीति में भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है | सच तो यह है कि भारतीय चुनाव पद्धति लोकतंत्र की खिलवाड़ है । कौन नहीं जानता कि सरकार द्वारा प्रत्याशियों के लिए निर्धारित व्यय सीमा में चुनाव लड़ पाना असंभव है । नेतागण चुनाव जीतने के लिए सभी मर्यादाओं को त्याग देते है और जब वे भ्रष्ट आचरण से चुनाव जीत जाते है तो फिर नाक तक भ्रष्टाचार में डूबकर पैसा बनाते है ।
- असंतोष
जब किसी को आभाव के कारण कष्ट होता है तो वह भ्रष्ट आचरण करने के लिए विवश हो जाता है ।
प्रश्न 41. किशोर अपराधी बनने के कारणों को सूचीबद्ध कर उनका संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर – किशोर अपराध एक ऐसा व्यवहार है जो आमतौर पर सामान्य नहीं होता है और असामाजिक व्यवहार को अपराध कहा जाता है। कानूनी संदर्भ में, किशोर अपराध को एक ऐसे व्यक्ति के कार्यों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो 18 वर्ष से कम आयु का है जो कानून का पालन नहीं करता है। लेकिन सामान्य रूप में। किशोर अपराध को एक निर्दिष्ट आयु सीमा के तहत एक किशोर के व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो असामाजिक और असामान्य है।
उदाहरण:- किशोर अपराध में अव्यवस्थित आचरण, मामूली चोरी और बर्बरता से लेकर कार चोरी, सेंधमारी, मारपीट, बलात्कार और हत्या तक के अपराध शामिल हो सकते हैं।
किशोर अपराधी बनने के कारण:
- बच्चों के जीवन में अभिभावकों का ना होना – जब किसी बच्चे के जीवन में अभिभावक या माता-पिता नहीं होते हैं अथवा उनकी भूमिका उस बच्चे के जीवन में उतना प्रभाव नहीं डाल पाती है या फिर कोई बच्चा अनाथ हो जाता है, तो ऐसी परिस्तिथि में उस बच्चे की गलत राह पर जाने और अपराध करने की संभावना बढ़ जाती है।
- गरीबी – गरीबी पुरे विश्व की ऐसी कड़वी दवा है जिसे नहीं चाह कर भी खानी पड़ती है ठीक वैसे ही गरीबी के हालात बच्चों और किशोरों को अपराध और गलत काम करने के लिए मजबूर कर देती है, जिसे नहीं चाह कर भी उन्हें करनी पड़ती है।
- मित्र मंडली का प्रभाव – जैसे-जैसे बच्चे अपनी किशोरा अवस्था में जाते हैं, वैसे वह अपने लिए अपनी संगत, दोस्तों और किसी समूह का चयन कर लेता है और यदि अगर वह किसी अपराधी प्रवृति के समूह का चयन कर लेता है, तो वह निश्चित रूप से अपराधी प्रवृति का बन जाता है और अध्ययनों के अनुसार, अपराधी व्यवहार समूहों में किए जाते हैं।
- नशीले पदार्थ – किशोरों के बिच नशीले पदार्थ के सेवन का बढ़ता प्रचलन ही कई बालकों को अपराध करने की राह पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
- आभासी दुनिया और सोशल मीडिया का प्रभाव – आज के युग में सोशल मीडिया और आभासी दुनिया का गहरा प्रभाव बच्चों पर देखने को मिलता है, टेलीविज़न, समाचार, अश्लीलता, गेम इन सब का लगातार संपर्क भी किशोर अपराध को बढ़ावा देता है क्यूंकि किशोरावस्था में बच्चें का मन कोमल होता है और इसलिए वह बचपन में जैसा देखतें हैं वैसा ही सीखतें हैं।
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प्रश्न 42. विद्यालय तथा शैक्षणिक संस्थाएँ किस प्रकार समाजीकरण के कारक हैं?
उत्तर – परिचय
स्कूल और शैक्षणिक संस्थान समाजीकरण के महत्वपूर्ण एजेंट हैं। वे बच्चे को सीखने की स्थिति और वातावरण प्रदान करते हैं जो अनुशासन प्रदान करते हैं और कुछ गुणों को विकसित करते हैं जो उसे अपने व्यक्तित्व को विकसित करने में सक्षम बनाते हैं। इस तरह वह अपनी जरूरतों और उस समूह की जरूरतों को खोजना सीखता है जिससे वह संबंधित है। इस प्रकार, वह स्कूल और अन्य संस्थानों द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुरूप होना सीखता है।
स्कूल
परिवार तथा पड़ोस के बाद स्कूल एक ऐसा स्थान है जहाँ पर बालक का समाजीकरण होता है। स्कूल में विभिन्न परिवारों के बालक शिक्षा प्राप्त करने आते हैं। बालक इन विभिन्न परिवारों के बालक तथा शिक्षकों के बीच रहते हुए सामाजिक प्रतिक्रिया करता है जिससे उसका समाजीकरण तीव्रगति से होने लगता है। स्कूल में रहते हुए बालक को जहाँ एक ओर विभिन्न विषयों की प्रत्यक्ष शिक्षा द्वारा सामाजिक नियामों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं, मान्यताओं, विश्वासों तथा आदर्शों एवं मूल्यों का ज्ञान होता हैं वहीं दूसरी ओर उसमें स्कूल की विभिन्न सामाजिक योजनाओं में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न सामाजिक गुणों का विकास होता रहता है। इस दृष्टि से परिवार तथा पड़ोस की भाँति स्कूल भी बालक के समाजीकरण का मुख्य साधन है।
शैक्षणिक संस्थाएं
शिक्षण संस्थाओं में विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय प्रमुख हैं। शिक्षण संस्थाओं मे ही मित्र समूह बनते हैं। स्कूल का वास्तविक प्रभाव बालक पर किशोरावस्था में प्रवेश करने के बाद प्रारंभ होता हैं। इस समय में बच्चे में नवीन विचारों का प्रादुर्भाव होने लगता हैं और स्कूल में उसे पुस्तकों के अध्ययन से सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त होता है, जिससे उसके दृष्टिकोण का विस्तार होता हैं।
निष्कर्ष
समाजीकरण एक जटिल प्रक्रिया हैं। समाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा ही नवजात शिशु सामाजिक प्राणी के रूप में परिवर्तित होता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक सामाजीकरण की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है।
प्रश्न 43. मानव समाज पर पर्यावरण के बढ़ते प्रभावों की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – परिचय
हमारा पर्यावरण कई प्रकार के लाभ प्रदान करता है, जैसे कि जिस हवा में हम सांस लेते हैं, जो भोजन हम खाते हैं और जो पानी हम पीते हैं, साथ ही साथ हमारे घरों में, काम पर और आराम की गतिविधियों के लिए आवश्यक कई सामग्री। पर्यावरणीय मुद्दे पृथ्वी पर जीवन की गुणवत्ता को कम कर सकते हैं, जिसमें कचरे का अत्यधिक उत्पादन, प्राकृतिक आवासों का विनाश और हमारी वायु, जल और अन्य संसाधनों का प्रदूषण शामिल है।
मानव पर पर्यावरण का प्रभाव
जैविक – भौतिक सीमाएं
जैविक दृष्टि से मानव का शरीर कुछ निश्चित पर्यावरणीय दशाओं में ही अच्छी तरह कार्य करने हेतु सक्षम होता है, अत: मौसम व जलवायु के कारक सभी जीवो व पौधों के जीवन पर विशेष प्रभाव डालते है।
संसाधनों की सुलभता
संसाधनों की सुलभता मनुष्य के जीवन को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करती है, इससे ही मनुष्य अथवा किसी देश की आर्थिक क्षमता, सामाजिक संगठन, सामाजिक स्थिरता व अन्तराष्ट्रीय संबंध भी निर्धारित होते है।
आचारपरक नियंत्रण
विभिन्न पर्यावरणीय कारक मनुष्य की जाति विविधता को निर्धारित करते है, तथा मनुष्य के चिंतन की विचारधारा, संस्कृति, आचार व व्यवहार को प्रभावित करते है।
निष्कर्ष
मानव आबादी का स्वास्थ्य पर्यावरण से अत्यधिक प्रभावित होता है वैश्विक मृत्यु दर का 25% से अधिक पर्यावरणीय कारकों से जुड़ा है जिसमें अत्यधिक गर्मी, खराब वायु गुणवत्ता और खराब पानी की गुणवत्ता, बीमारी का प्रसार और भोजन की कमी शामिल है।
प्रश्न 44. क्षेत्रवाद किस प्रकार राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा है ?
उत्तर- क्षेत्रवाद किसी भी देश की एकता और अखंडता के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। क्षेत्रवाद एकता की एक बहुत बड़ी भावना है, जिसका आधार अपनी ही भाषा को बोलना है। यह आधार भाषा के अतिरिक्त संस्कृति और आर्थिक हितों पर भी आधारित है। इस तरह का क्षेत्रवाद क्षेत्रीय स्वायत्ता और नये राज्यों की मांग को बढ़ाता है। क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकीकरण के लिए चुनौतियाँ हैं ।
क्षेत्रवाद का राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव
- क्षेत्रवाद राष्ट्र की एकता में बहुत बड़ी बाधा है। क्षेत्रवाद से प्रभावित होकर अनेक राजनीतिक दलों का निर्माण हुआ है।ये दल क्षेत्रवाद की भावना से प्रेरित होकर कार्य करते हैं और राष्ट्रीय हितों की परवाह नहीं करते। इसी कारण मतदाता क्षेत्रवाद के आधार पर वोट डालते हैं और राष्ट्रीय हितों को अनदेखा कर देते हैं।
भारतीय संदर्भ में, कुछ विद्वानों का विचार है कि क्षेत्रवाद एक ऐसी संरचना है जो व्यवस्था-विरोधी, संघीय-विरोधी और पूर्ण रूप से एकीकृत राष्ट्र के मौलिक हितों के विरुद्ध है क्योंकि:
- इससे यह भावना पैदा होती है कि एक क्षेत्र की उपेक्षा की जा रही है और उसे देश के बाकी हिस्सों से हीन समझा जा रहा है। उदाहरण के लिए, यह पूर्वोत्तर भारत में देखा गया है, जो भौगोलिक अलगाव के कारण आर्थिक अभाव का सामना कर रहा है।
- उग्रवादी और आक्रामक क्षेत्रवाद अलगाववादी प्रवृत्तियों को बढ़ाता है, यानी संघ के बाहर राज्य की मांग। इसका जीता जागता उदाहरण खालिस्तान आंदोलन और कश्मीर मुद्दा है।
- क्षेत्रवाद उग्रवाद के लिए ढाल बन सकता है और देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है क्योंकि विद्रोही समूह या चरमपंथी अक्सर देश में स्थापित राजनीतिक-प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ क्षेत्रवाद की भावना को भड़काते हैं।
प्रश्न 45. प्रभवजाति के लक्षणों को सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रभवजाति: 20वीं शताब्दी में प्रभवजाति की अवधारणा ग्रामीण अध्ययनों के परिणामस्वरूप हमारे सामने आयी है। इसका मतलब हैं कि गाँव की कुछ जातियाँ आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से प्रभावी हो जाती हैं और वे एक क्षेत्र विशेष में महत्वपूर्ण समझी जाती हैं।
सामान्यतया प्रभव जाति वह है, जिसके पास अपने क्षेत्र में कृषि भूमि अधिक होती है, दूसरे शब्दों में यह जाति आर्थिक दृष्टि से समृद्ध होती है।
- प्रभव जाति राजनैतिक रूप में यानी वोट बैंक की तरह शक्तिशाली होती है।
- इस जाति की जनसंख्या अधिक होती है ।
- इस जाति का कर्मकाण्ड में ऊँचा स्थान होता है।
- इस जाति में अंग्रेजी माध्यम से पढ़े-लिखे लोग होते हैं।
- यह जाति कृषि के क्षेत्र में अग्रणी होती है।
- यह जाति शारीरिक दृष्टि से बाहुबलियों की होती है। यह होते हुए भी प्रभव जाति का दायरा केवल उच्च जातियों तक ही नहीं होता । प्रभव जाति निम्न जातियों में भी पायी जाती है।
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प्रश्न 46. इस्लाम के पाँच तत्वों (खंभों) का स्पष्टीकरण दीजिए।
उत्तर – इस्लाम के पाँच तत्व
- कलमा पढ़ना
उसे खुदा की बादशाहत और मुहम्मद साहब के पैगम्बर होने की घोषणा करनी चाहिए। इसी घोषणा को ‘कलमा’ पढ़ना कहते हैं। इसमें कहा जाता है कि ‘अल्लाह के अतिरिक्त और कोई खुदा नहीं है और मुहम्मद साहब उसी के पैगम्बर हैं।’
- नमाज़ क़ायम रखना
उसे रोज पांच बार नमाज़ पढ़नी चाहिए और हरेक ज़ुमा के रोज दोपहर के बाद मस्जिद में नमाज़ पढ़नी चाहिए।
- जक़ात देना
उसे गरीबों को यह समझकर ज़कात (दान) देना चाहिए कि वह अल्लाह के प्रति कुछ अर्पित कर रहा है। यह एक अच्छा काम है।
- रमजान के रोजे रखना
इस्लाम के पवित्र महीने रमजान में उसे रोज़ा (उपवास) रखना चाहिए।
- हज करना
उसे अपनी जिंदगी में अपने सामर्थ्य के अनुसार अथवा कम से कम एक बार ‘हज’ के लिए जाना चाहिए।
प्रश्न 47. बाल श्रमिक (निषेध एवं विनियम) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर- परिचय
बाल श्रम हमारे देश और समाज के लिए बहुत ही गम्भीर विषय है। बाल मज़दूरी को जड़ से उखाड़ फेंकना हमारे देश के लिए आज एक चुनौती बन चुका है क्योंकि बच्चों के माता-पिता ही बच्चों से कार्य करवाने लगे है। इसलिए भारतीय सरकार ने बाल श्रमिक (निषेध एवं विनियम) अधिनियम लागू किया जिससे बाल मजदूरी को रोका जा सके।
बाल श्रमिक (निषेध एवं विनियम) अधिनियम, 1986
- इस अधिनियम के अतंर्गत भारत शासन द्वारा 65 प्रक्रियाओं एवं 18 उपजीविकाओं में बाल श्रमिकों का नियोजन वर्जित किया गया है। जो कि इस प्रकार है:
- रेलवे यात्री, माल, या मेल परिवहन
- बीड़ी बनाना
- कालीन बुनाई
- माचिस, विस्फोटक और अग्नि निर्माण
- साबुन निर्माण
- 1986 का बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम एक बच्चे को परिभाषित करता है। एक बच्चे को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है जो अभी तक 14 वर्ष की आयु तक नहीं पहुंचा है।
- यह अधिनियम न केवल बच्चों के काम के घंटे, बल्कि उनके काम करने की परिस्थितियों को भी नियंत्रित करता है, और यह खतरनाक क्षेत्रों में बच्चों के उपयोग पर रोक लगाता है।
- बाल श्रम निषेध और विनियमन अधिनियम, 1986 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए 83 खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है।
निष्कर्ष
बाल श्रम बच्चों को स्कूल जाने के उनके अधिकार से वंचित करता है और गरीबी को पीढ़ीगत बनाती है। बाल श्रम शिक्षा में एक प्रमुख बाधा के रूप में कार्य करता है, जो स्कूल में उपस्थिति और प्रदर्शन दोनों को प्रभावित करता है।
प्रश्न 48. संस्कृति के प्रसार में जन संचार माध्यमों की क्या भूमिका है?
उत्तर- परिचय
जन संचार माध्यम यह सुनिश्चित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि सामाजिक मानदंडों, विचारधाराओं और रीति-रिवाजों का प्रसार हो । इसके कारण समाजीकरण संभव और बहुत सरल हो गया है। जन-संचार माध्यमों के द्वारा निभाई गई सबसे महत्वपूर्ण भूमिका संस्कृति का विस्तार या प्रसार है।
संस्कृति के प्रसार में जन संचार माध्यमों की भूमिका
- इंटरनेट की भूमिका: इंटरनेट को केवल एक तकनीक होने के बजाय कुछ मायनों में एक सांस्कृतिक कलाकृति भी माना जाता है। यह कहा जा सकता है कि इंटरनेट ने ज्यादातर संस्कृति को प्रभावित किया है। वेब के आविष्कार और उपयोग ने संस्कृति को अत्यधिक समर्थन दिया है। इंटरनेट ने लोगों के रहन-सहन, सीखने और बातचीत करने के तरीके को व्यापक रूप से प्रभावित किया है।
- मीडिया की भूमिका: मीडिया समाज के विभिन्न वर्गों के हितों का रक्षक भी होता है। वह समाज की नीति, परंपराओं, मान्यताओं तथा सभ्यता एवं संस्कृति के प्रहरी के रूप में भी भूमिका निभाता है। पूरे विश्व में घटित विभिन्न घटनाओं की जानकारी समाज के विभिन्न वर्गों को मीडिया के माध्यम से ही मिलती है।
- टीवी एवं रेडिओ की भूमिका: टीवी एवं रेडिओ के माध्यम से संस्कृतियों का निर्माण होता है , संचार मानव अंतःक्रिया का साधन है जिसके माध्यम से सांस्कृतिक विशेषताएं- चाहे रीति-रिवाज, भूमिकाएं, नियम, अनुष्ठान, कानून या अन्य पैटर्न- बनाए और साझा किए जाते हैं।
निष्कर्ष
विभिन्न संस्कृतियों को एक साथ लाने व प्रसार में जनसंचार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, सांस्कृतिक एकता के विकास में राष्ट्रीय और स्थानीय संचार माध्यम महत्वपूर्ण भूमिकाएँ अदा करते हैं।
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प्रश्न 49. स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ग्रामीण समाज में हुए परिवर्तनों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – भारत गांवों का देश है और उसमें से लगभग आधे गांवों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। आजादी के बाद से ग्रामीण जनता का जीवन स्तर सुधारने के लिए ठोस प्रयास किए गए हैं, ग्रामीण विकास कार्यक्रम में मुख्य जोर रोटी,कपडा, मकान, बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य पर रहा है।
सामुदायिक विकास योजना 1952
2 अक्टूबर, सन 1952 में सामुदायिक विकास और विस्तार सेवा कार्यक्रम का प्रारम्भ हुआ। सामुदायिक विकास योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण जीवन का सर्वागीण विकास करना तथा ग्रामीण समुदाय की प्रगति एवं श्रेश्ठतेर जीवन-स्तर के लिए पथ प्रदर्शन करना है। इस रूप में सामुदायिक विकास कार्यक्रम के उद्देश्य इतने व्यापक है कि इनकी कोई निश्चित सूची बना सकना एक कठिन कार्य है।
वर्तमान समय में सामुदायिक विकास का संबंध ग्रामीण विकास से जोड़ा गया है। इसका उद्देश्य गांवों में जीवन निर्वाह की मुख्य दशाओं में सुधार करना है । सामुदायिक संगठन तथा विकास का तात्पर्य भी यही है कि समाज की स्थानीय क्रियाओं द्वारा प्रगति हो। इसी को दूसरे देशों में कई नामों से जाना जाता है, जैसे- ग्रामीण पुनर्निर्माण, ग्रामोद्योग, जन शिक्षा तथा सामुदायिक संगठन या सामुदायिक विकास। भारत में प्रथम योजना के प्रारम्भ में इसे ग्रामीण पुनर्निर्माण या ‘ग्रामोद्धार का नाम दिया गया था।
इस योजना को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की सहायता से भारत में लागू किया गया। देश में 55 सामुदायिक विकास कार्यक्रमों को प्रारम्भ किया गया। इसी समय अन्न उपजाओ जांच समिति ने गांव के सर्वांगीण विकास के लिये एक ऐसे राष्ट्रीय विस्तार संगठन की स्थापना की सिफारिश की जो घर-घर पहुंच सके और ग्रामीण विकास कार्य में उन्हें सहभागी बना सके।
सामुदायिक विकास वह प्रक्रिया है जिसमें स्थानीय जनता का प्रयास सरकारी संगठन से मिलकर अपनी आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों में उन्नति लाये और इन समुदायों को राष्ट्रीय जीवन के साथ जोड़ा जाये, ताकि वे समग्र विकास में योगदान दे सकें। भारत जैसे विशाल देश के चहुँमुखी विकास के लिये ग्रामीण विकास पर ध्यान केन्द्रित करना नितान्त आवश्यक है, क्योंकि हमारे देश । की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। जब तक ग्रामीण समाज को उन्नति के पथ पर अग्रसर नहीं किया जायेगा, उनकी स्थिति में सुधार नहीं किया जायेगा और ग्रामीण समाज को समन्वित और सतत विकास की प्रक्रिया से नहीं जोड़ा जायेगा, जब तक देश”। में समग्र व समावेशी विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसी बात को दृष्टिगत रखते हुये ही, स्वतंत्रता प्राप्ति के पचात से विकास कार्यक्रमों व पंचवर्षीय योजनाओं में ग्रामीण विकास को महत्व प्रदान किया गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि भारतीय ग्रामीण समाज में स्वतंत्रता के पचात से अनेक विकासवादी परिवर्तन आये हैं, फिर भी कुछ दिक्कतें अभी भी विद्यमान हैं।
पंचायती राज
भारत में सर्वप्रथम 2 अक्टूबर सन 1959 में पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया था जिसका नेतृत्व भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के द्वारा किया गया था। भारत में पंचायती राज व्यवस्था को 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के तहत लागू किया गया था।
पंचायती राज वह व्यवस्था प्रणाली है जिसके अंतर्गत ग्रामीण स्तर पर अनेकों कार्य किए जाते हैं। जिस प्रकार नगरपालिका द्वारा शहरी क्षेत्रों का स्वशासन होता है उसी प्रकार पंचायती राज संस्था के माध्यम से भी ग्रामीण क्षेत्रों का स्वशासन संभव होता है। पंचायती राज को ग्रामीण स्थानीय सरकार के रूप में भी जाना जाता है। यह भारतीय सरकार की वह शाखा है जिसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक गांव अपनी गतिविधि एवं विकास के लिए स्वयं जिम्मेदार होते हैं। यह एक प्रकार का स्थानीय निकाय है जो ग्रामीण क्षेत्रों का कल्याण करने का कार्य करती है।
पंचायती राज के कार्य
प्राचीन काल से ही भारत में पंचायती राज का कार्य ग्रामीण क्षेत्रों का आर्थिक रूप से विकास करना होता है। यह सामाजिक न्याय प्रणाली को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ केंद्र एवं राज्य सरकार की सभी लाभकारी योजनाओं को ग्रामीण इलाकों में स्थापित करने का कार्य करता है। पंचायती राज त्रिस्तरीय ढांचे की स्थापना करके एक नवीन ग्राम सभा की भी स्थापना करता है जिसका लाभ ग्रामीण क्षेत्रों के नागरिकों को सीधे तौर पर मिलता है।
निष्कर्ष
भारत में पंचायती राज की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है। यह देश में एक संस्था के रूप में कार्य करती हैं जिसका उद्देश्य विभिन्न राजकीय कार्यक्रमों की योजना बनाना, समन्वय करना एवं केंद्र व राज्य सरकारों के द्वारा लागू किए गए योजनाओं की निगरानी करना होता है। पंचायती राज देश में स्वच्छता, लघु सिंचाई, सार्वजनिक शौचालय, सार्वजनिक सड़कों की सफाई, प्राथमिक स्वास्थ्य की देखभाल, पेयजल आपूर्ति, टीकाकरण, ग्रामीण विद्युतीकरण, सार्वजनिक नलकूप का निर्माण, शिक्षा आदि से संबंधित कार्यों की निगरानी करता है। इसके अलावा पंचायती राज देश के ग्रामीण क्षेत्रों में हुए विकास कार्यों की निगरानी कर समय-समय पर सरकार को सूचना पहुंचाने का कार्य भी करता है।
प्रश्न 50. समकालीन भारत में विवाह की संस्था में आने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – परिचय
समकालीन समाज में विवाह में अनेक परिवर्तन हो रहे है । यह परिवर्तन पति – पत्नी, परिवार तथा समाज से संबंधित है। विवाह के प्रति बदलते दृष्टिकोणों को विवाह संस्था के अनेक लक्षणों को बदला है, जैसे विवाह की आयु, विवाह के उद्देश्य, प्रकार, विधि-विधान, रीति-रिवाज, पति-पत्नी के अधिकार, संस्कारात्मक प्रकृति आदि।
विवाह संस्था में परिवर्तन
परम्परागत विवाह जहाँ परिवार एवं नातेदारी संबंधों द्वारा तय किया जाता था वहीं आज इंटरनेट तथा मैरिज ब्यूरो इस कार्य को करने लगे है। अखबारों में इच्छित जीवन साथी में चाही गई विशेषताओं या गुणों के साथ आकर्षक विज्ञापन प्रकाशित कराए जाते है। आज की युवा पीढी के लडके जहां लम्बी, गोरी, उच्च शिक्षित एंव खूबसूरत पत्नी की चाहत रखते है। वहीं लड़कियां उच्च वेतन वाले एवं आकर्षण व्यक्तित्व को पंसद करती है, जिसका शहर में अपना एक अच्छा भौतिक सुख-सुविधाओं युक्त घर हो । लेकिन अखबार के वर्गीकृत विज्ञापनों में जातीय विवाह अभी भी महत्वपूर्ण है हांलाकि ऐसे लोग भी काफी संख्या में है जिनके लिए जाति कोई बंधन नहीं है ।
विवाह की आयु
वर्तमान समय के युवा शिक्षा, रोजगार एवं अपने कैरियर को ज्यादा महत्व देते है जिससे विवाह की आयु मे परिवर्तन हुआ है। पहले के समय मे बाल विवाह का प्रचलन था । इसके बाद विवाह की आयु 18-21 वर्ष निर्धारित की गयी। परन्तु वर्तमान समय मे विलम्ब विवाह का ज्यादा प्रचलन हो गया है। 26 वर्ष तक युवा शिक्षा प्राप्त करते है बाद में विवाह के लिए सोचते है। युवक ही नही युवतियाँ भी वर्तमान मे अपने कैरियर को ही महत्व देती है। किन्ही परिस्थितियों मे पारिवारिक दबाव के कारण युवतियों का जल्दी विवाह हो जाता है। आधुनिक समय में युवाओं पर कैरियर एवं अकेले रहकर मौजमस्ती करने की जिन्दगी इस कदर होती है कि युवा विवाह को अब 28 से 30 वर्ष तक सोचने लगे है ।
विवाह के संस्कार में परिवर्तन
वर्तमान में विवाह को एक आवश्यक धार्मिक संस्कार नही माना जाता । पूर्व में विवाह को जन्म जन्मान्तर का बन्धन तथा अटूट सम्बन्ध माना जाता था। अब कानूनी आधार पर विवाह एक कानूनी समझौता या संविदा बन गया है। विवाह – विच्छेद को भी कानून द्वारा मान्यता प्रदान कर दी गयी है। विवाह पहले धार्मिक विधि-विधान से पूर्ण किया जाता था । विवाह से सम्बन्धित संस्कारो में अब औपचारिकता रह गयी है। पुरोहित औपचारिक रूप में सूक्ष्म रूप एवं कम समय में विवाह सम्पन्न करवा देता है। विवाह होटल में सम्पन्न होता है ।
विवाह से सम्बन्धित निषेधों में परिवर्तन
वर्तमान समय में अन्तर्जातीय विवाह, प्रेम विवाह को बढ़ावा मिला है बाल विवाह समाप्त होने लगे है। विलम्ब विवाहों का प्रतिशत बढ़ गया है। विधवा विवाह को प्रोत्साहन मिला है। देरी से विवाह करने का युवाओ में आजकल रिवाज सा बन गया है। विवाहित रहना है या अविवाहित इसका निर्णय युवा स्वयं करते है। विवाह करना नही करना व्यक्तिगत मामला हो गया है। समाज के प्रतिबन्ध इस मामलें में पहले जैसे नही रहे पुरूष एक से अधिक विवाह नही कर सकता। विवाह के मामले में महिला – पुरूष दोनो को समान अधिकार दिये गये हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार महिला को दूसरा विवाह करने का अधिकार नही दिया जाता था । वर्तमान में महिला भी पुरूष के समान किन्हीं परिस्थितियों में दूसरा विवाह कर सकती है।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 भारत की संसद का एक अधिनियम है जिसमें भारत और विदेशों में सभी भारतीय नागरिकों के लिये विवाह का प्रावधान है, चाहे दोनों पक्षों द्वारा किसी भी धर्म या आस्था का पालन किया जाए।
निष्कर्ष
वर्तमान समय में युवा विवाह के बाद एक दूसरे पर निर्भर नही रहते तथा वे अपने निर्णय स्वयं लेते है। युवतियाँ पति के अधीन नही रहती, वे बन्धन मुक्त एवं स्वतन्त्र रहती है, इसी कारण युवा अपने कैरियर एवं शिक्षा को ज्यादा महत्व देते है । एकांकीता की भावना ने युवाओं को आत्मकेन्द्रित बना दिया है, वे अपने बारे में ही सोचना पसन्द करते है । युवतियाँ ज्यादातर रोजगार प्राप्त करने के बाद ही विवाह करना पसन्द करती है । युवतियों का मानना है कि वर्तमान परिवेश के कारण व्यक्ति की आर्थिक जरूरतें इतनी बढ़ गयी है कि इनको पूरा करने के लिए पति एवं पत्नी दोनों का रोजगार करना जरूरी हो गया है।
प्रश्न 51. भारतीय जाति व्यवस्था में आने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – जाति व्यवस्था मे परिवर्तन हो रहे है, यह कमजोर और विघटित हो रही है यह एक सामाजिक तथ्य है, कोई आकस्मिक घटना नही है। जाति व्यवस्था मे हो रहे परिवर्तनों के पीछे अनेक कारकों का हाथ है।
भारतीय जाति व्यवस्था में आने वाले परिवर्तन
- ओधोगिकरण और नगरीयकरण
उद्योगीकरण के फलस्वरूप लघु एवं कुटीर उद्योगों का तेजी से ह्रास हुआ है जिससे उनमे लगी व्यावसायिक जातियों को अन्य व्यवसायों को अपनाने के लिए बाध्य होना पड़ा है। इसके अलावा मशीनों पर काम करने के लिये विशेष प्रशिक्षण आवश्यक है, न कि जातीय गुणों का होना। अतः विभिन्न जातियों के लोग साथ-साथ काम करने लगे। इससे विभिन्न जातियों के बीच दूरी कम होने मे मदद मिली। सामाजिक सहवास तथा भोजन प्रतिबन्ध खत्म हो गये। औद्योगिकरण के साथ-साथ नगरीकरण मे भी वृद्धि हुई। नगरों मे विभिन्न जातियों के लोग साथ-साथ रहने लगे। द्वैतीयक सम्बन्धों की बहुलता के कारण नगरों मे अपनी जाति छुपाना भी आसान हो गया।
2.शिक्षा
नवीन शिक्षा ने अनेक प्रकार से जाति व्यवस्था का विघटन करने में योगदान किया हैं। इस शिक्षा को कोई भी प्राप्त कर सकता हैं। विद्यालयों में ब्राह्मण और शूद्र के भेदभाव को समाप्त कर दिया गया हैं और शिक्षा ग्रहण करके निम्न जाति का व्यक्ति भी समाज के उच्चतम पद को प्राप्त कर सकता हैं। साथ ही आधुनिक शिक्षा प्रणाली जाति व्यवस्था की हानियों का प्रचार करती है। इस कारण नवयुवकों के मस्तिष्क में प्रारंभ से ही जाति के प्रति उपेक्षा की भावना विकसित करने का प्रयास किया जाता हैं।
- विज्ञान का प्रभाव
इस वैज्ञानिक युग मे विज्ञान के चमत्कारिक अविष्कारों से प्रभावित होकर भारतीय समाज की रूढ़िवादिता एवं अन्धविश्वास समाप्त होता जा रहा है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होता जा रहा है। जाति प्रथा जिन सिद्धांतों पर आधारित है, वे विज्ञान द्वारा सिद्ध होते जा रहे है।
- आधुनिकीकरण
यह ऐसी प्रक्रिया है, जिसका भरोसा वैज्ञानिक दृष्टिकोण में है। इस प्रक्रिया में विवेकपूर्ण अभिवृत्तियाँ होती हैं। उच्च सामाजिक गतिशीलता होती है। सम्पूर्ण जनसमूह का परिवर्तन होता है। लोगों का स्वतन्त्रता में विश्वास होता है, समानता और बंधुत्व आते हैं, इस प्रक्रिया में लोग भागीदारी करते हैं। आधुनिकीकरण में संस्थाओं, संरचनाओं, अभिवृत्तियों आदि के क्षेत्र में सामाजिक- सांस्कृतिक और वैयक्तिक स्तर पर परिवर्तन आता है।
शहरों में जातियाँ धीरे-धीरे वर्ग बन रही है। हमारे यहाँ मध्यम वर्ग राष्ट्रीय दृष्टिकोण एवं नये उद्देश्यों को लेकर आगे आ रही है। आधुनिकीकरण पश्चिमीकरण की तुलना में अधिक विशाल अवधारणा है। कोई भी एक संस्कृति पश्चिमी मूल्यों को लेकर अपने आपको आधुनिक कर सकती है। हमारे देश के लिए यह कहा जा सकता है कि हम परम्पराओं को छोड़े बिना भी आधुनिक हो सकते हैं। हमारी जाति व्यवस्था ने कई आधुनिक तौर-तरीकों को अपना लिया है। ऐसा करने में हमने लोगों को शिक्षा-दीक्षा दी है, औपचारिक संगठन बनाये हैं तथा लोगों को यह चेतना दी है कि हम आधुनिक हो रहे हैं।
- प्रजातंत्र
प्रजातंत्र, समानता, स्वतंत्रता और बन्धुत्व पर आधारित होता है। भारतीय स्वतंत्रता के बाद भारत ने स्वयं को प्रजातंत्रात्मक राज्य घोषित किया। प्रजातंत्र और जाति व्यवस्था एक दूसरे के विरोधी है, क्योंकि जाति मे भेदभिव और ऊँच-नीच जैसे असमानतायें पाई जाती है। प्रजातंत्र मे व्यक्ति का मूल्य उसकी योग्यता और कार्य क्षमता के आधार पर तय होता है, जबकि जाति मे व्यक्ति की समाज मे स्थिति इस बात पर निर्भर करती है कि वह किस जाति मे पैदा हुआ है।
- पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव
जाति व्यवस्था मे परिवर्तन के लिए पश्चिमी शिक्षा भी उत्तरदायी है। अंग्रेजो से पहले भारत मे जाति के आधार पर शिक्षा प्राप्त की जाति थी। अंग्रेजो ने शिक्षा का सार्वभौमीकरण कर दिया। इससे सभी व्यक्तियों को शिक्षा प्राप्त करने का समान अधिकार मिल गया इस नयी शिक्षा ने लोगों मे वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित किया। वहीं स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व की भावना को भी विकसित किया।
निष्कर्ष
जाति व्यवस्था एक सामाजिक बुराई है जो प्राचीन काल से भारतीय समाज में मौजूद है। वर्षों से लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं लेकिन फिर भी जाति व्यवस्था ने हमारे देश के सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी है।
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प्रश्न 52. सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधनों के बारे में संक्षेप में टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर – परिचय
अनौपचारिक नियंत्रण का सम्बन्ध राज्य से न होकर समाज और समूह से होता है । यह अलिखित तथा असंगठित होते हैं। इस प्रकार के नियंत्रण के पीछे सरकार व राज्य की सत्ता नहीं होती है। अनौपचारिक नियंत्रण का विकास समय के साथ-साथ स्वतः ही होता है। प्रथाएँ, जनरीतियाँ, सामाजिक मानदण्ड, धर्म, नैतिकता, हास्य व्यंग्य, जनमत आदि अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण के साधन हैं । सामाजिक नियम समूह तथा समाज कल्याण की दृष्टि से आवश्यक एवं उपयोगी होते हैं अतः अपने समूह को अप्रसन्न न करने की दृष्टि से व्यक्ति अनौपचारिक नियंत्रण को स्वीकार करता है। ग्रामीण, आदिम व सरल समाजों में इस प्रकार का नियंत्रण अधिक प्रभावी होता है। अनौपचारिक नियंत्रण में समाज व समूह के सदस्य सजग प्रहरी की भाँति समूह के सदस्यों द्वारा सामाजिक नियमों के पालन की निगरानी रखते हैं ।
सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधन
- धर्म तथा नैतिकता
धर्म व नैतिकता परस्पर सम्बन्धित अवधारणाएँ हैं । ये सामाजिक नियंत्रण का प्रमुख साधन हैं। धर्म व्यक्ति को ‘क्या करना चाहिए’ व ‘क्या नहीं करना चाहिए’ का आदर्श देता है। उसकी मान्यताएँ, विश्वास, परम्पराएँ, त्यौहार आदि किसी न किसी धर्म से अवश्य ही सम्बद्ध होते हैं। धर्म का सम्बन्ध अलौकिक शक्तियों में विश्वास से है। अलौकिक शक्तियों द्वारा कुछ अनिष्ट करने के भय से व्यक्ति धर्म के नियमों का पालन करता है । आगस्ट काम्ट ने कहा है कि धर्म नैतिकता का आधार है, अर्थात् बिना धर्म के नैतिकता का उद्भव नहीं हो सकता । नैतिकता व्यक्ति को उचित – अनुचित का बोध कराती है तथा उसे गलत कार्य करने से रोकती है। नैतिकता व्यवहार के स्वीकृत प्रतिमानों को निश्चित कर उसके विवेक को नियंत्रण करती है। नैतिकता व्यक्ति को सत्य, ईमानदारी, अहिंसा, समानता व न्याय के गुण सिखाती है। नैतिकता में भी समूह कल्याण की भावना निहित है । आज कल धर्म के स्थान पर नैतिकता सामाजिक नियंत्रण का प्रमुख साधन है ।
- लोकरीतियाँ, लोकाचार व प्रथाएँ
सामाजिक प्रतिमान सामाजिक नियंत्रण के प्रमुख अभिकरण है । जनरीतियों के बारे में समनर ने कहा है कि जनरीतियां प्राकृतिक शक्तियों के समान होती है जिनका पालन व्यक्ति अचेतन रूप से करता है । जनरीतियाँ समाज में व्यवहार करने योजनाओं के माध्यम से लोगों में सुरक्षा की भावना विकसित करता है । इस प्रकार राज्य लोगों के व्यवहार को प्रभावशाली ढंग से नियंत्रित करता है।
- विश्वास
सामाजिक नियंत्रण में विश्वासों की प्रमुख भूमिका होती है। प्रत्येक व्यक्ति समाज में प्रचलित विश्वासों के आधार पर समाज-विरोधी कार्य करने से हिचकता है। प्रारंभ से ही मनुष्य प्रकृति में ऐसी सर्वशक्तिमान सत्ता का आभास करता आया है जिसके नियमों का उल्लंघन करना एक अपराध है। मनुष्यों का विश्वास रहा है कि पारलौकिक सत्ता की आज्ञा पालन करने से उन्हें सुख और समृद्धि मिलेगी तथा अवज्ञा करने पर दण्ड प्राप्त होगा। व्यक्ति कोई भी कार्य करते समय सोचता है कि यदि उसे कोई अन्य व्यक्ति नहीं तो कम-से-कम भगवान तो उसके कार्य को देख रहा है तथा इसी भावना से कई बार वह अनुचित काम करने से रुक जाता है।
4.सामाजिक सुझाव
सन्त, महात्मा तथा धार्मिक नेता आदि सामाजिक सुझावों द्वारा सामाजिक नियंत्रण रखने का महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। ये लोग जनसाधारण के सम्मुख मौखिक और लिखित रूप में कुछ सुझाव प्रस्तुत करते हैं। इन सुझावों द्वारा सामाजिक कार्यों को करने के लिए तथा असामाजिक कार्यों को न करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस प्रकार सुझावों द्वारा लागू किया गया नियंत्रण अधिक प्रबल होता है।
- सामाजिक उत्सव
समाज में उत्सवों तथा पर्यों का प्रमुख स्थान होता है। प्रत्येक समाज में विभिन्न उत्सव मनाए जाते हैं। इन उत्सवों के प्रति सर्वसाधारण में विशेष श्रद्धा और भक्ति की भावना होती है। ये उत्सव व्यक्तियों को उनके उत्तरदायित्व का ज्ञान कराते हैं। इसमें भाग लेकर व्यक्ति अपने उत्तरदायित्वों का पालन करना सीखता है और व्यवहारों को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए–विवाह उत्सव में भाग लेकर व्यक्ति अपने पारिवारिक उत्तरदायित्व को निभाना सीखता है।
- कला
कला सामाजिक नियंत्रण का एक प्रमुख शक्तिशाली अनौपचारिक साधन है। कानून और अन्य औपचारिक साधनों द्वारा जो नियंत्रण नहीं हो पाता, वह काव्य, चित्रकला, स्थापत्य कला तथा संगीत आदि द्वारा सरलता तथा सफलता से हो जाता है। विभिन्न कलाएँ मानव हृदय को प्रभावित करती हैं, जिससे उनका व्यवहारं नियंत्रित होता है। वर्तमान युग में मनुष्यों के दृष्टिकोण को परिष्कृत करने में विभिन्न कलाओं का विशेष योगदान रहा है।
निष्कर्ष
अनौपचारिक नियंत्रण व्यक्तिगत, अशासकीय एवं असंहिताबद्ध होता है। यह अलिखित होता है तथा उसका विकास समाज में धीरे-धीरे तथा अपने आप हो जाता है। इसमें मुस्कान, चेहरे बनाना, शारीरिक भाषा, आलोचना, उपहास, हँसी आदि सम्मिलित होते हैं।
प्रश्न 53. भारत में ग्रामीण स्त्रियों को सशक्त बनाने में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – परिचय
स्वयं सहायता समूह (SHG) कुछ ऐसे लोगों का एक अनौपचारिक संघ होता है जो अपने रहन-सहन की परिस्थितियों में सुधार करने के लिये स्वेछा से एक साथ आते हैं। सामान्यतः एक ही सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों का ऐसा स्वैच्छिक संगठन स्वयं सहायता समूह (SHG) कहलाता है, जिसके सदस्य एक-दूसरे के सहयोग के माध्यम से अपनी साझा समस्याओं का समाधान करते हैं। SHG समाज के ग्रामीण तबके की महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक उन्नति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत में ग्रामीण स्त्रियों को सशक्त बनाने में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका
- स्वयं सहायता समूहों का लक्ष्य मोटे तौर पर वित्त तक पहुँच निश्चित कर गरीबी निवारण है परंतु इसके महत्त्वपूर्ण पूरक के रूप में इससे महिला सशक्तीकरण को नई दिशा मिल रही है। ये समूह न केवल महिलाओं को वित्त उपलब्ध कराकर आत्मनिर्भर बना रहे हैं बल्कि उनमें समग्र जागरूकता के विकास में भी भूमिका निभा रहे हैं। जिससे उनका सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक सशक्तीकरण हो रहा है।
- सूक्ष्म वित्त संस्थाओं द्वारा महिलाओं को प्राप्त होने वाले ऋण से महिला उद्यमों का सृजन, विकास एवं संवर्द्धन जारी है। जिससे महिलाओं की स्वायत्तता, स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता, स्वरोजगार, आत्मविश्वास व सामाजिक ओहदे में वृद्धि हुई है। महिलाओं के स्वयं सहायता समूह के सदस्य के रूप में कार्य करने से उनमें स्वनिर्णय की क्षमता का विकास हुआ है तथा बैंकों के साथ लेन-देन एवं कागजी कार्रवाई जैसी गतिविधियाँ उनमें आत्मविश्वास जगाती हैं।
- इन समूहों के माध्यम से पंचायत संस्थाओं, बैकों, गैर-सरकारी संगठनों से संपर्क करने से महिलाओं की सूचनाओं व संसाधनों तक पहुँच में वृद्धि हुई है जिससे उनमें सशक्तता को बढ़ावा मिला है। समूहों के माध्यम से महिलाएँ आत्मनिर्भर हो रही हैं जिससे परिवार व समाज में उनकी स्थिति में परिवर्तन हो रहा है। यदि महिलाएँ सशक्त होंगी तो उनके विरुद्ध घरेलू हिंसा के मामलों, में भी कमी आएगी। स्वयं सहायता समूहों में कार्य करने से महिलाओं की सामुदायिक कार्यों में सहभागिता व पंचायतों की बैठकों में सक्रिय भागीदारी में वृद्धि हुई है।
- ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जब स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने ग्राम सभा में शामिल होकर अपनी समस्याओं पर पंचायत और प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया और उन्हें हल करने की शुरुआत की। इसके अलावा कई ऐसी घटनाएँ भी सामने आयीं जब महिला समूहों ने जल संकट जैसी कई समस्याओं के निवारण हेतु ग्राम सभा में अपनी बात रखी एवं समस्या के समाधान के भी प्रयास किये। इसके अतिरिक्त गाँवों में स्कूल, आंगनबाड़ी, राशन दुकान की मॉनीटरिंग भी इन समूहों की महिलाओं द्वारा करने के उत्तम प्रयास किये गए। इन समूहों के माध्यम से महिलाओं की वित्तीय क्षेत्र में अभूतपूर्व भागीदारी बढ़ी है। भारत में 80 फीसदी से अधिक स्वयंसहायता समूह महिलाओं से संबद्ध हैं जिनमें भुगतान दर 95 फीसदी के लगभग है तथा गैर-निष्पादक संपत्तियों का प्रतिशत भी कम है। इन समूहों ने महिलाओं में कौशल विकास को भी बढ़ावा दिया है।
निष्कर्ष
भारत के सामजिक-आर्थिक विकास में गैर-सरकारी संस्थाओं, स्वयं सहायता समूहों एवं निजी क्षेत्र की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ये सभी संस्थाएँ अपनी विभिन्न सामाजिक गतिविधियों और कार्यों से नए भारत के निर्माण में तथा विभिन्न सामाजिक विषमताओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी, भेदभाव, भ्रष्टाचार एवं महिला एवं बाल उत्पीड़न इत्यादि को जन आंदोलन एवं भागीदारी से दूर करने में सरकार व समाज को अपना बहुमूल्य योगदान दे सकती हैं।
प्रश्न 54. सामाजिक व्यवस्था की विशेषताएँ क्या है ?
उत्तर – परिचय
सामाजिक व्यवस्था उस चरण को संदर्भित करती है जिसमें समाज को बनाने वाली विभिन्न भवन इकाइयां एक दूसरे के साथ कार्यात्मक संबंधों के आधार पर एक सांस्कृतिक प्रणाली के भीतर उचित संतुलन की स्थिति बनाती हैं जिसमें विभिन्न संस्थाएं व्यक्तियों के सामाजिक संबंधों और व्यवहारों को नियंत्रित कर सकती हैं। उनके उद्देश्यों के साथ, यदि समाज की प्रत्येक इकाई को मनमाने ढंग से कार्य करने के लिए स्वतंत्र कर दिया जाए तो समाज का ढांचा अव्यवस्थित हो जाएगा।
मैक्सवेबर
“समाज स्वयं एक व्यवस्था है। यह प्रचलनों, कार्यविधियों, प्रभुत्व, आपसी सहयोग और विभिन्न समूहों और श्रेणियों के नियंत्रण व मानव व्यवहारों के नियंत्रण और स्वतंत्रताओं की एक व्यवस्था है।”
सामाजिक व्यवस्था की विशेषताएँ
- सामाजिक व्यवस्था का सम्बन्ध सांस्कृतिक व्यवस्था से है।
- सामाजिक व्यवस्था का एक भौतिक या पर्यावरणीय पहलू है।
- सामाजिक व्यवस्था की विभिन्न इकाइयों में व्यवस्था एवं संतुलन है।
- मानवीय आवश्यकताओं और पर्यावरणीय परिणामों के कारण सामाजिक व्यवस्था बदलती है।
- अंतःक्रिया के परिणामस्वरूप, सामाजिक व्यवस्था में कुछ सामाजिक संबंधों की उपस्थिति आवश्यक है।
- सामाजिक व्यवस्था एक दूसरे के साथ अन्त क्रिया करने वाले कई अलग-अलग वैयक्तिक कर्ताओं से संबंधित है।
- सामाजिक व्यवस्था ने भी समाज के सदस्यों के स्वीकृत और अंतर्निहित उद्देश्यों को स्वीकार किया है।
- सामाजिक व्यवस्था में अनुकूलन का गुण होता है। समाज में सदस्यों की आवश्यकताओं में परिवर्तन के अनुरूप सामाजिक व्यवस्था बदलती है।
- सामाजिक व्यवस्था का एक प्रकार्यात्मक पक्ष होता है। सामाजिक व्यवस्था जड़ व्यवस्था नहीं है, यह एक सक्रिय तत्व है जिसके माध्यम से समाज और व्यक्ति के कुछ उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है।
- सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत समाज के विभिन्न निर्माणात्मक तत्त्वों के बीच अपूर्ण व्यवस्था एवं अंतर्संबंध स्पष्ट रूप से उपस्थित होना चाहिए, जिसके फलस्वरूप ये विभिन्न तत्त्व एकता में परिणत हो जाते हैं।
- इसके अंतर्गत जब एकाधिक व्यक्ति आपस में अंतःक्रिया करते हैं तो उनकी अंतःक्रियाओं से जो व्यवस्था उत्पन्न होती है उसे सामाजिक व्यवस्था कहते हैं। इस प्रकार सामाजिक व्यवस्था के लिए अनेक व्यक्तियों का अन्तःक्रिया आवश्यक है।
निष्कर्ष
सामाजिक व्यवस्था का वातावरणीय पक्ष भी है। यह किसी निश्चित युग से जुड़ा रहता है तथा एक निश्चित क्षेत्र एवम् समाज से संबंधित रहता है वातावरण का असर जीवन की सभी क्रियाओं पर पड़ता है।
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प्रश्न 55. राज्य नीति के दिशा-निर्देशक सिद्धांत क्या है ?
उत्तर- परिचय
राज्य नीति के दिशा-निर्देशक सिद्धांत: राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत सरकार को दिए गए कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश हैं ताकि वह उसके अनुसार काम कर सके और कानून और नीतियां बनाते समय उनका उल्लेख कर सके और एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सके। इन सिद्धांतों का उल्लेख संविधान के भाग IV के आर्टिकल 36 से 51 में किया गया है।
राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत – वर्गीकरण
- समाजवादी सिद्धांत
- गांधीवादी सिद्धांत और
- उदार-बौद्धिक सिद्धांत
डीपीएसपी – समाजवादी सिद्धांत
परिभाषा: वे सिद्धांत हैं जिनका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक न्याय प्रदान करना है और कल्याणकारी राज्य की दिशा में मार्ग निर्धारित करना है।
अनुच्छेद 38 | सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के माध्यम से एक सामाजिक व्यवस्था हासिल करके लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना और आय, स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानताओं को कम करना |
अनुच्छेद 39ए | गरीबों को समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता को बढ़ावा देना |
डीपीएसपी – गांधीवादी सिद्धांत
परिभाषा: ये सिद्धांत गांधीवादी विचारधारा पर आधारित हैं जो राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान गांधी द्वारा प्रतिपादित पुनर्निर्माण के कार्यक्रम का प्रतिनिधित्व करते थे।
अनुच्छेद 40 | ग्राम पंचायतों को संगठित करना और उन्हें स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक शक्तियाँ और अधिकार प्रदान करना |
अनुच्छेद 43 | ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तिगत या सहकारिता के आधार पर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना |
डीपीएसपी – उदार-बौद्धिक सिद्धांत
परिभाषा: ये सिद्धांत उदारवाद की विचारधारा को प्रतिबिम्बित करते हैं।
अनुच्छेद 44 | पूरे देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करना |
अनुच्छेद 48 | कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक आधार पर व्यवस्थित करें |
नीति निर्देशक तत्वों का महत्व
- जन शिक्षण की दृष्टि से महत्व: यह सिद्धांत राज्य के उद्देश्यों या लक्ष्यों के बारे में जानकारी देते हैं। इन सिद्धांतों के अध्ययन से पता चलता है कि राज्य एक लोक कल्याणकारी प्रशासनिक ढांचे की स्थापना के लिए कृतसंकल्प है।
- सिद्धांतों के पीछे जनमत की शक्ति: यद्यपि इन सिद्धांतों को न्यायालय द्वारा क्रियान्वित नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके पीछे जनमत की सत्ता होती है, जो प्रजातंत्र का सबसे बड़ा न्यायालय है। अतः जनता के प्रति उत्तरदायी कोई भी सरकार इनकी अवहेलना का साहस नहीं कर सकती। इन निर्देशक का महत्व इस बात में है कि ये नागरिकों के प्रति राज्य के सकारात्मक दायित्व हैं।
- राजनीतिक स्थिरता की दृष्टि से महत्व: लोकतंत्र में सरकारें बदलती रहती है। कभी एक दल की सरकार है, जो कभी किसी दूसरे दल की सभी दलों की नीतियां अलग-अलग होती हैं। कुछ दल क्रांतिकारी विचारधारा वाले होते हे तो कुछ रूढ़िवादी होते है परंतु सरकार चाहे जिस दल की भी हो, उसे इन सिद्धांतों के अनुसार ही अपनी नीतियां ढालनी पड़ेंगी। इस प्रकार निर्देशक सिद्धांतों से प्रशासन में स्थिरता आयेगी।
- संविधान की व्याख्या में सहायक: संविधान के अनुसार नीति निर्देशक सिद्धान्त देश के शासन में मूलभूत है, जिसका तात्पर्य यह है कि देश के प्रशासन के लिए उत्तरदायी सभी सत्ताएं उनके द्वारा निर्देशित होंगी। न्यायपालिका भी शासन का एक महत्वपूर्ण अंग है, इस आधार पर अपेक्षा की जा सकती है कि भारत में न्यायालय संविधान की व्याख्या के कार्य में निर्देशक तत्वों को उचित महत्व देंगे।
- शासन के मूल्यांकन का आधार: नीति निर्देशक सिद्धांतों द्वारा जनता को शासन की सफलता व असफलता की जांच करने का मापदण्ड भी प्रदान किया जाता है। शासक दल के द्वारा अपने मतदाताओं को निर्देशक सिद्धांतों के संदर्भ में अपनी सफलताएं बतायी नहीं है ओर शासन शक्ति पर अधिकार करने के इच्छुक राजनीतिक दल को इन तत्वों के क्रियान्वयन के प्रति अपनी तत्परता और उत्साह दिखाना होता है। इस प्रकार निर्देशक तत्व जनता को विभिन्न दलों की तुलनात्मक जांच करने योग्य बना देते हैं।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान में निर्देशक सिद्धांतों के अध्याय के तहत निहित कई सिद्धांत समाज को रहने के लिए एक बेहतर जगह बनाने का लक्ष्य रखते हैं। वे संकट के समय में भी जीवन को बनाए रखने में मदद करते हैं। मौलिक अधिकारों और निर्देशक सिद्धांतों के बीच संघर्ष हुए हैं और एक ही उद्देश्य के लिए कई ऐतिहासिक मामले लड़े गए हैं। ये सिद्धांत न तो लागू करने योग्य हैं और न ही राज्य पर कोई प्रतिबंध लगाते हैं। फिर भी, उन्हें नजरअंदाज करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि लचीले संविधान का सार कुछ हद तक इन सिद्धांतों में निहित है। सभी सिद्धांतों की गहन समझ होना आवश्यक है।
प्रश्न 56. ड्रग व्यसनी को समाज पर दुष्ट प्रभाव डालने वाला क्यों माना जाता है ?
उत्तर – परिचय
नशा एक सामाजिक बुराई है जो एक व्यक्ति के साथ-साथ पूरे देश को प्रभावित करती है। जो लोग नशीली दवाओं के सेवन के आदी हैं, वे मन की चपलता, मित्रता की भावना, गर्मजोशी और सामाजिक जागरूकता खो देते हैं। लंबे समय में, वे सिज़ोफ्रेनिक अवस्था से पीड़ित होते हैं।
चिकित्सकीय मार्गदर्शन के बिना दवाओं के नियमित सेवन से नशीली दवाओं की लत लग जाती है, जिसे मस्तिष्क की संरचना और कार्यों पर दवाओं के प्रभाव के कारण मस्तिष्क रोग के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। चूंकि नशीली दवाओं की लत आदत बनाने वाली या लत लगाने वाली होती है, इसलिए इस आदत बनाने वाले व्यवहार को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाना चाहिए। इसके अलावा, जब लोग कम उम्र में ड्रग्स लेना या शराब का सेवन करना शुरू कर देते हैं, तो यह एक ऐसी लत बन जाती है जिसे आसानी से छोड़ना मुश्किल होता है।
नशीले पदार्थों के दुष्परिणाम
- बीमार स्वास्थ्य
नशीली दवाओं के मुद्दे कई अलग-अलग तरीकों से खराब स्वास्थ्य का कारण बनते हैं। जब कोई व्यक्ति स्वादिष्ट भोजन करता है या प्यार में पड़ता है, तो मस्तिष्क डोपामाइन नामक उत्तेजक हार्मोन को प्रसारित करता है। ड्रग्स डोपामाइन के उत्पादन को भी प्रोत्साहित करते हैं। लेकिन समय के साथ, मस्तिष्क डोपामिन बनाने, प्रसारित करने और प्राप्त करने के लिए दवाओं पर निर्भर हो सकता है।
- परिवार
एक व्यक्ति के नशीले पदार्थों के सेवन से उसके पूरे परिवार पर प्रभाव पड़ सकता है। यदि कोई अपने परिवार के सदस्यों के सामने नशा करता है, तो वे उसे परेशान या अलग कर सकते हैं। पारिवारिक समारोहों में नशे में धुत होना भी तनावपूर्ण होता है। एक बच्चा जो एक ऐसे माता-पिता के साथ रहता है जिसे व्यसन है, उसके बड़े होने में बड़ी परेशानी हो सकती है। वे उपेक्षित या दुर्व्यवहार हो सकते हैं।
- कार्यस्थल के मुद्दे
जो लोग ड्रग्स का इस्तेमाल करते हैं उनकी कार्यस्थल पर दूसरों की तुलना में बहुत कम उत्पादकता होती है। बीमारी या चोट के कारण औसत कार्यकर्ता साल में 15 दिन याद करता है। एक कर्मचारी को प्रशिक्षित करने में हजारों डॉलर खर्च हो सकते हैं। यदि व्यसन से ग्रस्त कोई व्यक्ति जल्दी काम छोड़ देता है, तो उसे अपने नियोक्ता को बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है। व्यसनों वाले बहुत से लोग अपनी नौकरी छोड़ देते हैं क्योंकि वे अपनी नौकरी की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकते। कुछ लोग व्यसनों को बनाए रखते हुए नौकरी करने का प्रबंधन करते हैं। वे उच्च कार्यप्रणाली के रूप में सामने आ सकते हैं, लेकिन वे अभी भी व्यसन से पीड़ित हैं।
- अपराध
नशे का सेवन किसी को भी अपराध करने के लिए प्रेरित कर सकता है। अधिक दवाओं की लागत को कवर करने के लिए वे अपने रिश्तेदारों से पैसे या सामान चुरा सकते हैं। दुर्लभ मामलों में, कर्मचारी ड्रग्स खरीदने के लिए अपनी कंपनियों से छोटी-छोटी नकदी चुराते हैं।
- पर्यावरणीय क्षति
मेथामफेटामाइन के उत्पादन में बड़े पर्यावरणीय जोखिम हैं। यह जहरीले रसायनों पर निर्भर करता है जो जमीन पर फैल सकते हैं, भूजल और भूमिगत आवासों में रिस सकते हैं। धुएं हवा को प्रदूषित कर सकते हैं, जिससे उच्च संपर्क और फेफड़ों को नुकसान हो सकता है।
निष्कर्ष
नशीली दवाओं का उपयोग और लत दुनिया में बहुत सारी बीमारी और अक्षमता का कारण बनती है। तम्बाकू, शराब और अन्य मनो-सक्रिय दवाओं के उपयोग से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए तंत्रिका विज्ञान में हाल की प्रगति नीतियों को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है। और नशीली दवाओं के दुरुपयोग से सामाजिक, शारीरिक, भावनात्मक और नौकरी से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
प्रश्न 57. अनुसूचित जनजातियों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं को सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर – परिचय
अनुसूचित जनजातियों में आदिम विशेषताएं, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, बड़े समुदाय के साथ संपर्क की शर्म और पिछड़ापन है। नतीजतन, उन्हें अपने पूरे जीवन में कई चुनौतियों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के साथ भारत में जनजातीय समस्याएं कई हैं।
अनुसूचित जनजातियों की समस्याएं
1) दुर्गम निवास
जनजातीय दुर्गम एवं दूरस्थ स्थान में निवास करते है। आवागमन में असुविधा होती है, और संचार साधनों का अभाव होता है। जिस वजह से मुख्यधारा से कट जाते है।
2) अशिक्षा
अशिक्षा जनजाति समूह के विकाश में एक प्रमुख बाधा है। शिक्षकों एवं सुविधाओं की कमी आदि ऐसे कारक है, जो जनजातीय क्षेत्रो में शिक्षा के विस्तार को बाधित करती है।
3) प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण की समाप्ति
जनजाति समूहों का हमेसा से प्राकृतिक संसाधनों पर पूर्ण नियंत्रण रहा था। परंतु, ब्रिटिश शासन आने के बाद राजकीय नियंत्रण लागू हो गया। परिणामस्वरूप परंपरागत प्राकृतिक संसाधनों पर जनजातीय नियंत्रण समाप्त हो गया।
4) बेरोजगारी
प्राकृतिक संसाधनों पर जनजातीय नियंत्रण ना होने तथा कम शिक्षित होने के कारण नई ( आधुनिक ) व्यवस्था में इनके लिए रोजगार के साधन भी सीमित है।
5) विस्थापन एवं पुनर्वास
जनजातीय क्षेत्रो में खनिज खदाने, बिजली परियोजना, बड़े बांध तथा विशाल औधोगिक संयंत्र स्थापित करने हेतु व्यापक भूमि अधिग्रहण हुए है। जिस वजह से विस्थापन की समस्या ने जन्म लिया। विस्थापन की वजह से “सांस्कृतिक संपर्क” की समस्या ने जन्म लिया । विस्थापन उपरांत अपने क्षेत्र से बाहर ( या शहरी क्षेत्र) निवास करने से इन्हें मनोवैज्ञानिक समस्याओ का सामना करना पड़ता है।
6) निर्धनता
अशिक्षा, बेरोजगारी तथा अपनी आजीविका के साधनों से वंचित होने की वजह से जनजातीयो में गरीबी, भूखमरी की समस्या का सामना करना पड़ा है।
7) पहचान का क्षय
जनजातियों की परंपरागत संस्थानों एवं कानूनों का आधुनिक संस्थानों एवं कानूनी व्यवस्था के साथ टकराव होने से जनजातीय पहचान के क्षय की आशंकाओं का जन्म हुआ।
8) स्वास्थ्य संबंधित समस्याएँ एवं कुपोषण
जनजातीय क्षेत्रो में स्वास्थ्य संबंधित समस्याएँ व्याप्त है। जिनका प्रमुख कारण अशिक्षा, निर्धनता एव असुरक्षित आजीविका का साधन है। इन क्षेत्रों में पीलिया, हैजा, मलेरिया जैसे बीमारियां व्याप्त है। इन क्षेत्रों में कुपोषण से जुड़ी हुई समस्याएं जैसे लौह तत्व की कमी, रक्ताल्पता तथा उच्च शिशु मृत्यु दर बड़ी समस्या है।
निष्कर्ष
भारत में जनजातियाँ कुल जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह भारतीय समाज में एक समुदाय का प्रतिनिधित्व करती है जो हमारी सभ्यता की संस्कृति के साथ एकीकृत है। भारत की जनजातीय आबादी कुल जनसंख्या का लगभग 8 प्रतिशत है।
प्रश्न 58. समाजीकरण की परिभाषा दीजिए। समाजीकरण के कारक कौन से हैं ?
उत्तर – परिचय
समाजीकरण की परिभाषा: समाजीकरण एक सतत प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति सामाजिक मानदंडों और समाज के अन्य व्यक्तियों के व्यवहार या दृष्टिकोण से परिचित होते हैं। यह किसी क्षेत्र के सामाजिक ढांचे को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है जिसके परिणामस्वरूप समाज के व्यक्तियों के व्यक्तित्व का विकास होता है।
समाजीकरण के कारक
- पालन-पोषण (Upbringing)
बालक के समाजीकरण में पालन पोषण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रारंभिक जीवन बालोंको को जिस प्रकार का वातावरण मिलता है, जिस प्रकार का माहौल मिलता है उसी के अनुसार बालक में भावनाएं तथा अनुभूतियां विकसित हो जाती है। एक बालक समाज विरोधी आचरण उसी समय करता है, जब वह स्वयं को समाज के साथ व्यवस्थापित नहीं कर पाता।
- सहानुभूति (Sympathy)
सहानुभूति का भी बालक के समाजीकरण में गहरा प्रभाव पड़ता है। इसका कारण यह है कि सहानुभूति के द्वारा बालक में अपनत्व की भावना विकसित होती है। जिसके परिणाम स्वरूप वह एक दूसरे में भेदभाव करना सीख जाता है। वह उस व्यक्ति को अधिक प्यार करने लगता है जिसका व्यवहार उसके प्रति सहानुभूतिपूर्ण होता है।
- सामाजिक शिक्षण (Social Learning)
सामाजिक शिक्षण का आरंभ परिवार से होता है, जहां पर बालक माता पिता, भाई-बहन तथा अन्य सदस्यों से खान-पान तथा रहन-सहन आदि से शिक्षा ग्रहण करता है।
4. पुरस्कार एवं दंड (Rewards and Punishments)
जब बालक समाज के आदर्शों तथा मान्यताओं के अनुसार व्यवहार करता है, तो लोग उसकी प्रशंसा करते हैं तथा लोग में उस कार्य के लिए पुरस्कार की देते हैं। वहीं दूसरी तरफ जब बालक कोई असामाजिक व्यवहार करता है, तो दंड दिया जाता है जिससे भयभीत होकर वह दोबारा ऐसा व्यवहार नहीं करता है।
- वंशानुक्रम (Inheritance)
बालक ने वंशानुक्रम से प्राप्त कुछ अनुवांशिक गुण होते हैं। जैसे- मूलभाव, संवेग, सहज क्रिया तथा क्षमताए इत्यादि। इसके अतिरिक्त उनके अनुकरण एवं सहानुभूति जैसे गुणों में भी वंशानुक्रम की प्रमुख भूमिका होती है। यह सभी तत्व बालक के समाजीकरण के लिए उत्तरदाई होते हैं।
- परिवार (Family)
बालक के समाजीकरण उसके परिवार से ही आरंभ होता है। बालक अपने परिवार के लिए लोगों के संपर्क में रहता है, तो उनसे सीखता है ।परिवार के लोगों के रहन-सहन, बात- विचार, इत्यादि का अनुकरण करने लगता है। इस प्रकार से परिवार बालक की समाजीकरण में अहम भूमिका निभाता है।
निष्कर्ष
समाजीकरण किसी अन्य व्यक्ति की संस्कृति को जानने और उसके भीतर रहने के तरीके सीखने की प्रक्रिया है। जब हम संस्कृति के बारे में बात करते हैं, तो हम समाज में शामिल नैतिक मानदंडों, मूल्यों, भाषा, दृष्टिकोण और अन्य पहलुओं की समग्रता का उल्लेख कर रहे हैं।
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प्रश्न 59. अनुसूचित जातियाँ जिन समस्याओं का सामना कर रही हैं उनकी संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर – परिचय
अनुसूचित जातियाँ: देश में वे जातियाँ हैं जो अस्पृश्यता की सदियों पुरानी प्रथा और कुछ अन्य बुनियादी सुविधाओं की कमी और भौगोलिक अलगाव के कारण उत्पन्न अत्यधिक सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन से पीड़ित हैं और जिन्हें विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ।
अनुसूचित जातियों की समस्याएं:
- सामाजिक समस्या:
ये समस्याएं शुद्धता और प्रदूषण की अवधारणा से संबंधित थीं। अछूतों को समाज में बहुत निम्न स्थान दिया जाता था। उच्च जाति के हिंदुओं ने उनसे सामाजिक दूरी बनाए रखी। उन्हें जीवन की कई बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा गया था जो उच्च जाति के हिंदुओं को दी गई थीं। वे खाने-पीने की वस्तुओं के लिए हिन्दुओं की परम्परा पर निर्भर थे।
- धार्मिक समस्याएँ:
ये उन मंदिरों में प्रवेश के अधिकार से इनकार करने से संबंधित थे जो विशेष रूप से उच्च जाति के ब्राह्मणों द्वारा प्रदान किए जाते थे। अछूतों को न तो मंदिरों में प्रवेश करने दिया जाता था और न ही ब्राह्मणों द्वारा उनकी सेवा की जाती थी। उन्हें मंदिर में देवी-देवताओं की पूजा करने का कोई अधिकार नहीं था।
- आर्थिक समस्याएँ:
उन्हें अनेक आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन्हें कई आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और उन्हें उनकी सेवा के लिए उचित पुरस्कार नहीं दिया गया। परंपरागत रूप से, अछूतों को उनकी खुद की जमीन-जायदाद से वंचित कर दिया गया था। उन्हें कोई भी व्यवसाय करने की अनुमति नहीं थी। उन्हें उन व्यवसायों में संलग्न होने की अनुमति नहीं थी जो अन्य जातियों के लोगों द्वारा किए जा रहे थे।
- सार्वजनिक विकलांग:
हरिजनों को कई सार्वजनिक अपमानों का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्हें कुओं, सार्वजनिक परिवहन के साथ-साथ शैक्षणिक संस्थानों जैसी सार्वजनिक उपयोगिताओं की सेवाओं का उपयोग करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया था।
- शैक्षिक समस्याएँ:
परंपरागत रूप से अस्पृश्य शिक्षा प्राप्त करने से वंचित थे। उन्हें सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों का उपयोग करने की अनुमति नहीं थी। आज भी अधिकांश निरक्षर अछूत हैं।
निष्कर्ष
अनुसूचित जातियां हमारे समाज का अभिन्न अंग थीं लेकिन उनके अशुद्ध व्यवसायों में संलग्न होने के कारण उन्हें अछूत माना जाता था। वे अपने अधिकारों और स्वतंत्रता से वंचित थे। वे कई सामाजिक अक्षमताओं से पीड़ित थे।
प्रश्न 60. महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित रखने हेतु लागू किए गए कानूनों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर – परिचय
घरेलू दायरे में हिंसा को घरेलू हिंसा कहा जाता है। किसी महिला का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, मौखिक, मनोवैज्ञानिक या यौन शोषण किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाना जिसके साथ महिला के पारिवारिक सम्बन्ध हैं, घरेलू हिंसा में शामिल है।
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005
- “घरेलू हिंसा के विरुद्ध महिला संरक्षण अधिनियम की धारा, 2005” घरेलू हिंसा को पारिभाषित किया गया है
- क्षति पहुँचाना या जख्मी करना या पीड़ित व्यक्ति को स्वास्थ्य, जीवन, अंगों या हित को मानसिक या शारीरिक तौर से खतरे में डालना या ऐसा करने की नीयत रखना और इसमें शारीरिक, यौनिक, मौखिक और भावनात्मक और आर्थिक शोषण शामिल है
- दहेज़ या अन्य संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की अवैध मांग को पूरा करने के लिए महिला या उसके रिश्तेदारों को मजबूर करने के लिए यातना देना, नुक्सान पहुँचाना या जोखिम में डालना
- पीड़ित को शारीरिक या मानसिक तौर पर घायल करना या नुक्सान पहुँचाना
घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के आवश्यक प्रावधान
घरेलू हिंसा किया जा चुका हो या किया जाने वाला है या किया जा रहा है , की सूचना कोई भी व्यक्ति संरक्षण अधिकरी को दे सकता है जिसके लिए सूचना देने वाले पर किसी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं तय की जाएगी। पीड़ित के रूप में आप इस कानून के तहत ‘संरक्षण अधिकारी’ या ‘सेवा प्रदाता’ से संपर्क कर सकती हैं। पीड़ित के लिए एक ‘संरक्षण अधिकारी’ संपर्क का पहला बिंदु है।संरक्षण अधिकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही शुरू करने और एक सुरक्षित आश्रय या चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने में मदद कर सकते हैं।प्रत्येक राज्य सरकार अपने राज्य में ‘संरक्षण अधिकारी’ नियुक्त करती हैl
‘सेवा प्रदाता’ एक ऐसा संगठन है जो महिलाओं की सहायता करने के लिए काम करता है और इस कानून के तहत पंजीकृत है l पीड़ित सेवा प्रदाता से, उसकी शिकायत दर्ज कराने अथवा चिकित्सा सहायता प्राप्त कराने अथवा रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान प्राप्त कराने हेतु संपर्क कर सकती हैlभारत में सभी पंजीकृत सुरक्षा अधिकारियों और सेवा प्रदाताओं का एक डेटाबेस यहाँ उपलब्धहै।सीधे पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट से भी संपर्क किया जा सकता हैl आप मजिस्ट्रेट – फर्स्ट क्लास या मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट से भी संपर्क कर सकती हैं, किंतु किस क्षेत्र के मैजिस्ट्रेट से सम्पर्क करना है यह आपके और प्रतिवादी के निवास स्थान पर निर्भर करता है l 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में अमूमन मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट से संपर्क करने की आवश्यकता हो सकती है l
घरेलू हादसों के रिपोर्ट
जब पीड़िता घरेलू हिंसा की शिकायत करना चाहती हो तो रिपोर्ट दर्ज की जानी चाहिए। पीड़िता की शिकायत में उसकी व्यक्तिगत जानकारियों जैसे नाम, आयु, पता, फोन नंबर, बच्चों की जानकारी, घरेलू हिंसा की घटना का पूरा ब्यौरा, और प्रतिवादी का भी विवरण दिये जाने की जरुरत होती है। जब जरुरत हो तो संबंधी दस्तावेज जैसे चिकित्सकीय विधिक दस्तावेज, डॉक्टर के निर्देश या स्त्रीधन की सूची को रिपोर्ट के साथ नत्थी करना चाहिए। शिकायत में पीड़िता को मिली राहत या सहायता का भी विशेष उल्लेख किया जाना चाहिए। इस रिपोर्ट पर पीड़िता के हस्ताक्षर के साथ-साथ सुरक्षा अधिकारी के भी दस्तखत होने चाहिए। इस रिपोर्ट की प्रति स्थानीय पुलिस थाने और मजिस्ट्रेट को उचित कार्रवाई के लिए दी जानी चाहिए। एक प्रति पीड़िता और एक कॉपी सुरक्षा अधिकारी या सेवा प्रदाता के पास रहनी चाहिए।
निष्कर्ष
21वीं सदी में घरेलू हिंसा के सामाजिक मुद्दे के समाधान के लिए विभिन्न कदम उठाए गए हैं। दुनिया भर की सरकारों ने घरेलू हिंसा को खत्म करने के लिए सक्रिय कदम उठाए हैं। इसके अलावा, मीडिया, राजनेताओं और प्रचार समूहों ने लोगों को घरेलू हिंसा को एक सामाजिक बुराई के रूप में स्वीकार करने में सहायता की है।
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