IGNOU MPS-003 भारत: लोकतंत्र एवं विकास Q.13 HINDI MEDIUM
प्रश्न 13 – उत्तर-पूर्वी भारत के संदर्भ में नृजातीय राजनीति की चर्चा कीजिए ।
उत्तर – परिचय
नृजातीय शब्द की उत्पति लैटिन भाषा के ‘ ethnicus ‘ तथा ग्रीक भाषा के ‘ ethnicas’ शब्दों से हुई है, इन दोनों का अर्थ राष्ट्र है । शब्द की उत्पति के अनुसार, नृजातियता एक साथ रहने वाले लोगों के झुंड (राष्ट्र) को दर्शाती है जो ज्ञान और सामान्य रीति-रिवाजों को सांझा करते है। नृजातीय अथवा संजातीयता को रंग और संस्कृति के आधार पर विश्लेषित किया जाता है। नृजातीय समूह किसी समाज की जनसंख्या का वह भाग है, जो परिवार की पद्धति, भाषा, मनोरंजन, प्रथा, धर्म, संस्कृति एवं उत्पत्ति, आदि के आधार पर अपने को दूसरों से अलग समझते हैं।
विचारको के विचार
मैक्स वेबर के अनुसार: ” नृजातीय समूह वो मानव समूह है जो शारीरिक प्रकारो या रीति- रिवाजों या दोनों की समानताओं के कारण या प्रवसन व उपनिवेशवाद की यादों के कारण अपने सामान्य वंश में एक व्यक्तिपरक विश्वास को रखते है । समूह निर्माण के प्रसार के लिए यह विश्वास महत्पपूर्ण होता है। इसके विपरीत, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि एक वस्तुनिष्ठ रक्त संबंध मौजूद है या नही”
उत्तर-पूर्वी भारत के संदर्भ में नृजातीय राजनीति
नृजातीय राजनीति बहुत हद तक वास्तविक एवं काल्पनिक कारकों पर निर्भर करती है। भारत के सभी राज्यों में कई नृजातीय समूह हैं जिनकी संख्या भिन्न होती हैं। उन राज्यों में जहाँ आत्म-निर्णय के लिये आंदोलन, स्वायत्ता आंदोलन, अलगाव आंदोलन, राजनीतिक आंदोलन हुआ है। वहीं पर नृजातीय राजनीति महत्वपूर्ण हुई है। कभी-कभी नृजातीय राजनीति विभिन्न नृजातीय समूहों के बीच हिंसा की ओर ले जाती है। भारत में सबसे अधिक जनजातिय निवास स्थान उत्तर-पूर्वी भारत में है। उत्तर–पूर्व की जनजातियाँ अधिक रूप में इसाई धर्म तथा बौद्ध धर्म को अपनाती हैं, भारत के इन क्षेत्रों में अनेक नृजातीय आन्दोलन हुए हैं इसमें नागालैंड, असम, मेघालय, पंजाब , तमिलनाडु और जम्मू एवं कश्मीर आदि शामिल हैं।
पूर्वोत्तर में नृजातीय समूहों के कुछ उदाहरण इस प्रकार है :- मणीपुर और नागालैण्ड में कुकी एवं नागा, मणीपुर में मेइती, असम में बोडो, संथाल, कर्बी एवं गैर आदिवासी समूह तथा मेघालय में बंगाली, नेपाली, खासी, जैंतिया और गारो इत्यादि । कभी-कभी नृजातीय समूह जो आमतौर पर परस्पर विरोधी होते हैं, एक सामान्य लक्ष्य में एक-दूसरे का साथ देते हैं। लेकिन लक्ष्य की प्राप्ति के बाद उनके भीतर मतभेद उभर आते हैं। छोटे नृजातीय समूहों का आरोप हैं कि लक्ष्य प्राप्ति के बाद प्रमुख नृजातीय समूह उनके प्रति भेदभाव की भावना पैदा करते है।
इसके परिणामस्वरूप वे भी अपने नृजातीय समूह के लिये स्वायत्ता की माँग करते हैं। असम की बोडो जनजाति का उदाहरण इसमें प्रासंगिक हैं। बोडो ने असम में विदेशियों के खिलाफ छः वर्ष तक आंदोलन में भाग लिया था जिसका नेतृत्व ऑल असम स्टूडेंटस यूनियन ने किया था। लेकिन असम गण परिषद ने जब सरकार का गठन किया तो बोडो ने यह रेखांकित किया कि ए.जी.पी. सरकार ने बोडो की समस्याओं की उपेक्षा की गई जिसमें असम के बड़े नृजातीय समूहों का वर्चस्व था। परिणामस्वरूप बोडो ने एक अलग बोडोलैंड बनाने की माँग करते हुए एक आंदोलन शुरू किया।
नृजातीय समूहों की राजनीति का निर्णय नृजातीय बहुमत द्वारा किया जाता है। मेघालय का उदाहरण ले सकते हैं जहाँ नृजातीय बहुमत है। यहाँ पर तीन तरह के नृजातीय समूह हैं- खासी, गारो और जैन्तिया । यहाँ नृजातीय बहुमत मुख्य तौर पर बंगाली, नेपाली, बिहारी, और राजस्थानी / मारवाड़ियों की है। इन नृजातीय समूहों के दोनों समूहों ने एक साथ मिलकर 1960 के दशक में अलग मेघालय राज्य की मांग की । इनकी प्रमुख माँग असमी भाषा को आधिकारिक भाषा बनाने के खिलाफ थी, क्योंकि यह असम के नृजातीय विशिष्ट वर्ग की भाषा मानी जाती थी। उस वक्त इनके बीच संबंधों को नृजातीय सद्भाव के तौर पर देखा जाता था। लेकिन 1972 में मेघालय के गठन के बाद इन दोनों के बीच संबंध नृजातीय विवाद और संघर्ष में बदल गया। विवाद का प्रमुख कारण था पहचान को संरक्षण, परंपरा, संस्कृति एवं स्वदेशी समुदायों की आर्थिक अवसर एवं संपत्ति का संरक्षण करना इत्यादि ।
उत्तर-पूर्व में नृजातीय आंदोलन
उत्तर-पूर्व क्षेत्र में बहुत से नृजातीय आंदोलन हुए है। भौतिक रूप से अगम्य (मुश्किल), सामाजिक- भाषाई और धार्मिक विशिष्टता के कारण इस क्षेत्र में जनजातिय लोगों की बड़ी संख्या मुख्यधारा की संस्कृति के साथ आत्मसात नहीं हो पायी है। उनमें से ज्यादातर ने इसाई धर्म को अपना लिया है। पहला जनजातीय समूह, नागाओं ने स्वतन्त्र राज्य के लिए आंदोलन शुरू किया। एक लम्बे संघर्ष के बाद वे 1963 में एक अलग राज्य नागालैण्ड को प्राप्त करने में सफल हुए । इसी प्रकार दूसरी नृजातीय समस्या उत्तर-पूर्व के मिजो आदिवासियों के साथ रखता था । मिजो के लोगो ने भी अलग राज्य स्थापित करके स्वायत्तता पाने के लिए अपना संघर्ष जारी रखा। मिजोरम की केन्द्र शासित प्रदेश की स्थिति राज्य के दर्जे में बदल गयी ।
पंजाब में नृजातीय आंदोलन
खालिस्तान आंदोलन सिक्खों के एक सम्प्रदाय द्वारा एक अलग सिक्ख देश बनाने के लिए किया गया था। आंदोलन पंजाब में 1970 में तीव्र हो गया था और 1990 के दशक की शुरुआत तक जारी रहा था। सिक्ख नेताओं का एक समूह केन्द्र सरकार से अधिक स्वायत्तता की मांग करने लगा । उन्होने जून 1984 में खलिस्तान नामक अलग देश की मांग की। हिंसा के कारण भारतीय सरकार ने सैन्य कार्यवाही, ‘आपरेशन ब्लयू स्टार’ का आदेश दिया जिससे हरमन्दर साहिब, अमृतसर और तीस दूसरे गुरूद्वारों (सिक्खों के पूजा स्थान) को सशस्त्र आतंकवादियों से मुक्त करा सके जो गुरूद्वारों में हिंसा के लिए सहारा ले रहे थे । इंदिरा गांधी, तत्कालीन प्रधानमंत्री की उनके दो सिक्ख अंगरक्षको के द्वारा हत्या कर दी गयी जिसके परिणाम स्वरूप 1984 में सिक्ख विरोधी दंगों में हजारों सिक्खों का कत्ल कर दिया गया। बाद में पंजाब विद्रोह ने पंजाब में कुछ अलगाववादी आतंकी समूहों को सक्रिय होते हुए देखा, जिनका समर्थन सिक्ख आंदोलन के एक भाग द्वारा किया गया। भारतीय राज्य ने 1990 के दशक के आरम्भ में विद्रोह को नियंत्रित कर लिया ।
असम में नृजातियता
असम में मूल निवासी बोड़ो आदिवासियों और नए बसने वाले नृजातीय बंगाली मुस्लिमों नए बसने वाले नृजातीय बंगाली मुस्लिमों व के बीच संघर्ष 1952 में शुरू हुआ, और इसके बाद 1979-1985, 1991-1994 और 2008 में भी हिंसक झड़प हुई। 2012 में कोखराजार, चिरांग और धुवरी जिलो में बोड़ो और बाँगलादेशी मुस्लिमों के बीच हिंसा भड़क और दंगे भड़क गये थे। इस हिंसा में 77 लोग मारे गये थे और हिंसा के कारण 4,00,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हो गये थे जिसमें बोडों और बांग्लादेशी मुस्लिम दोनों शामिल थें । भूमि और सांस्कृतिक पहचान के नुकसान के कारण बोडो बांग्लादेशी अप्रवास का विरोध करते है । दंगों के बाद पूरे उत्तर-पूर्व में गैर कानूनी बाग्लादेशी अप्रवासियों के “जल्दी पता लगाने और निर्वासन” की मॉग को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध होने लगा । इस मुद्दे को सामूहिक रूप से प्रदर्शित करने के लिए बोड़ो ने असम में दूसरे मूल निवासी आदिवासी समुदायों के साथ संबंध स्थापित कर लिये। इसी प्रकार, ऑल बोडोलैण्ड मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन (ABMSU) ने जिहाद करने की धमकी दी और राज्य के खिलाफ हथियार उठाएं ।
जम्मू एवं कश्मीर
5 अगस्त, 2019 तक जम्मू एवं कश्मीर अलग राज्य था लेकिन इसे बाद में धारा 370 को हटाकर जो इसे विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करती थी, दो भागों में विभाजित कर दिया। इसे दो केन्द्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया। जब जम्मू और कश्मीर राज्य था तो उस वक्त इसमें तीन क्षेत्र शामिल थे जम्मू कश्मीर और लद्दाख । जम्मू और कश्मीर के दो केन्द्र शासित प्रदेश बन जाने के बाद जम्मू और कश्मीर में अधिकांश हिन्दू एवं मुस्लिम समुदाय के लोग हैं जबकि लद्दाख में अधिकांश बौद्ध समुदाय के लोग हैं। यद्यपि ये समुदाय अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, इन समुदायों की राजनीति जम्मू-कश्मीर राज्य के समय से ही विद्यमान है। जम्मू कश्मीर में नृजातीयता की नींव धर्म एवं क्षेत्र पर आधारित है। इसका परिणाम जम्मू और कश्मीर के विभाजन से पहले हम लद्दाख क्षेत्र को नया केन्द्र शासित प्रदेश बनाने की माँग तथा जम्मू द्वारा अलग राज्य की माँग से देख सकते हैं।
निष्कर्ष
नृजातीय संघर्ष को उत्पन्न करते है। नृजातीय संघर्ष सामाजिक पहचान का एक मुद्दा हो गया है। नृजातीय संघर्ष नृजातीय समूहों की आर्थिक और राजनीतिक आवश्यकताओं की और गैर पूर्ति (असंतोष) के कारण उत्पन्न होता है। जब नृजातीय समूह अपने अस्तित्व को लेकर भयभीत होते है तब वे संघर्ष का सहारा लेते है और इसका परिणाम नृजातीय हिंसा होता है।
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