शीत युद्ध का दौर – Era of cold war
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परिचय :-
हमारे विश्व में 20वी शताब्दी में दो बड़े विश्व युद्ध हुए हैं | दोनों ही विश्व युद्धों में जन व धन हानि अधिक हुई है |प्रथम विश्व युद्ध ( 1914-1918 ) दूसरा विश्व युद्ध (1939 -1945) यह युद्ध बहुत खतरनाक थे |
दूसरा विश्व युद्ध दो गुटो के बीच हुआ –
- मित्र–राष्ट्र :- अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, सोवियत संघ
- धुरी–राष्ट्र :- जर्मनी, जापान, इटली
दूसरे विश्व युद्ध में जीत मित्र राष्ट्रों की हुई | इसका घातक प्रभाव जापान को झेलना पड़ा | जापान के दो शहरो पर परमाणु बमो का हमला किया गया | यह हमला अमेरिका द्वारा किया गया था |
- हीरोशिमा(little boy)
- नागासाकी(fat man)
दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होते ही दुनिया भागो में बट गयी |
दुनिया का बटवारा
दूसरे विश्व युद्ध के बाद ही शीत युद्ध शुरू हुआ यह काफी लम्बे समय तक चला था | 1945 से 1991 तक अमेरिका और सोवियत संघ में शक्ति के लिए संघर्ष हुआ |
- अमेरिका समूह
- सोवियत संघ
शीत युद्ध का अर्थ –
शीत युद्ध एक ऐसा युद्ध था जिसमे न तो पूर्ण रूप से शांति थी और न ही इसमें वास्तविक रूप से युद्ध हुआ था | यह केवल दो अलग-अलग विचारधारा पर आधारित लड़ाई थी |
विचारधारा
- पूँजीवाद
- समाजवाद
इस युद्ध को राजीतिक षडयंत्र के रूप में भी लड़ा जाता है | शीत युद्ध में सीधे हथियारों का इस्तेमाल नही किया जाता |
पूंजीवाद का अर्थ :-
- जिस देश की अर्थव्यवस्था मुक्त हो
- जो देश लोकतंत्र का समर्थक हो
- जिस देश में निजी स्वामित्व का महत्व हो
- पूंजीवाद अर्थव्यवस्था के समर्थक अधिकतर पश्चिमी देश हैं |
समाजवाद का अर्थ :-
- इस व्यवस्था को मानने वाले देश में निजी स्वामित्व का आभाव होता है |
- महत्वपूर्ण साधनों पर राज्य का नियंत्रण होना
- नियंत्रित अर्थव्यवस्था होना
- यह देश लोकतांत्रिक नही होते
शीत युद्ध के कारण
- शीत युद्ध ने विश्व में एक अलग वातावरण को जन्म दिया था |
- महाशक्तियों ने छोटे देशो को अपने प्रभाव क्षेत्र में लेन का प्रयास किया |
- शीत युद्ध के निम्नलिखत कारण हैं –
शक्ति के लिए संघर्ष :-
- दोनों महाशक्तियों को विश्व की शक्ति बनने की होड़ थी |
- सोवियत संघ पूर्वी-उत्तरी यूरोप पर समाजवाद फैलाना चाहता था |
- वहीं अमेरिका दक्षिणी-पश्चिमी यूरोप पर पूँजीवाद फैलाना चाहता था |
- शक्तियों की अपार( बहुत ) वृद्धि भी शीत युद्ध का कारण बना |
ट्रूमेन सिद्धांत ( 1940 )
- ट्रूमेन अमेरिका के राष्ट्रपति थे, इन्होने यूनान, तुर्की में चल रहे ‘ग्रह युद्ध’ में सहायता दी |
- यह देश समाजवाद के प्रभाव में न आये इसलिए इन्होने ऐसा किया था |
- इसे ही ट्रूमेन सिद्धांत का नाम दिया गया |
मार्शल योजना ( 1947 )
- यह अमेरिका के विदेशी मंत्री थे, इन्होने यूरोप को आर्थिक सहायता प्रदान की थी |
- यूरोप को 4बिलियन डॉलर देके आर्थिक सहायता दी |
- यूरोप में समाजवाद के प्रभाव को कम करने के लिए यह सब किया गया था |
- इससे शीत युद्ध को बढावा मिला |
वैचारिक मतभेद :-
- शीत युद्ध का यह एक महत्वपूर्ण कारण था |
- दोनों महाशक्तियों की विचारधाराएं अलग-अलग थीं |
- दोनों ही अपनी-अपनी विचारधारा को अन्य देशो से मनवाना चाहती थीं |
- इसी कारण शीत युद्ध और गहरा हो गया |
हथियारों की होड़
- अमेरिका शुरू से ही अधिक मात्र में हथियारों का निर्माण करता है |
- सोवियत संघ ने अमेरिका के हथियार निर्माण से आगे निकलने की होड़ लगाई |
- अमेरिका ने शक्ति प्रदर्शन के लिए परमाणु बमो का निर्माण किया |
- परमाणु बमो का घातक परिणाम जापान को झेलना पड़ा |
- जापान के दो शहरों (हिरोशिमा और नागासाकी ) पर परमाणु बमो से आक्रमण किए |
कोरिया का युद्ध ( 1950-1953 )
कोरिया दो भागो में बटा है
- उत्तरी कोरिया
- दक्षिणी कोरिया
- इन दोनों की ही विचारधारा अलग-अलग है, उत्तरी कोरिया( समाजवाद )
- दक्षिणी कोरिया( पूँजीवाद )
- 1950 में उत्तरी कोरिया ने दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण कर दिया |
- इस कारण अमेरिका व सोवियत संघ के बीच टकराव बड़ा |
छोटे देशो के साथ सैन्य गटबंधन
- आर्थिक आवश्यकता –
- छोटे देशो की प्राक्रतिक संसाधनो के कारण इन्हें अपने में शामिल करते थे |
- छोटे देशो के संसाधन जैसे- तेल, कपास, खनिज पदार्थ, कच्चा माल, आदि का अपनी आवश्कता अनुसार उपयोग करते थे |
- इन संसाधनों का वह मनमाना इस्तेमाल करके आर्थिक उन्नति करते थे |
- सैनिक अड्डे कायम करना
- छोटे देशो में महाशक्तिया सैनिक अड्डे कायम करती हैं |
- सैनिक अड्डे कायम करके विरोधी राष्ट्रों की घेरा बंदी करना |
- भू– क्षेत्र पर नियंत्रण
- छोटे देशो से गठबंधन करके अधिक से अधिक भू-क्षेत्र पर नियंत्रण चाहते हैं |
- युद्ध के समय सैना का सफलता पूर्वक संचालन हो |
बर्लिन की नाका बन्दी
जर्मन दो भागो में बटा हुआ है |
1948 में सोवियत संघ ने बर्लिन की नाका बन्दि कर दी थी |
- पश्चिमी जर्मन
- पूर्व जर्मनी
- अमेरिका और ब्रिटेन ने हवाई मार्ग से वहाँ ईंधन, आहार, दवाइयाँ, भेजीं |
- सोवियत संघ इन दोनों को रोक न सका |
- इस कारण शीत युद्ध अपने चरम बिंदु पर आ गया था |
- 1949 में बर्लिन की नाका बन्दि समाप्त कर दी गयी |
वियतनाम युद्ध
- 1964 में अमेरिका के राष्ट्रपति ने वियतनाम पर विमानों द्वारा भारी बम बरसाए |
- अमेरिका वियतनाम को एक पूँजीवाद देश बनाना चाहता था |
- सोवियत संघ ने वियतनाम को काफी सहयता पहुंचाई |
- 1975 में यह युद्ध समाप्त हो गया |
- 1976 में उत्तर-दक्षिण वियतनाम का एकीकरण हो गया |
- यहाँ समाजवाद को बढ़ावा मिला |
क्यूबा मिसाइल संकट (1961)
- क्यूबा अमेरिका से सटा हुआ एक छोटा सा महाद्वीप है |
- वहाँ पूँजीवाद अर्थव्यवस्था थी, जिसके शासक ‘जनरल बतिस्ता’ थे |
- 1959 में ‘फिदेल कास्त्रो’ ने इनकी सरकार का तख्तापलट कर दिया |
- फिदेल कास्त्रो ने वहाँ समाजवाद को जन्म दिया |
- क्यूबा के सारे उद्योग धंधे सारकार के हाथो में आ गये |
- सोवियत संघ के शासक ‘निकिता खुर्चेस्व’ ने क्यूबा में हाथियार तैनात कर दिए |
- अमेरिका को इन सब बातो की खबर पुरे एक हफ्ते बाद लगई थी |
- सोवियत संघ ने क्यूबा में मिसाइल इसलिए तैनात की, अमेरिका की घेरा बन्दि की जा सके |
- अमेरिका ने इसके विरुद्ध में सोवियत संघ के व्यपारिक जहाजो की आव-जाही बन्द करदी |
- अमेरिका और सोवियत संघ के बीच काफी टकराव बढ़ने लगा |
- इस कारणों के कारण तीसरे विश्व युद्ध की आशंका बढ़ने लगई |
- अमेरिका के राष्ट्रपति ‘जन एफ कैनेडी’ ने समझदारी से काम लिया और अन्य शान्ति प्रिय देशो द्वारा सोवियत संघ को भी समझाया गया |
- यह युद्ध होते-होते टल गया क्योंकी युद्ध के घाताक परिणामो से सभी अच्छी तरह परिचित थे |
- क्यूबा मिसाइल संकट शीत युद्ध का चरम बिंदु था |
शीत युद्ध के परिणाम
दो ध्रुवियता का अंत :-
- दो ध्रुवियता का के अंत का मतलब है, विश्व में एक मात्र महाशक्ति का बचना |
- विश्व में केवल अमेरिका ही एक महाशक्ति के रूप में उभरा |
- समाजवाद व्यवस्था यानि सोवियत संघ का का पतन(अंत) हो गया |
- पूँजीवाद को बढ़ावा मिला |
अमेरिका के वर्चस्व का आरंभ :-
- सोवियत संघ के पतन के बाद अमेरिका ने विश्व राजनीति और आर्थिक मामलो के निर्णय को प्रभावित किया |
- अमेरिका का वर्चस्व संपूर्ण विश्व में फैलता जा रहा हैं, अमेरिका वर्चस्व का दावा करता है |
सैनिक सुरक्षा का संगठन :-
पश्चिमी राष्ट्रों का सैनिक संगठन – (NATO)
- 1949 में पश्चिमी राष्ट्रों द्वारा ‘ North Atlantic treaty organization ’ की स्थापना की गयी थी |
- एक सैनिक संगठन है, जिसे 12 देशो ने मिल कर बनाया था |
- इसका उद्देश्य यह है, किसी ने एक देश पर भी आक्रमण किया तो वह सभी देशो पर मना जयेगा |
सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैनिक संगठन –
- 1955 में सोवियत संघ ने अमेरिका के विरुद्ध में ‘वारसा पैक्ट’ की स्थापना करी |
- इसका भी वही उद्देश्य था जो नाटो का है |
SEATO की स्थापना –( South East Asian Treaty organization )
- 1954 पाकिस्ता, थाएलैंड, फिलीपिंस आदि देशो ने मिलाकर की थी
- इस संगठन में अमेरिका भी शामिल था |
CENTO की स्थापना –
( Central Treaty organization )
- 1955 में अमेरिका द्वारा की गई थी |
- तुर्की,ईराक, इरान, आदि देश भी इसमें शामिल हुए |
- यह सभी सैन्य सन्गठन की स्थापना शीत युद्ध के दौर में हुई थी | परन्तु शीत युद्ध की समाप्ति के साथ ही यह सारे सैन्य संगठनो का भी अंत हो गया |
- सिर्फ नाटो एक ऐसा सैन्य संगठन है जो आज वर्तमान में भी स्थित है |
हाथियारो की होड़ की समाप्ति –
- शीत युद्ध की शुरुआत की हाथियारो की होड़ के कारण हुई थी |
- शीत युद्ध की समाप्ति के साथ ये भी समाप्त हो गया |
- वर्त्तमान युग में कोई भी देश अपनी प्रभुसत्ता के साथ किसी को खिलवाड़ नही करने देना चाहता |
- इसी लिए सभी देश सुरक्षा सम्बन्धी संसाधनो को प्राप्त करने के लिए विवश है |
वैचारिक संघर्ष की समाप्ति –
- शीत युद्ध दो अलग-अलग विचारधारा (समाजवाद-पूँजीवाद) के कारण और अधिक गहरा होता चला गया था |
- सोविता संध यानी समाजवाद के पतन के बाद वैचारिक संघर्ष की समाप्ति हो गई |
- पूंजीवाद विचारधारा की जीत हुई |
आर्थिक विकास को बढ़ावा –
- शीत युद्ध के दौरान अधिक बल हथियारों और सैना पर दिया गया था |
- शीत युद्ध की समाप्ति के बाद देशो ने सैना व हथियारों पर न खर्च कर आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया |
- शीत युद्ध के बाद सैन्य खर्चो में कमी आई |
गुटनिरपेक्ष का अर्थ और उसकी भूमिका –
गुटनिरपेक्ष का अर्थ –
गुटनिरपेक्ष का अर्थ है कि भिन्न सैन्य संगठनो से अल रहते हुए प्रत्येक प्रश्न का निर्णय उसक के गुण व दोष के आधार पर करना यह निति गुटनिरपेक्षता की निति कहलाति है |
गुटनिरपेक्ष की भूमिका –
- शीत युद्ध के शुरुआती दौर में ही भारत सहित एशिया और अफ्रीका के तमाम देश नए-नए स्वतंत्र हुए थे |
- नए स्वतंत्र राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता को बरकरार रखना चाहते थे |
- सैन्य संगठनो से अलग रहने के लिए, गुटनिरपेक्ष की स्थापना की गई |
- यह रष्ट्र दोनों महाशक्तियों से अलग रहकर उनसे आर्थिक सहायता प्राप्त करना चाहते थे|
- गुटनिरपेक्ष में शामिल राष्ट्रों ने शूट युद्ध की उगरता में कमी लाने में महतवपूर्ण भूमिका अदा कि |
- शीत युद्ध की समाप्ति के बाद विश्व में दो महाशक्ति नहीं रहीं |
- गुटनिरपेक्ष की प्रासंगिक्ता ( महत्त्व ) आज भी उतनी ही महतवपूर्ण है जितनी उस समय थी|
- गुटनिरपेक्ष का महत्व शीत युद्ध के बाद कम नही हुआ जिस का कारण है :-
- आर्थिक विकास
- आतंकवाद का खात्मा
- विश्व पर्यावरण संतुलन
- नि:शस्त्रीकरण एंव विश्व में शान्ति
- यह सभी मुददे आज भी उतने महत्वपूर्ण है जितने शीत युद्ध के दौरान थे |
- नए स्वतंत्र राष्ट्रों की सबसे महतवपूर्ण समस्या है की स्वतंत्रता को बरकरार रखना, आर्थिक विकास को प्राप्त करना |
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन कब और कैसे –
- भारत की आजादी से पूर्व ही इसकी पहली बैठक हुई थी |
- 23 मार्च 1947 को नेहरू जी ने DEHLI AESIYA RELATION CONFERENCE आयोजित किया |
- इसमें 29 देशो ने भाग लिया था |
- गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की नीव – 1955 में इंडोनेशिया के ‘बांडुग’ नगर में इसकी नीव रखी गयी |
- गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना ( 1961 ) –
- 1961 में यागोस्लाविया की राजधानी ‘बेलग्रेड’ में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की औपचारिक रूप से स्थापना कि गई |
- यह गुटनिरपेक्ष का प्रथम शिखर सम्मेलन के नाम से जाना जाता है |
- इसमें एशिया और अफ्रीका के 25 देशो ने भाद लिया था |
- आर्थिक विकास, व्यापार वाणिज्य के विकास की बात की गई थी |
- गुटनिरपेक्ष की स्थापना में 5 देशो की अहम भूमिका रही है |
नेता के नाम –
- भारत नेहरु जी
- इंडोनेशिया डॉ सुकुर्नो
- मिश्र गमाल अब्दुल नासिर
- युगोस्लाविया मार्सल कीटो
- घाना बामे एकाक्रुमा
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के उद्देश्य –
- साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध करना |
- अन्ताराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को प्रोत्साहन देना |
- नस्ललिय भेद भाव और रंग भेद का अंत करना |
- परमाणु शास्त्रों का विरोध करना |
- संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति प्रयासों तथा अन्य कार्यों में सहयोग देना |
- नई अन्तराष्ट्र आर्थिक व्यवस्था ( NIEO ) की स्थापना करना |
- पर्यावरण के लिए विश्व सहयोग मानव अधिकारों को लागु करना |
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रसिंग्किता –
- विश्व पर प्रभुसत्ता का ध्यान रखना :-
आधुनिक युग में भारत साहित सभी गुटनिरपेक्ष देशो के लिए यह एक बड़ी चुनौती है |
इन सभी देशो का यह कर्तव्य है, यह देखना की कोई शक्तिशाली राष्ट्र विश्व पर कब्ज़ा न कर ले |
- आपसी सहयोग को बढ़ावा :-
गुटनिरपेक्ष देशो का कर्तव्य है की यह सामाजिक,आर्थिक आपसी सहयोग को बढ़ाए |
गुटनिरपेक्ष देशो का यह भी कर्तव्य है की वह विकसित देशो की मनमानी न चलने दें |
गुटनिरपेक्ष की जब नीव राखी गई थी जबके और आज के कई मुद्दों में समानता हैं |
- अन्तराष्ट्रीय संगठनो में उचित प्रतिनिधित्व :-
नई अन्तराष्ट्री व्यवस्था की स्थापना बहुत ही आवश्यक है |
पश्चिमी राष्ट्रों का W.T.O, I.M.F, W.B, पर अधिक नियंत्रण हैं |
एक ऐसे मंच की आवश्यकता है जो विकाशील राष्ट्रों के अधिकारों की मांग पर बल दे |
- आतंकवाद एक गंभीर मुद्दा :-
आतंकवाद एक ऐसी समस्या है जो संपूर्ण विश्व की एक गंभीर समस्या है |
आतंकवाद के ख़तरे से बचने के लिए आपसी सहयोग बढ़ावा देना चाहिए |
इसे सुलझाने के लिए मिल-झूल का प्रयास करना होगा |
- भारत और शीत युद्ध –
शीत युद्ध शुरू होने के कुछ समय बाद ही भारत आजाद हुआ था |
भारत ने शुरू से ही मैत्रीपूर्ण संबन्ध, शान्ति और समानता के सिद्धांतो पर अधिक बल दिया था |
भारत के विदेशी निति के मुख्य लक्ष्य है जैसे – उपनिवेश का विरोद्ध,नस्लीय भेद भाव का संत करना और मानवाधिकारों को लागु करना |
भारत ने का शीत युद्ध की उग्र्ता मे कमी लाने में काफी योगदान है |
अमेरिका के प्रति भारत की निति –
- अमेरिका अपने शक्ति गुट में भारत को शामिल करना चाहताथा |
- भारत ने किसी भी गुट में शामिल न होने की निति अपनाई |
- अमेरिका ने हमेशा भारत के संघर्ष में पाकिस्तान का साथ दिया |
- 1964 में अमेरिका ने वियतनाम पर बम-बरी की थी, तो भारत ने इसकी खूब आलोचना की |
- 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध में अमेरिका ने भारत-रूस विरोद्धी निति अपनाई |
- 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में अमेरिका ने सुरक्षा परिषद् में पाकिस्तान की वाकालत की थी |
- 1974 में अमेरिका से भारत के संबंध में सुधार आए जिसमे भारत की विशेष आर्थिक सहायता प्रदान की |
सोवियत संघ के प्रति भारत की निति –
शीत युद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के संबंध बहुत गहरे थे |
आलोचकों का कहना था की भारत सोवियत गुट का हिस्सा है |
सोवियत संघ ने भारत की निम्नलिखित तरीको से मदद की –
आर्थिक –
- सोवियत संघ ने भारत की आर्थिक मदद उस वक्त की जब भारत बहुत मुश्किल में था |
- सोवियत संघ ने भारत को आर्थिक एंव तकनिकी सहायता प्रदान की |
- सोवियत संघ ने भिलाई, बोकारो, विशाखापट्नम में इस्पात के कारखानों के लिए मशीन दीं |
- सोवियत संघ ने हर तरह से हमेशा भारत का ही समर्थन किया है |
- UNO में कश्मीर मामले में सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया |
- 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में भारत की मदद की |
- 1971 ही भारत के साथ सोसियत संघ ने 20 सूत्रीय संधि की |
सैन्य –
भारत के साथ सोवियत संघ ने कई समझोते किए |
भारत संयुक्त रूप से सैन्य उपकरण तैयार कर सके |
संस्कृति –
- भारत की संस्कृति व हिंदी फिल्मे सोवियत संघ के लिए लोक प्रिय थीं |
- भारत के लेखक-कलाकारों ने सोवियत संघ की यात्रा कि |
- नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था ( NIEO )
- 1961 के समय में गुटनिरपेक्ष देशो के लिए स्वतंत्रता एकता आधिक महत्वपूर्ण थी |
- 1970 के दशक तक गुटनिरपेक्ष देशो ने NIEO पर अधिक जोर दिया |
- 1972 की रिपोर्ट –
- ‘संयुक्त राष्ट्र संघ व्यापार और विकास’ (UNCTAD) की रिपोर्ट पेश की गई |
- इस रिपोर्ट का नाम था “विकास से संबंधित नई व्यापार निति”
रिपोर्ट में कहा गया की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था में कई बड़े सुधार किए जाएँ, जो की निम्नलिखित है –
- विकासशील देशो को सिर्फ कच्चे माल तक ही सीमित रखा गया है | अल्पविकसित देशो का अपने संसाधनो पर कोई नियंत्रण नही है, और इन्हें अपने माल को कम-से-कम बेचना पड़ता है |
- इस शोषण का अंत तब होगा जब विकासशील देश विकसित देश में अपना माल बेच सकेंगे और उनकी आर्थिक, तकनिकी, सहायता प्रदान करें |
- वित्तीय संस्थाएँ जैसे W.B और I.M.F. के निर्णय को प्रभावित करने की शक्ति विकासशील देशो को दी जाएँ |
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