कबीर के समकालीन समाज में व्याप्त असमानताओं के संबंध में उनके विचारों का परीक्षण कीजिए।
प्रश्न. 10 – कबीर के समकालीन समाज में व्याप्त असमानताओं के संबंध में उनके विचारों का परीक्षण कीजिए।
अथवा
लैंगिक समानता के विशेष संदर्भ में का परीक्षण कीजिए।
उत्तर –
परिचय – शास्त्रों का सार है ” यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रफला:” जहाँ नारी का सम्मान होता है वहां देवता रहते हैं और जहाँ पर नारी का अपमान होता है वहां तमाम तरीके से पूजा पाठ के बाद भी देवता निवास नहीं करते हैं। लेकिन निराशा का विषय है की जो कबीर समाज में व्याप्त धार्मिक कर्मकांड, हिन्दू मुस्लिम वैमनष्य, पोंगा पंडितवाद, भेदभाव और कुरीतियों का विरोध करते हुए एक समाज सुधारक की भूमिका में नजर आते हैं वो स्त्री के बारे में निष्पक्ष दृष्टिकोण नहीं रख पाए। शायद इसका कारन उस समय के समाज के हालात रहे होंगे जो पुरुष प्रधान था। मध्यकालीन कवियों ने नारी को दोयम दर्जे में रख कर उसका अस्तित्व पुरुष की सहभागी, सहचारिणी सहगामिनी तक ही सीमित कर रखा था। नारी को कभी भी स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में चित्रित नहीं किया गया।
कबीर के असमानताओं के संबंध में विचार/ लैंगिक समानता (कबीर एंव नारी)
हिन्दू समाज में महिलाएँ अब केवल सामाजिक, व्यावसायिक तथा धार्मिक कानूनों तक ही सीमित थी। अब महिलाएँ ना केवल घरों तक सीमित थी, अपितु जन्म से लेकर मृत्यु तक पुरुषों द्वारा नियंत्रित की जाती थी। उन्हें परदे में रखा गया। कुछ जातियों में, कम उम्र की विधवाओं को भी देखने को मिला और उनसे यह अपेक्षा की जाती थी कि वो आजीवन विधवा के रूप में अपना जीवन व्यतीत करे। विधवापन से समाज में गरीबी, सामाजिक अस्वीकृति तथा अकेलापन को बढ़ावा मिला। उस समय कन्या भ्रूण हत्या भी प्रचलन में था जो बेटियों का तिरस्कार करता था।
ससुराल वाले लड़की के जन्म का आरोप लगा कर महिलाओं का तिरस्कार करते थे, महिलाओं को एक पुरुष वारिस पैदा करने के लिए ससुराल पक्ष द्वारा दबाव डाला जाता था, जिसके कारण महिलाओं का स्वास्थ्य भी खराब हो जाता था। मनु का कानून आज भी भारतीय समाज पर प्रभाव डालता है। महिलाओं को शालीन कपड़े पहनना चाहिए तथा मेकअप से बचना चाहिए, सम्मान के रूप में उन्हें अपना सर भी ढ़कना चाहिए इत्यादि जैसी प्रथाएँ आज भी विद्यमान है।
कबीर की शिक्षाओं ने नर एवं मादा दोनों मनुष्यों की गरिमा को उचितपूर्ण रूप से प्रस्तुत किया। सारी सृष्टि में सृष्टिकर्ता की व्याप्ति के बारे में कबीर की रहस्यमय अंतरदृष्टि ने समानता के विचार को प्रतिपादित किया। उन्होंने कहा कि जन्म या लिंग के आधार पर भेद करना सर्वथा गलत है। कुछ छंदों में उन्होंने सती को पुनः परिभाषित किया। कबीर कहते है सती विधवा नहीं है जो अपने पति के चिता के पास बैठती है अपितु वह सत्य बोलने वाली है। हे धार्मिक विद्वान इसे देखें तथा अपने हृदय में विचार करें। सांसारिक सुख की लालसा होने पर कोई आध्यात्मिक प्रेम नहीं हो सकता। माया में विश्वास रखने वाला कभी सपने में भी प्रभु से नहीं मिल सकता, परंतु सच्ची आत्मा, दुल्हन अपना शरीर, विचार, भाग्य, घर व स्वयं को त्याग देती है।
पर्दा प्रथा मुसलमानों के साथ आया। युद्ध व विकृत अर्थव्यवस्था के समय महिला एक बड़ी जिम्मेदारी होती थी। महिला की पवित्रता एवं उसके सम्मान की रक्षा करना अत्यंत ही कठिन था। परंतु दैनिक जीवन में पर्दा आवश्यक नहीं है। कबीर ने अपने रहस्यमय शिक्षाओं में पर्दा का वर्णन किया है, ‘हे मेरी आत्मा-वधू ,पुरुष के सामने धूंघट मत पहनो। इस घूघट ने कई आत्मा दुल्हनों को अपने पति परमात्मा को देखने से रोक रखा है। पर्दा पहनने पर लोग कुछ दिनों तक ही आपकी प्रशंसा करेंगे, परंतु असली कफन है तुम्हारे पति परमात्मा का नाम सुमिरन। नाम सुमिरन की उनकी हर्षित प्रशंसा’।
कबीर पर्दा की अवधारणा बताते हुए यह यह समझाते हैं कि पर्दा क्या है तथा यह क्यों है? उनका मानना है कि एक दुल्हन परिवार के सम्मान या गौरव को बनाए रखने के लिए पर्दा का प्रयोग करती है। वास्तव में वह नरक से पीड़ित है क्योंकि शरीर को दफनाने के बाद परिवार का गौरव खो जाएगा। कबीर कहते हैं अपने सभी कर्मों एवं भ्रांतियों को छोड़ दो जो मानव मे मनमुटाव पैदा करते हैं, क्योंकि सभी के अंदर एक ही ईश्वर है जो निवास करता है प्राप्ति का मार्ग संकीर्ण है, पीछे मुड़ने से व्यक्ति धूल में मिल जाता है। चूँघट के पीछे छिपी खूबसूरत स्त्री सुरक्षित है। आध्यात्मिक मार्ग एक चोटी सी सीढ़ी के समान है, इसका तात्पर्य है अपने आपको लालसा, जुनून, अंहकार आदि के कारण से होने वाले सभी कर्म बंधनों से अपने आपको मुक्त करना। आप अपने अंहकार को इस रास्ते पर नहीं ला सकते। आध्यात्मिक मार्ग को अस्वीकार करने से भौतिक जीवन मृत्यु में समाप्त हो जाता है।
निष्कर्ष – प्रारम्भिक हिन्दी साहित्य के इतिहास में कबीर निर्विवाद रूप से सर्वश्रेष्ठ गीतकार एवं रहस्यवादी थे। उनकी कविता तथा दर्शन ने न केवल हिन्दी साहित्य पर अपितु उत्तर भारत के अधिकतर व्यक्तियों पर भी एक स्थायी प्रभाव डाला, जो उनकी मृत्यु के पश्चात् भी दशकों तक महसूस किया जाता रहा। कबीर द्वारा हिन्दू एवं मुस्लिम धर्मों में व्याप्त व्यर्थ संस्कारों व परंपराओं की निंदा करते हुए यह कहा गया कि इन दोनों धर्मों का अंतिम उद्देश्य एक ही है। कबीर ने सद्गुरु, संत समागम (भक्तों एवं संतों का समुदाय) व नामसिमरन का पक्ष लिया।
उन्होंने चित्तशुद्धि (हृदय की शुद्धता), सदाचार (नैतिक व्यवहार) तथा निष्काम-कर्म (कर्तव्य के लिए दायित्व) पर बल दिया। इसलिए उन्होंने समुदाय (समाज-जागृति) तथा भाव-भक्ति को जगाया व जाति एवं वर्ग विभाजन को अस्वीकृत किया। उन्होंने सभी धर्मों का समर्थन किया, परंतु उनके झूठे, छिछले व खोखले कर्मकांडों पर प्रहार किया। परिणामस्वरूप, भक्ति आंदोलन के समय संत कबीर ने एक सामाजिक क्रांति की शुरुआत की तथा क्रांतिकारी विचारों व दृष्टिकोणों को प्रस्तुत करते हुए इस क्षेत्र में अग्रणी बने।
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